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टिंबकटू के माध्यम से प्राचीन ब्रह्मांड की ओर

  • 11 May 2018
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?
वैसे तो टिंबकटू (Timbuktu), अफ्रीका के माली देश का एक शहर तथा क्षेत्र, लंबे समय से सुदूर, अजीब और अज्ञात भूमि के चित्रण के लिये प्रसिद्ध रहा है। इसके समान नाम वाला क्षेत्र (जो कि वर्तनी में थोड़ा सा अलग है) भारत में आंध्र प्रदेश के अनंतपुर ज़िले में है, वास्तव में यह कोई सुदूरवर्ती क्षेत्र नहीं है, लेकिन यह किसी अन्य स्थान के समान भी नहीं है।

टिंबकटू (Timbaktu)

  • यहाँ वो किसान निवास करते हैं जो स्थायी कृषि तथा जैविक खेती में विश्वास करते हैं। 
  • यह 1990 तक बंजर भूमि थी जब तक कि सामाजिक कार्यकर्त्ता सी. के. गांगुली और मैरी वट्टमट्टम ने इसे गोद नहीं लिया, उन्होंने इसे स्थानीय किसानों की मदद से एक हरे स्वर्ग के रूप में परिवर्तित कर दिया। 
  • उन्होंने इस स्थान को टिंबकटू नाम दिया, तेलुगू भाषा में इसका अर्थ “सरिहद्दू रेखा” या आखिरी क्षितिज है जहाँ धरती आसमान से मिलती है।
  • यह क्षेत्र असामान्य चट्टानी संरचनाओं वाली पहाड़ियों से घिरा हुआ है। 
  • यहाँ की हवा स्वच्छ है, आसमान साफ है, व्यावहारिक रूप से यहाँ कोई शोर नहीं है और महत्त्वपूर्ण यह है कि इस स्थान पर आधुनिक डिजिटल प्रौद्योगिकी के निशान बहुत कम हैं।   

महत्त्व 

  • यह ऐसा स्थान है जिसकी तलाश वैज्ञानिकों द्वारा आसमान से आने वाली कमजोर विद्युत चुम्बकीय तरंगों का पता लगाने के लिये किया जा रहा है वे इसे रेडियो क्वाइट (एक ऐसा क्षेत्र जहां आधुनिक तकनीक द्वारा उत्पन्न संकेतों का वस्तुतः कोई हस्तक्षेप नहीं है) कहते हैं।
  • यह वह स्थान है जहाँ रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI), बंगुलुररू के वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग करने का निर्णय किया है, जिसके परिणाम (जिनके एक माह के अंदर आने की संभावना है) प्राचीन ब्रहमांड के संदर्भ में हमारी जानकारी को विशेष रूप से बदल सकते हैं। विशेष रूप से उन घटनाओं के बारे में जिनके कारण बिग-बैंग के 3,80,000 साल बाद प्रथम तारों (stars) का निर्माण हुआ।
  • बड़े आकार के डोरनोब से जुड़े हुए और विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए एंटीना जो कि गोलाकार एल्यूमिनियम की प्लेट जैसा दिखाई देता है, उसका व्यास लगभग डेढ़ मीटर है। इसके माध्यम से आसमान से आने वाले रेडियो संकेतों का पता लगाने के लिये वैज्ञानिक हाल ही में टिंबकटू में थे। 
  • एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी (ASU) के शोधकर्त्ताओं के एक समूह द्वारा किए गए चौंकाने वाले अवलोकनों को सत्यापित करने के लिये वैज्ञानिक संशोधित उपकरणों के साथ दोबारा टिंबकटू का भ्रमण करेंगे।
  • वैज्ञानिकों के समूह ने ब्रह्मांडीय माइक्रोवेव पृष्ठभूमि विकिरण के स्पेक्ट्रम में असामान्य और अस्पष्ट आकार की सूचना दी थी, जो इनके उपकरणों द्वारा इस साल फरवरी में ऑस्ट्रेलिया में ऐसे ही स्थान पर ग्रहण की गई थी। 

कॉस्मिक माइक्रोवेव पृष्ठभूमि या CMB
ये प्रारंभिक ब्रह्मांड (जब पदार्थ का निर्माण भी नहीं हुआ था) के समय से होने वाला एक सर्वव्यापी लेकिन कमज़ोर विकिरण है। यह विकिरण ब्रह्मांड में दिखाई देने वाले तारों या आकाशगंगाओं जैसे किसी पिंड द्वारा नहीं होता है। ये एक ऐसे समय से हो रहा है जब इन सारी चीज़ों का निर्माण होना शेष था। यह विकिरण प्रारंभिक ब्रह्मांड का एक अवशेष है जब पदार्थ और विकिरण ऊष्मागतिक संतुलन में थे। जब भी हम CMB को देखते हैं तो वास्तव में हम उस ब्रह्मांड को देख रहे होते हैं जो बिग-बैंग के 3,80,000 साल बाद था। 

