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प्रौद्योगिकी

प्रतिरोध की लागत

  • 01 Jun 2018
  • 4 min read

संदर्भ

मई में भारत के पोकरण में किये गए परमाणु परीक्षण के 20 साल संपन्न हो गए। इस परीक्षण ने भारत को वास्तविक रूप से दुनिया का छठा परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बना दिया था। भारत के परमाणु परीक्षण के कुछ दिन बाद ही पाकिस्तान ने भी इसी तरह का परमाणु परीक्षण करके भारत के प्रति अपनी प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर कर दी।

प्रमुख बिंदु 

  • इस वर्षगाँठ के अवसर पर, इस बात का विश्लेषण करना बेहद महत्त्वपूर्ण है कि दक्षिण एशिया में पिछले दो दशकों में सामरिक परमाणु शक्ति संतुलन किस प्रकार विकसित हुआ है।
  • सर्वप्रथम, पाकिस्तान के भारत के समक्ष परमाणु शक्ति के रूप में उभार और भारत द्वारा ‘नो फर्स्ट यूज पॉलिसी’ ने पकिस्तान को परमाणु प्रतिरोध की शक्ति प्रदान की।
  • पकिस्तान का परमाणु परीक्षण, भारत को यह इंगित करने हेतु किया गया था, कि यदि भारत उस पर कोई परमाणु हमला या अन्य बड़ी कार्रवाई करता है, तो पाकिस्तान भी पलटवार कर सकता है और भारत को गंभीर क्षति पहुँचा सकता है।
  • दिसंबर 2001 के संसद हमले और 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले ऐसे दो उदाहरण हैं, जहाँ पकिस्तान की परमाणु क्षमता को ध्यान में रखते हुए भारत द्वारा संभावित बड़ी सैन्य कार्रवाई को रोक दिया गया था।
  • यह कहना मुश्किल है कि यदि दोनों देश परमाणु ऊर्जा संपन्न राज्य न होते, तो भारत इन दोनों अवसरों पर किस तरह की कार्रवाई करता।
  • एक जिम्मेदार राष्ट्र होने के नाते भारत अपने नागरिकों के जीवन को बेहद महत्त्व देता है। अतः भारत किसी भी स्थिति में पाकिस्तान द्वारा परमाणु हमले का जोखिम नहीं उठा सकता।
  • इस संदर्भ में परमाणु कार्यक्रम ने दोनों देशों के बीच ताकत अंतराल को कम कर दिया है, जबकि दोनों देशों के मध्य पारंपरिक हथियारों संबंधी ताकत के मामले में पर्याप्त अंतर विद्यमान है।
  • दूसरे शब्दों में, परमाणु क्षमता संपन्नता ने दोनों देशों के मध्य परमाणु युद्ध की संभावना को बेहद कम  कर दिया है।
  • हालाँकि, एक पहलू परमाणु हथियारों के जिम्मेदारी पूर्वक उपयोग से भी जुड़ा है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि एक कम जिम्मेदार देश द्वारा परमाणु हथियारों के प्रथम प्रयोग की संभावना ज्यादा रहती है, जबकि अधिक जिम्मेदार देश ऐसा करने से बचता है। हालाँकि, इसके द्वारा प्रत्युत्तर में की गई कार्रवाई कम जिम्मेदार देश के लिये अधिक विनाशकारी साबित हो सकती है।
  • परमाणु हथियारों के निर्माण में, लागत भी एक बड़ा मामला है। भारत और पाकिस्तान जैसे उभरते देशों के संदर्भ में यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • पिछले कुछ दशकों से दक्षिण एशिया में हथियारों के प्रसार की भी होड़ मची हुई है। 
  • इस होड़ के कारण बड़े पैमाने पर संसाधनों का दोहन हुआ है, जिनका उपयोग कल्याणकारी गतिविधियों में किया जा सकता था।
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