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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वस्त्र उद्योग: समस्या और समाधान

  • 26 Jun 2017
  • 5 min read

संदर्भ
जैसा कि, देश में 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर (GST) लागू करने की तैयारी की जा रही है। ऐसें में अन्य उद्योगों के साथ-साथ कपड़ा उद्योग में भी जी.एस.टी. के संभावित प्रभावों को लेकर कपड़ा व्यापारियों के मध्य कुछ चिंता बनी हुई है। वस्तुत: अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता का सामना करने के लिये कपड़ा उद्योग केंद्रीय मदद की तरफ देख रहा है। उल्लेखनीय है कि भारतीय वस्त्र और कपड़ा उद्योग अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों के लिये गुणवत्ता और विश्वसनीयता के कारण आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

कपड़ा उद्योग के ट्रेंड्स

  • वर्ष 2016 से मार्च 2017  के बीच वस्त्र एवं कपड़ा निर्यात में मात्र 0.9% की वृद्धि हुई।
  • ‘सूती टेक्सटाइल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल’ (Texprocil) के डाटा से पता चलता है कि पिछले वर्ष की तुलना में 2016-17 में सूती धागे, कपड़े और कृत्रिम वस्त्र (cotton yarn, fabrics and made-ups ) के निर्यात में 3.06% की गिरावट आई है।
  • मानव निर्मित धागे, कपड़ा एवं कृत्रिम वस्त्र का निर्यात भी 2.75% पर ही सिमट गया। हालाँकि, तैयार वस्त्र परिधान (ready-made garment) के निर्यात में 2.31% की बढ़ोतरी हुई। 

अन्य देशों से तुलना 

  • भारत के पास चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा ‘एकीकृत कपड़ा निर्माण सुविधा (integrated textile manufacturing facility) केंद्र होने के बावज़ूद निर्यात का स्तर निम्न बना रहना चिंता का विषय है। दूसरी तरफ बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों के निर्यात में काफी बढ़ोतरी हो रही हैं।
  • दुनिया के वस्त्र और कपड़ों के निर्यात में चीन का 35% हिस्सा है, जबकि भारत का केवल 4.89% ही हिस्सा है। बांग्लादेश और वियतनाम क्रमश: 4.62% और 4.05% हिस्सा रखते हैं, जो कि करीब-करीब भारत के आसपास ही है। 
  • विश्व स्तर पर, वस्त्र एवं कपड़ों की खपत का 65% मानव निर्मित फाइबर (man-made fibre) आधारित है, जबकि शेष 35% कपास (Cotton) आधारित है।
  • चीनी निर्यात का 80% मानव निर्मित फाइबर आधारित है, लेकिन लगभग 80% भारतीय निर्यात कपास आधारित है। इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय कपड़ा उद्योग सीमित क्षेत्र में ही प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

समाधान

  • वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने कपड़ा क्षेत्र के लिये 6,000 करोड़ रुपए के ‘विशेष पैकेज’ की घोषणा की थी। 
  • चूंकि यह उद्योग पूरे देश में समूहों में फैला हुआ है तथा काफी खंडित क्षेत्रों में अवस्थित है। यही कारण है कि इस उद्योग हेतु सामान की आवाज़ाही अधिक होती है। अत: वस्त्र क्षेत्र को बेहतर सड़क संपर्क, प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय स्थलों के लिये जहाज़ो के संचालन जैसे संरचनात्मक ढाँचे की तुरंत आवश्यकता है।
  • उद्योग क्षेत्र और सरकार दोनों को समग्र रूप से काम करना चाहिये, ताकि इस उद्योग के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का निर्माण किया जा सके।
  • बुनाई और प्रसंस्करण खंडों को मज़बूत करने तथा छोटे और मध्यम पैमाने के निर्यातकों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
  • अन्य क्षेत्रों में निवेश करने के बजाय वस्त्र मूल्य श्रृंखला (textile value chain) में अपने लाभ को पुनः निवेश करने के लिये उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • वस्त्र क्षेत्र से संबंधित नीतियाँ, निर्यातकों और घरेलू उत्पादकों के लिये अलग-अलग होनी चाहिये।
  • कपड़ा उद्योग एक ऐसा उद्योग है, जो कीमतों और मांग में लगातार उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा हैं।
  • अत: वस्त्र उद्योग से संबंधित नीतियों को निर्यातोन्मुखी बनाना चाहिये।
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