आधार की संवैधानिकता | 08 Jul 2017

संदर्भ 
अटॉर्नी-जनरल के.के. वेणुगोपाल ने शुक्रवार को याचिकाकर्त्ताओं द्वारा की गई बहस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि आधार का लाभ लोगों तक पहुँच रहा है तथा इससे धोखाधड़ी पर लगाम लगी है। 

परन्तु, जब आधार की संवैधानिकता को सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई हो और इस पर संविधान पीठ का फैसला आना बाकी हो, तो थोड़े-थोड़े अंतराल पर आधार की अनिवार्यता का दायरा बढ़ाते जाने के फरमान सरकार के उतावलेपन को ही दर्शाते हैं। 

प्रमुख घटनाक्रम 

  • आधार को अनिवार्य बनाने का विरोध कर रहे याचिकाकर्त्ताओं  का कहना था कि आधार भारत को "एकाग्रता शिविर" (concentration camp) में ले जा रहा है तथा यह जॉर्ज ऑरवेल द्वारा रचित 1984 के एक अधिनायकवादी राज्य की  याद दिलाता है, जिसमें हर कोई और हर चीज़ को 'बिग ब्रदर स्टेट' द्वारा देखा जाता है।
  • उनका कहना है कि बच्चों को आधार नामांकन के लिये  अपने अंगूठे के प्रिंट लेने के लिये कहा जाता है। इस तरह हम राज्य के समक्ष दास जैसा बन रहे हैं। भारत एकाग्रता शिविर  बन रहा है, यह लोगों पर आक्रमण से कम नहीं है। 
  • नई अधिसूचनाएँ  भी उन लोगों को कल्याणकारी फायदों से रोकने का इरादा है, जिनके पास आधार संख्या /कार्ड नहीं है।  कुल मिलाकर लोगों के ऊपर निगरानी की स्थिति चल रही है।

निर्धनों की सहायता 

  • सरकार के पक्ष से श्री वेणुगोपाल ने कहा कि आधार ने 350 मिलियन निर्धनों की सहायता की है।
  • अब तक लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिये जो धन भेजा जाता था, उसे मार्ग पर ही  निगल लिया जाता था, परन्तु आधार के बाद लोगों को अपना पैसा और लाभ दोनों मिल रहे हैं। 
  • गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि आधार योजना की संवैधानिकता को ‘एक बार और हमेशा के लिये’  तय किया जाना है और संभवतः इसे नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा तय किया जाएगा।

आधार को लेकर विवाद क्यों ?

  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं के लिये  आधार को अनिवार्य बनाने की घोषणा की है। सरकार आधार की अनिवार्यता का दायरा लगातार बढ़ाती जा रही है।
  • इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकार और उसकी एजेंसियाँ समाज कल्याण योजनाओं के लिये  आधार कार्ड अनिवार्य नहीं कर सकती। शीर्ष अदालत ने हालाँकि यह भी स्पष्ट किया कि गैर कल्याणकारी कार्यों, जैसे बैंक खाता खुलवाने में आधार कार्ड मांगने से मना नहीं किया जा सकता। 
  • आधार की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका कई साल से सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। तब से अदालत ने समय-समय पर कुछ अंतरिम निर्णय सुनाए हैं, पर कभी भी कल्याणकारी योजनाओं में आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने की इज़ाज़त नहीं दी।
  • पारदर्शिता के तकाज़े से आधार नंबर की मांग के औचित्य से इनकार नहीं किया जा सकता। पर जब आधार की संवैधानिकता को ही सर्वोच्च अदालत में चुनौती दी गई हो और इस पर संविधान पीठ का फैसला आना बाकी हो, तो थोड़े-थोड़े अंतराल पर आधार की अनिवार्यता का दायरा बढ़ाते जाने के फरमान सरकार के उतावलापन को ही दर्शाते हैं। 
  • एक विडंबना यह भी है कि सबके लिये  सब जगह आधार अनिवार्य करती जा रही सरकार ने चुनावी चंदे से संबंधित जो नया प्रावधान किया है वह पारदर्शिता के तकाज़े  से कतई मेल नहीं खाता।