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सूअर और मानव के स्टेम कोशिकाओं का संयोजन

  • 28 Jan 2017
  • 7 min read

सन्दर्भ :

गौरतलब है, कि वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे भ्रूणों को उत्पन्न किया है जिनमें सूअर और मानव के स्टेम कोशिकाओं का संयोजन है | एक अध्ययन के अनुसार, यह एक दिन में विकसित होने योग्य प्रत्यारोपण अंगों की दिशा में पहला कदम हैं | हालाँकि, अनुसंधानकर्ताओं ने इस  कोशिका (Peer-reviewed journal Cell) की समीक्षा करते हुए इस बात का उल्लेख किया है कि यह अनुसन्धान उम्मीद से अधिक कठिन सिद्ध हुआ है और अभी  अपने आरंभिक चरण में ही है |  परन्तु, इसके बावजूद भी एक पहले कदम या प्रथम प्रयास के रूप में यह निश्चित ह महत्त्वपूर्ण है |

उद्देश्य :

साल्क इंस्टिट्यूट ऑफ़ बायोलॉजिकल स्टडीज की जीन एक्सप्रेशन प्रयोगशाला ( Salk Institute of Biological Studies' Gene Expression Laboratory)  में संचालित, इस अनुसन्धान का मुख्य उद्देश्य क्रियात्मक और प्रत्यारोपण योग्य  ऊतकों अथवा अंगों को उत्पन्न करना है | 

प्रक्रिया के प्रमुख चरण :

  • इस प्रक्रिया में, वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम वयस्क स्टेम कोशिकाओं-- जिन्हें मध्यवर्ती इनड्यूस्ड प्लुरीपोटेंट स्टेम कोशिकाओं (Intermediate induced pluripotent stem cells)  के नाम से जाना जाता है--  को सूअर के भ्रूणों में प्रत्यारोपित किया तथा उन्हें चार सप्ताह तक विकसित होने के लिए छोड़ दिया |
  • उन्होंने पाया कि सूअर के भ्रूण में मानवीय कोशिकाओं ने मांसपेशियों के ऊतकों में बदलना प्रारंभ कर दिया |
  • इस प्रयोग में लगभग 1,500 सूअर के भ्रूणों को शामिल किया गया था तथा इसमें चार वर्षों का समय लगा | 
  • ध्यातव्य है, कि इन प्रयोगों के जटिल स्वभाव के कारण इसमें पहले आकलित किये गए समय की तुलना में अधिक समय लगा था |
  • विदित हो, कि इसके अतिरिक्त एक पूर्ववर्ती शोध के अंतर्गत चूहों और मूषकों ( Rat & Mice ) जो कि नजदीकी रूप से सम्बन्धित हैं ,  के संयोजन को उत्पन्न किया गया था |
  • ग्रीक मिथक के अनुसार, दो प्रजातियों  के मिलने से एक संकर प्रजाति  के  चिमेरा (chimera) की उत्पत्ति होती है | अतः वैज्ञानिकों ने अपने इस प्रयोग में मानव-जंतु के किसी पदार्थ को संयुक्त करने से पूर्व, इनके भ्रूणों को समाप्त कर दिया था |


आलोचना के बिंदु :

जहाँ एक ओर, यह शोध विज्ञान के नए द्वार खोलने का दावा कर रहा है  वहीं, मानव और जानवरों के संयोजन की धारणा ने विवादों को जन्म दिया है | इससे कई  नैतिक प्रश्न भी उठ रहे हैं,  क्योंकि इन प्रयोगों ने सैद्धान्तिक व विशेष रूप से - प्रायोगिक स्तर पर मानवीय विशेषताओं वाले जीवों को उत्पन्न करने की संभावना को जन्म दिया है |

  • नैतिकता का मसला - वैज्ञानिकों के एक वर्ग का कहना है कि सूअर के भ्रूण में अधिक मात्रा में मानव डीएनए डालने के गंभीर नतीजे निकल सकते हैं। इससे मानव मस्तिष्क या चेहरे वाला सुअर पैदा हो सकता है। 
  • सम्भवतः यदि वे बुद्धिमान भी हुए तो इससे आगामी खतरों और नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल होगा |
  • चिंता यह भी है, कि इस तरह तैयार किए गए अंगों से भविष्य में मनुष्य में सूअरों में पाए जाने वाले वायरस पहूँच सकते हैं। 
  • दो जीव प्रजातियों को जैविक तौर पर मिलाने से मानवीय मनोविज्ञान पर भी असर पड़ सकता है।
  • परन्तु, साल्क संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, सूअर के भ्रूण में मानवीय योगदान का स्तर निम्न था और इसमें मस्तिष्क की कोशिकाओं को शामिल नहीं किया गया था | 

यह रिसर्च महत्वपूर्ण क्यों है ? 

  • पशु जैव प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने इस शोध को अनूठा माना है क्योंकि इसने भविष्य में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया है |
  • यह शोध-कार्य वैज्ञानिक समुदाय को उद्भव,विकास और रोगों को समझने में सहायता प्रदान करेगा तथा निश्चित ही अंगों की कमी के निवारण हेतु खोजे जाने वाले उपायों को दिशा  प्रदान करेगा|
  • इस तकनीक से एक दिन सूअर या अन्य किसी पशु में मानवीय अंग विकसित किए जा सकेंगे | वर्तमान में दुनियाभर में जरूरत के मुकाबले प्रत्यारोपण के लिए काफी कम अंग मिल पाते हैं |
  • इस तकनीक से प्रत्यारोपण के लिए जरूरी अंगों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित होने की उम्मीद है |
  • इस तरह बने अंग मानव की प्रतिरक्षा प्रणाली के अनुकूल होंगे और शरीर उन्हें खारिज नहीं करेगा |
  • इस अध्ययन में, विद्यमान क़ानूनी और नैतिक दिशा-निर्देशों का पहले से ही अनुसरण किया गया था| 
  • इसके अंतर्गत भ्रूण को प्रदत्त, अधिकतम समय में विकसित करने कि अनुमति प्रदान की गई |
  • इस सन्दर्भ में यह भी  महत्वपूर्ण है, कि आगे की जाने वाली इस प्रकार की किसी भी अन्य खोज को, पूर्ण पारदर्शिता के साथ करना होगा जिससे यह सार्वजानिक जाँच और बहस का मुद्दा न बन सके |
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