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केंद्र ने अधिसूचित किया कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2017

  • 09 Jan 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार द्वारा 3 जनवरी, 2018 को कंपनी (संशोधन) अधिनियम-2017 (संशोधित अधिनियम) को अधिसूचित किया गया है। इस संशोधित अधिनियम के कुछ प्रावधानों से ऋणशोधन एवं दिवालिया संहिता (the Insolvency and Bankruptcy Code), 2016 की कार्यप्रणाली पर भी प्रभाव पड़ेगा।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 53 के अंतर्गत, डिस्काउंट पर शेयर जारी करने को निषिद्ध किया गया है। 
  • संशोधित अधिनियम के अंतर्गत यदि डेब्ट रिस्ट्रक्चरिंग स्कीम अथवा कोड (debt restructuring scheme or Code) के तहत किसी संवैधानिक प्रस्ताव के अंतर्गत ऋणदाता के ऋण को शेयर में परिवर्तित किया जाता है तो ही कंपनियों द्वारा किसी ऋणदाता को डिस्काउंट पर शेयर जारी किये जा सकते है।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 197 के अंतर्गत कंपनी को सकल लाभ के 11 प्रतिशत से अधिक प्रबंधकीय पारिश्रीमिक (managerial remuneration) प्रदान करने के संदर्भ में एक जनरल मीटिंग में इसकी अनुमति लेनी होगी।
  • संशोधित अधिनियम के अनुसार, कंपनी को किसी बैंक या सार्वजनिक वित्तीय संस्थान या गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्रधारक (non-convertible debenture holders) या अन्य सुरक्षित ऋणदाताओं (secured creditor) द्वारा भुगतान में चूक होने पर इस प्रकार का प्रबंधकीय वेतन प्रदान करने से पहले इनकी मंजू़री लेनी आवश्यक होगा।
  • साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस प्रकार की मंजू़री को जनरल मीटिंग से पहले लेना होगा।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 247 के अंतर्गत पंजीकृत मूल्यकर्त्ता (registered valuer) को किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुचि वाली संपत्ति या संपत्ति के आकलन के दौरान या आकलन के बाद रुचि वाली वाली संपत्ति के आंकलन पर रोक लगाई गई है। 
  • संशोधित अधिनियम में अब पंजीकृत मूल्यकर्त्ता को उसकी नियुक्ति से तीन वर्ष पहले या उसके द्वारा संपत्ति का मूल्यांकन करने के तीन वर्ष के बाद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूचि वाली संपत्ति के आकलन पर भी रोक लगाई गई है।

क्या है ‘द इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016’ ?

  • विदित हो कि विगत वर्ष केंद्र सरकार ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाते हुए एक नया दिवालियापन संहिता संबंधी विधेयक पारित किया गया। 
  • गौरतलब है कि यह नया कानून 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्ववेन्सी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्ववेन्सी एक्ट 1920 को रद्द करता है और कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईजेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करता है। 
  • दरअसल, कंपनी या साझेदारी फर्म व्यवसाय में नुकसान के चलते कभी भी दिवालिया हो सकते हैं। 
  • यदि कोई आर्थिक इकाई दिवालिया होती है तो इसका मतलब यह है कि वह अपने संसाधनों के आधार पर अपने ऋणों को चुका पाने में असमर्थ है। 
  • ऐसी स्थिति में कानून में स्पष्टता न होने पर ऋणदाताओं को भी नुकसान होता है और स्वयं उस व्यक्ति या फर्म को भी तरह-तरह की मानसिक एवं अन्य प्रताडऩाओं से गुज़रना पड़ता है। 
  • देश में अभी तक दिवालियापन से संबंधित कम से कम 12 कानून थे, जिनमें से कुछ तो 100 साल से भी ज़्यादा पुराने हैं।
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