तुर्की में मुद्रा संकट | 16 Aug 2018
चर्चा में क्यों?
तुर्की की मुद्रा लीरा में ज़बरदस्त गिरावट का दौर जारी है। पिछले एक साल में डॉलर के मुकाबले लीरा की कीमत में 50 प्रतिशत तक की गिरावट हो चुकी है। अमेरिका द्वारा तुर्की से स्टील और एल्युमीनियम के आयात पर शुल्क बढ़ाने के बाद पिछले कुछ दिनों से लीरा के मूल्य में तेज़ गिरावट आई है। तुर्की के आर्थिक संकट का असर भारत में भी दिखाई दे रहा है| पिछले दिनों डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई। दैनिक कारोबार में रुपए में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज होने की वज़ह से यह 70.10 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुँच गया।
तुर्की की मुद्रा में गिरावट का कारण क्या है?
- अमेरिका के पादरी एंड्रयू ब्रनसन को तुर्की ने अक्टूबर 2016 में जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था। उन्हें रिहा नहीं करने पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी।
- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह तुर्की से स्टील एवं एल्युमीनियम के आयात पर शुल्क दोगुना करने की घोषणा की| ट्रंप ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब तुर्की पहले ही आर्थिक संकट से गुज़र रहा है और अमेरिका के साथ कूटनीतिक विवादों में उलझा हुआ है|
- अमेरिका द्वारा तुर्की से स्टील और एल्युमीनियम के आयात पर शुल्क बढ़ाने के बाद पिछले कुछ दिनों से लीरा के मूल्य में तेज़ गिरावट आई है।
- तुर्की की अर्थव्यवस्था तेज़ गति से चल रही थी जो निर्माण और उपभोग बूम पर केंद्रित रही है| जुलाई में मुद्रास्फीति 15% से अधिक थी तथा देश में उच्च चालू खाता घाटा और विदेशी ऋण बढ़ रहा है।
- अमेरिका में मज़बूत डॉलर और उच्च ब्याज दरों ने लीरा की परेशानियों को बढ़ाया है।
- भारत और चीन के मुक़ाबले तुर्की विदेशी मुद्रा के कर्ज़ पर अधिक निर्भर था और यही उसके मौजूदा संकट की बड़ी वज़ह है| तुर्की की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा का दबदबा है और कुल कर्ज़ का 70 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा डॉलर में लिया गया है|
- ब्रिटेन ने भी तुर्की को 19 अरब डॉलर का कर्ज़ दिया है, जबकि तुर्की के लिये संकट पैदा करने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के देश के बैंकों का भी 18 अरब डॉलर तुर्की में डूबने की कगार पर है|
- अमेरिकी डॉलर की मांग में इज़ाफा होने की वजह से डॉलर ज़्यादातर मुद्राओं के मुकाबले मज़बूत रहा है। यूरो और पाउंड जैसी मज़बूत मुद्राओं के मुकाबले भी अमेरिकी डॉलर में मज़बूती आई है।
तुर्की की प्रतिक्रिया
- तुर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन ने कहा है कि अमेरिका ने अंकारा की पीठ पर छुरा मारा है। उन्होंने यह भी कहा कि लीरा जल्द ही स्थिर हो जाएगी क्योंकि इसके गिरने का कोई "आर्थिक आधार" नहीं है।
- राष्ट्रपति ने तुर्कों से अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक सामान का बहिष्कार करने का आग्रह किया और साथ ही अमेरिकी कारों तथा शराब पर प्रतिशोधात्मक टैरिफ बढ़ाये जाने की निंदा की।
- तुर्की का गृह मंत्रालय अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास को कम करने वाले 346 सोशल मीडिया खातों की भी जाँच कर रहा है।
- बाज़ारों को व्यवस्थित करने के लिये तुर्की के केंद्रीय बैंक ने बैंकों को आवश्यक तरलता प्रदान करने का वादा किया था।
भारत पर प्रभाव क्या है?
- भारतीय रुपए ने पहली बार डॉलर के मुकाबले 70 अंक पार किया जिसका मुख्य कारण लीरा में लगातार गिरावट है। विश्लेषक इस बात से चिंतित हैं कि मुद्रा में यह उथल-पुथल अन्य (उभरते) बाज़ारों को चोट पहुँचा सकती है।
- तुर्की के उधारदाताओं में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाले यूरोपीय बैंक भी जोखिम में हैं।
- भारतीय रुपए की कमज़ोरी की बड़ी वज़ह यह है कि भारत एक प्रमुख आयातक देश है, लिहाजा उसे हर साल आयात के लिये और ज़्यादा डॉलर की ज़रूरत पड़ रही है। साथ ही विदेशी निवेश में भी कमी आ रही है।
- इसके अलावा, पिछले 7 महीनों में पहली बार जुलाई में सोने का आयात बढ़ा है इससे भी राजकोषीय घाटे की स्थिति खराब हुई है और रुपया कमज़ोर हुआ है।
- भारतीय केंद्रीय बैंक आरबीआई रुपए में बहुत ज़्यादा गिरावट को रोकने के लिये समय-समय पर डॉलर बेचकर हस्तक्षेप करता है। इसका विदेशी मुद्रा भंडार पर काफी असर पड़ा है, जो अप्रैल के 426 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर से लुढ़ककर अगस्त के शुरुआती हफ्ते में 403 अरब डॉलर पर पहुँच गया है।