इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिये ट्रान-1 फॉर्म | 14 Dec 2017
चर्चा में क्यों?
वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) को लागू किये जाने के दौरान मौजूदा करदाताओं को विश्वास पर आधारित इनपुट टैक्स क्रेडिट देने की व्यवस्था की गई है। इसके लिये करदाताओं द्वारा ‘ट्रान-1’ फॉर्म भरा जाएगा। इससे करदाता जी.एस.टी. व्यवस्था लागू होने से पूर्व अपने पिछले रिटर्न में उल्लिखित इनपुट टैक्स क्रेडिट की शेष राशि के आधार पर इनपुट टैक्स क्रेडिट प्राप्त कर सकते हैं। ट्रान-1 फॉर्म भरने की अंतिम तिथि 27 दिसंबर, 2017 है।
प्रमुख बिंदु
- स्वैच्छिक अनुपालन की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए ट्रान-1 फॉर्म में संशोधन करने का प्रावधान किया गया है।
- पी.आई.बी. द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, कुछ करदाताओं द्वारा सी.जी.एस.टी. के तहत काफी अधिक मात्रा में ट्रांजिशनल क्रेडिट हासिल करने संबंधी सूचना प्राप्त हुई है जो न तो उद्योगों के इनपुट टैक्स क्रेडिट के रुझान से मेल खाते हैं और न ही स्वयं करदाताओं द्वारा इससे पहले कभी इतनी मात्रा में इनपुट टैक्स क्रेडिट निर्मित किये गए थे।
- इस तरह के भारी-भरकम इनपुट टैक्स क्रेडिट के लिये स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है अथवा यह प्रामाणिक गलती का मामला हो सकता है।
- हालांकि, यह भी पाया गया है कि अनेक मामलों में बहुत ज़्यादा ट्रांजिशनल क्रेडिट का दावा किया गया है, जिसके लिये संभवत: कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं होगा।
- इस तरह की यूनिटों के बारे में आवश्यक जानकारी हासिल की जा रही है। इस तरह के रवैये से करदाता और कर प्रशासन के बीच विश्वास भंग होता है, जबकि जी.एस.टी. में स्व–आकलन व्यवस्था का यही आधार है।
जी.एस.टी. की पृष्ठभूमि
- वस्तुतः जी.एस.टी. के रूप में देश को एक ऐसी एकीकृत अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था प्राप्त होने वाली है, जो न केवल संपूर्ण भारत को एकल बाज़ार के रूप में प्रस्तुत करेगी वरन् समानता भी प्रदान करेगी।
- जी.एस.टी. के अंतर्गत जहाँ एक ओर केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर, काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे अप्रत्यक्ष कर को शामिल किया गया है, वहीं दूसरी ओर राज्यों में लगाए जाने वाले मूल्यवर्द्धन कर, मनोरंजन कर, चुंगी तथा प्रवेश कर, विलासिता कर आदि भी जी.एस.टी. के अंतर्गत सम्मिलित किये गए हैं।
- जी.एस.टी. के लागू होने से सरकार के साथ-साथ व्यापार एवं उद्योग जगत तथा आम उपभोक्ता सभी लाभान्वित हो रहे हैं।
जी.एस.टी. परिषद
- संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279 A के अनुसार, जी.एस.टी. परिषद जोकि केंद्र और राज्य का संयुक्त फोरम होगा, में निम्नलिखित सदस्य होने चाहिये।
► केन्द्रीय वित्त मंत्री- अध्यक्ष
► केंद्रीय राज्य मंत्री, वित्त एवं राजस्व के प्रभारी –सदस्य
► वित्त अथवा कर प्रभारी मंत्री या प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा मनोनीत कोई अन्य मंत्री-सदस्यों के रूप में | - अनुच्छेद 279A (4) के अनुसार, परिषद जी.एस.टी. से संबंधित महत्त्वपूर्ण मुद्दों जैसे-ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ जिन्हें जी.एस.टी. में शामिल अथवा बाहर किया जाना है, आधुनिक जी.एस.टी. कानून, वे सिद्धांत जो आपूर्ति के स्थान का निर्धारण करते हैं, जी.एस.टी. की दरें, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान अतिरिक्त संसाधनों में वृद्धि करने के लिये विशेष दरें, कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधान आदि के संबंध में सिफारिशें करेगी।
- केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में 12 सितम्बर 2016 को जी.एस.टी. की बैठक तथा निम्नलिखित विवरणों के साथ इसके सचिवालय के गठन को भी स्वीकृति दी।
► संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279 A के आधार पर जी.एस.टी. परिषद का सृजन।
► जी.एस.टी. परिषद के सचिवालय का सृजन, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में होगा।
► जी.एस.टी .परिषद के पदेन सचिव के रूप में राजस्व सचिव की नियुक्ति।
► जी.एस.टी. परिषद की सभी बैठकों में अध्यक्ष, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड को स्थायी आमंत्रक (जिन्हें मत देने का अधिकार नहीं होगा) को शामिल करना। - जी.एस.टी. परिषद में अतिरिक्त सचिव (भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव के स्तर पर) तथा जी.एस.टी. परिषद सचिवालय में कमिश्नर के चार पदों (भारत सरकार के संयुक्त सचिव के स्तर पर) का सृजन करना।
- केंद्र सरकार ने यह भी निर्णय लिया था कि वह जी.एस.टी. परिषद सचिवालय के आवर्ती (recurring) और गैर-आवर्ती खर्चों (non-recurring expenses) के लिये पर्याप्त फंड उपलब्ध कराएगी, जिसकी संपूर्ण लागत केंद्र सरकार द्वारा वहन की जाएगी।
- जी.एस.टी. परिषद का प्रबंधन केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त किये गए अधिकारियों द्वारा किया जाएगा।