इंटरव्यू
3 सी, जिनसे सरकार को सावधान रहना चाहिये
- 26 May 2018
- 6 min read
संदर्भ
कई तिमाहियों से चली आ रही सौम्य मुद्रास्फीति संबंधी स्थिति अब खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है। भारत इस समय कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी और रूपये में होती तेज गिरावट की दोहरी मार झेल रहा है। यह एक प्रबल और घातक संयोजन है, जिससे मुद्रास्फीति का जोखिम और बढ़ जाता है। यदि यह ट्रेंड जारी रहता है तो सरकार को सरकार को राजनीतिक क्षति का सामना कर सकता है।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में कच्चे तेल की कीमतें $80 प्रति बैरल के करीब हैं, जो दो वर्ष पूर्व $30 प्रति बैरल पर थीं।
- बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों ने कच्चे तेल के दामों को बहुत ऊँचे स्तर पर पहुँचा दिया है।
- विश्लेषकों का अनुमान है कि कच्चे तेल की कीमतें और भी बढ़ सकती हैं। यदि ऐसा होता है, तो वैश्विक आर्थिक विकास की जो गति अभी हम देख रहे हैं, उसे गँवा सकते हैं।
- आर्थिक विकास और ऊर्जा खपत के बीच सकारात्मक सहसंबंध होता है। फिलहाल, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा उत्पादों के लिये वैश्विक उपभोग वृद्धि मजबूत है। लेकिन, लगातार मूल्य स्तर उच्च बने रहने के कारण मांग वृद्धि में कमी आ सकती है।
- ऐसी स्थिति में आर्थिक संवृद्धि प्रभावित हो सकती है और वैश्विक वस्तुगत व्यापार (world merchandise trade) में हो रही वृद्धि पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
- मुद्रा के मामले में, रुपया जनवरी के 63 रुपये प्रति डॉलर से गिरकर अभी 68 रुपये प्रति डॉलर के पास पहुँच चुका है।
- रुपये की कमजोरी से आयातित वस्तुओं की लागत और बढ़ जाती है। यही वजह है कि हमारा आयात और महँगा हो चुका है।
- यह सर्वविदित है कि हमारा 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात किया जाता है। ऐसे में, कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कोई भी वृद्धि आयात लागत पर सीधा असर डालेगी, जिससे मुद्रास्फीति में और अधिक बढ़ोतरी हो सकती है।
- कच्चे तेल और मुद्रा के बाद हमें फसलों की ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
- देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों में नाराजगी है। उन्हें, उनकी फसलों के लिये सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी प्राप्त नहीं हुआ है।
- आने वाले खरीफ के सीजन में कुछ फसलों के बुआई क्षेत्र में कमी आ सकती है।
- हालाँकि, इस वर्ष के लिये दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। लेकिन, अभी भी हमारे पास इस बात का कोई संकेत नहीं है कि वर्षा का कालिक और स्थानिक वितरण कैसा होगा।
- अतः आने वाले महीनों में 3सी अर्थात् कच्चा तेल (crude), फसल (crops) और मुद्रा (currency) मुद्रास्फीति संबंधी परिदृश्य का निर्धारण करेंगे।
- आगामी वर्ष में आम चुनाव होने वाले है, ऐसे में मुद्रास्फीति जनता का ध्यान अपनी ओर खींच सकती है।
- ध्यातव्य है कि जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम वर्तमान कीमतों के आधे स्तर थे, तब सरकार ने इसका पूरा लाभ उपभोक्ताओं को स्थानांतरित नहीं किया, बल्कि खनिज तेलों और संबंधित उत्पादों से अधिक राजस्व प्राप्त करने हेतु समय-समय पर करों में और अधिक वृद्धि कर दी गई।
- सरकार का कहना था कि विभिन्न कल्याण कार्यक्रमों को वित्त पोषित करने के लिये बहुत अधिक राजस्व की आवश्यकता थी। इस वजह से पूर्ण लाभ को उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँचाया गया।
- लेकिन अब जब कच्चे तेल के दामों में वृद्धि हो रही है तो उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है और उन्हें पेट्रोल और डीजल की बढ़ी हुई कीमतों का भुगतान करना पड़ रहा है।
- यह एकदम स्पष्ट है कि सरकार का कच्चे तेल और संबंधित उत्पादों से राजस्व पैदा करने का विचार विवेकपूर्ण नहीं था, क्योंकि वैश्विक ऊर्जा बाजार में कीमतों में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।
- कच्चे तेल जैसे अस्थिर बाजारों से महत्वाकांक्षी कल्याण कार्यक्रमों के निधियन हेतु राजस्व पैदा करने का सरकार का विचार बेहद अतार्किक था।
- अब जब तेल की कीमतों में वृद्धि हो चुकी है, तो सरकार स्वयं का बचाव करने की स्थिति में नहीं है। उसे इस बड़ी भूल का जबाव देने की आवश्यकता है।
- अभी सरकार पर कच्चे तेल से संबंधित करों में कटौती करने हेतु जबरदस्त दबाव है, ताकि पेट्रोल और डीजल की उच्च खुदरा कीमतों में कमी आए और इसका लाभ उपभोक्ताओं को मिल सके।
- वर्तमान स्थिति से सरकार को यह सीख लेनी होगी कि अल्पकालिक बाजार कीमत बदलावों आधारित राजस्व प्राप्तियों के आधार पर दीर्घकालिक कल्याण कार्यक्रमों हेतु योजनाएँ नहीं बनानी चाहिये।