CMB का योगदान 

  • CMB, 1964 में अपनी खोज के समय से ही प्रारंभिक ब्रह्मांड के बारे में जानकारी के लिये महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है। 
  • इसमें शामिल संकेतों से वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि प्रारंभिक ब्रह्मांड गर्म, घने और समान गैसों, अधिकांशतः हाइड्रोजन से भरा था और जब गैसों की ये बूंदें  गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में एक साथ आईं तो सबसे पहले तारों का निर्माण हुआ था। यह वह समय था जब दृश्य प्रकाश ने भी ब्रहमांड में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज कराई। वैज्ञानिक इस काल को ब्रह्मांड की शुरुआत (cosmic dawn) की संज्ञा देते हैं। 
  • CMB द्वारा उत्पन्न स्पेक्ट्रम बहुत ही सहज है। हालाँकि, इसके आकार में थोड़ी हरकत या विकृतियाँ होती हैं। इसमें से प्रत्येक हरकत में प्रथम तारे के निर्माण के समय होने वाली विशेष घटना की जानकारी सन्निहित होती है। ब्रह्मांड का मौजूदा सिद्धांत इन हरकतों के आकार की भविष्यवाणी करता है जिन्हें विभिन्न परिदृश्यों  में CMB स्पेक्ट्रम में पाया जाता है। इस प्रकार अब तक, CMB स्पेक्ट्रम का सिद्धांत तथा निरीक्षण पूर्ण रूप से मेल खाते हैं।  

शोध

  • ASU के शोधकर्त्ताओं ने जिन हरकतों के बारे में जानकारी दी थी वो सैद्धांतिक पूर्वानुमानों से काफी अलग थे..... इन्होंने 80 मेगाहर्ट्ज आवृत्ति वाले क्षेत्र के आस-पास स्पेक्ट्रम में एक अप्रत्याशित ढलान (dip) की सूचना दी है लेकिन इसका आकार पूरी तरह से सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है।
  • इन परिणामों के बारे में वैज्ञानिक दुनिया में बहुत उत्साह है, और क्षितिज पर कुछ बड़ा होने की संभावना है।
  • इसलिए, ASU के शोधकर्त्ता ये जानने के लिये कि यह सही है या नहीं, इस प्रयोग को एक बार फिर से दोहराने की तैयारी कर रहे हैं। वे उन्हीं उपकरणों तथा सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर रहे हैं जिनका उपयोग उन्होंने पिछली बार भी किया था। RRI का एक समूह स्वतंत्र रूप से उन शोधों को अपने उपकरणों के माध्यम से सत्यापित करने की कोशिश कर रहा है।
  • RRI के वैज्ञानिक अब पिछले कुछ समय से CMB विकिरण पर अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन उच्च आवृत्ति वाले क्षेत्रों में। CMB स्पेक्ट्रम में विभिन्न आवृत्तियाँ प्रारंभिक ब्रह्मांड के विभिन्न समयों के साथ परस्पर संबंध प्रदर्शित करती हैं। ASU के शोधकर्त्ताओं द्वारा जारी किया गया असामान्य आकार, सापेक्षिक रूप से निम्न आवृत्ति में पाया गया था। 

आगे की राह

  • यदि RRI, ASU के शोधकर्त्ताओं के निष्कर्ष की पुष्टि करने में सफल हो जाता है तो भौतिकी तथा खगोलिकी के लिये अनुमान काफी विशाल हो सकता है। 
  • वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि टिंबकटू में कोई परिवर्तन नहीं हुआ क्योंकि इसकी खोज पिछले वर्ष ही की गई थी।
  • यदि इनके उपकरण निम्न आवृत्ति पर शुद्ध रूप से CMB को ग्रहण करने के लिये आवश्यक ग्रहणशीलता को प्राप्त करने में असफल रहे तो वैज्ञानिकों को अपने प्रयोग करने के लिये लद्दाख में इससे भी शांत क्षेत्र की तलाश करनी पड़ेगी।    
  • आवृत्ति बैंड जिसमें इनके उपकरणों को आसमान से संकेत ग्रहण करने के लिये अनुकूल बनाया गया है, 40-200 MHz है, वह FM, TV, इलेक्ट्रिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं गैजेट के माध्यम से बाधित होता है। 
  • मोबाइल फोन कम्युनिकेशन, जो उच्च आवृत्तियों पर संचालित होते हैं, अधिक समस्या नहीं उत्पन्न करते हैं। 
  • टिंबकटू के चारों तरफ की पहाड़ियों की चट्टानी संरचना अपने सभी चोटियों पर असामान्य होने के साथ-साथ नुकीली तथा खनिज संपन्न है। ये रेडियो तरंगों के हस्तक्षेप से कुछ सुरक्षा प्रदान करते हैं।
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