शासन व्यवस्था
जी-7 विभाजन की राह पर
- 20 Jun 2018
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संदर्भ
8-9 जून, 2018 को क्यूबेक, कनाडा में आयोजित हुए संगठित समूह G-7 की बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के रुख के कारण विभाजित और उलझन में दिखाई दिये। विश्व व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिये इन सातों के बीच समझौता अब संकट की स्थिति में दिखाई दे रहा है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा लंबे समय से इस समूह के नियमों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है|
पिछले कुछ दशकों में समूह ने दुनिया को क्या दिया है?
- सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से यह समूह ज़्यादातर विकासशील देशों के खर्च पर विकसित हुआ है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) का उद्देश्य अपने प्रशासन में व्याप्त बाधाओं का समाधान करते हुए उभरते बाज़ारों को विश्व पटल पर लाना है|
- अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) ने अपने कृषि बाज़ारों के लिये प्रतिस्पर्द्धा की अनुमति देने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने ब्राज़ील और भारत जैसे उभरते बाज़ारों पर दबाव डालने के लिये करों को कम करके आयात में कमी की है।
- इन देशों ने अपने प्रभाव और रुचि को बनाए रखने के लिये गरीब देशों के बीच विभाजन की स्थिति उत्पन्न की|
- वे चीन के असाधारण रूप से विनिर्माण के क्षेत्र में उभरने को लेकर बेहद चिंतित थे, जो धीरे-धीरे उनकी क्षमताओं को आत्मसात करता जा रहा था।
- समूह की त्रुटिपूर्ण नीतियों के कारण चीन पश्चिम में आइना दिखाने में कामयाब रहा।
- गरीब देशों की मदद करने की अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को नज़रंदाज करते हुए जी-7 अभी भी लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों को अपने उत्पादों के बाज़ार के रूप में देखना चाहता है।
- इसने विकासशील देशों में औद्योगीकरण में वृद्धि की संभावनाओं का उपहास उड़ाया है। चीन की विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने वाले अफ्रीका या लैटिन अमेरिका के दो या तीन देशों के प्रभाव को आसानी से समझा जा सकता है।
- चीन और भारत के उदय पर ये देश खुश नहीं होंगे। इसलिये, वे इन दोनों देशों के अतिरिक्त कुछ अन्य देशों को उभरता हुआ देखना पसंद नहीं करेंगे|
- वे पहले ही भारत और चीन पर अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं। घरेलू उत्पादन और विनिर्माण के प्रोत्साहन को लेकर यूरोपीय संघ भारत से परेशान है।
- भारत ने पूरी तरह से देश में निर्मित कारों पर उच्च टैरिफ लगाया है। भारत ने अपने घरेलू ऑटोमोबाइल उद्योग को विस्तार देते हुए और इसे गहराई की ओर ले जाने के लिये प्रयास कर रहा है|
- भारत में बनाई गई कारें और इनके पार्ट्स दुनिया भर में बेचे जाते हैं। यूरोपीय और अमेरिकी ऑटो कंपनियों ने भारतीय बाज़ार में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करने तथा उनके उत्पादों से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये अरबों रुपए निवेश किये हैं।
- अब भी, यूरोपीय संघ पूरी तरह से वहाँ निर्मित कारों पर कम आयात शुल्क के लिये दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। यूरोपीय संघ यह चाहता है कि भारत यूरोप में इस्तेमाल की जाने वाली कारें खरीदे।
- इसी तरह, अमेरिका अपनी सौर-निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देने के प्रयासों के बारे में भारत को परेशान कर रहा है। उसे यह पसंद है कि भारत विनिर्माण की बजाय आयात करे।
- मई में अमेरिका ने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भारत के खिलाफ मामला दर्ज किया है। चीन और भारत भी आपस में लड़ रहे हैं।
- भारत ने भी आयातित स्टील पर शुल्क बढ़ाने के लिये अमेरिका के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में मामला दर्ज किया है।
चीन का मज़बूत दृष्टिकोण
- चीन ने निश्चित रूप से अपने दृष्टिकोण पर काफी मज़बूती दिखाई है। इसने जी-7 द्वारा निर्धारित नियमों को मानने से इनकार कर दिया है।
- भारत इसका विरोध कर सकता है क्योंकि चीन की बेल्ट और रोड पहल उसी तरह का आर्थिक साम्राज्यवाद है जिसे जी-7, विशेष रूप से ब्रिटेन ने सदियों से दुनिया पर लगाया था।
- अब एशियाई देश परिपक्व हो गए हैं, पश्चिमी बाज़ारों को समान नीतियों का सामना करना पड़ रहा है जिनका उपयोग उन्होंने दुनिया को नियंत्रित करने के लिए किया था।
क्या भारत, चीन और अन्य उभरते बाज़ार पश्चिमी देशों की कमजोरी का फायदा उठाएंगे?
- सवाल यह है कि क्या भारत, चीन और अन्य उभरते बाज़ार पश्चिमी देशों की कमज़ोरी का फायदा उठाने के लिये अब एक मज़बूत रणनीति तैयार कर सकते हैं?
- इसके लिये दो महत्त्वपूर्ण स्थितियों की आवश्यकता होगी। पहली, चीन और अन्य उभरते बाज़ारों के बीच बेहतर संबंध। दूसरी, आर्थिक दिग्गजों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये अपनी आंतरिक शक्तियों को बढ़ाना।
- भारत को आंतरिक सुधारों की ज़रूरत है, जबकि चीन पहले से ही ऐसा करता आ रहा है। जनसंख्या का आकार पर्याप्त नहीं है।
- उदाहरण के लिये, भारत और चीन को अपनी न्यायिक और शैक्षणिक प्रणाली में सुधार करना है। आंतरिक शासन क्षमताओं के लिये गहरे संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता होती है।
G-20 व G-7 विभाजन की राह पर
- बहुपक्षीय स्तर पर जी-20 समूह, जी-7 से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होगा।
- कोई भी समूह जो अर्थव्यवस्था या सुरक्षा पर वैश्विक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास करता है तो वह सफल नहीं होगा जब तक कि इसमें ब्रिक्स देशों को शामिल न किया जाए|
- जी-7 की तरह जी-20 भी गतिशीलता बनाए रखने में सक्षम नहीं है क्योंकि पुरानी और उभरती शक्तियों के बीच एक स्पष्ट विभाजन दिखाई देता है।
- शंघाई सहयोग संगठन और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसे फोरम वैश्विक नेतृत्व की नई संभावनाओं को इंगित करते हैं क्योंकि यहाँ एशियाई देश प्रभावशाली हैं।
- पश्चिम में तकरार का माहौल दिखाई दे रहा है जिसे रूस चुपचाप देख रहा है और चीन तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहा है, ऐसे में एशिया के उदय के लिये केंद्रित समन्वय की ज़रूरत है।