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सुप्रीम कोर्ट ने दी 24 हफ्ते के अविकसित भ्रूण के गर्भपात की इजाज़त

  • 17 Jan 2017
  • 5 min read

सन्दर्भ

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने मुंबई निवासी 24 हफ्ते की गर्भवती एक 23 वर्षीय महिला को गर्भपात की इज़ाजत दी है। न्यायालय ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट से साफ है कि भ्रूण की खोपड़ी नहीं है, इस लिहाज से बच्चे के बचने की उम्मीद नहीं है और महिला की जान को बचाने के लिये गर्भपात किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • उच्चतम न्यायालय ने मुंबई निवासी एक 23 साल की गर्भवती महिला की याचिका पर सुनवाई की, जिसने अपने 24 हफ्ते के भ्रूण का गर्भपात कराने की गुहार लगाई थी। याचिका में कहा गया था कि 21 हफ्ते में टेस्ट कराने पर पता चला कि भ्रूण के सिर का हिस्सा नहीं है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के केईएम अस्पताल को महिला का मेडिकल टेस्ट करने और रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिये थे, जबकि केंद्र सरकार से उसकी राय मांगी थी।
  • दरअसल, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में प्रावधान है कि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात नहीं किया जा सकता। इसके तहत सात साल तक की सज़ा का प्रावधान है। हालाँकि, यह छूट भी है कि अगर माँ या बच्चे को खतरा हो तो गर्भपात किया जा सकता है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई मामलों में गर्भपात की इजाज़त दी है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2014 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में एक संशोधन द्वारा गर्भपात की अनुमति प्राप्त करने की अवधि को  20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते करने का प्रस्ताव किया गया था, हालाँकि बाद के वर्षों में भी समय-समय पर यह मांग उठती रही है।
  • गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम (The Medical Termination Of Pregnancy Act) 1971
  • साधारण तौर पर इस कानून के अनुसार कुछ विशेष परिस्थितियों में 12 से 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराने की व्यवस्था की गई है। यह कानून 45 साल पुराना है, जो उस वक्त की जाँचों पर आधारित है। इस कानून के अनुसार, कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे-

                      ■ जब महिला की जान को खतरा हो।
                      ■ महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
                      ■ गर्भ बलात्कार के कारण हुआ हो।
                      ■ पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो।

निष्कर्ष 

  • गर्भपात का अधिकार, महिलाओं के लिये जीवन के अधिकार का एक भाग है। यह महिलाओं को मिलना चाहिये। ऐसी भी परिस्थिति होती है, जिसमें गर्भपात करवाना ज़्यादा नैतिक और तर्कसंगत लगता है, जैसे कि गर्भधारण के कारण यदि माता के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो। साथ ही, अगर टेस्ट में यह पाया जाए कि गर्भ में पल रहे बच्चे में कुछ असाधारण बीमारी, विकलांगता या उसका सही तरह से विकास नहीं हुआ है, अगर ऐसी स्थिति में माता गर्भपात कराना चाहे तो क्या यह गलत या अनैतिक होगा?
  • इस प्रकार के सवालों के जवाब न तो विधायिका के पास हैं और न ही अभी तक न्यायपालिका ने इस संबंध में विशेष कार्य किया है। अतः इस विषय पर समुचित अध्ययन के पश्चात् मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट में कुछ सुधारवादी संशोधन तो होने ही चाहियें।
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