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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और नाटो के बीच वार्ता

  • 18 Aug 2022
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नाटो, सोवियत संघ।

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों का महत्त्व।

हाल ही में यह रिपोर्ट सामने आई है कि भारत ने पहली बार 12 दिसंबर, 2019 को ब्रुसेल्स में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के साथ अपनी पहली राजनीतिक वार्ता आयोजित की थी।

नाटो:

  • उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है।
  • वर्तमान में इसमें 30 सदस्य राज्य शामिल हैं।
    • मूल सदस्य:
      • बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्राँस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
    • अन्य देश:
      • ग्रीस और तुर्की (वर्ष 1952), पश्चिम जर्मनी (वर्ष 1955, वर्ष 1990 से जर्मनी के रूप में), स्पेन (वर्ष 1982), चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (वर्ष 1999), बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, और स्लोवेनिया (वर्ष 2004), अल्बानिया और क्रोएशिया (वर्ष 2009), मोंटेनेग्रो (वर्ष 2017), और नार्थ मैसेडोनिय(वर्ष 2020)।
    • फ्रांँस वर्ष 1966 में नाटो की एकीकृत सैन्य कमान से हट गया लेकिन संगठन का सदस्य बना रहा। इसने वर्ष 2009 में नाटो की सैन्य कमान में अपना पद फिर से शुरू किया।
      • हाल ही में, फिनलैंड और स्वीडन ने नाटो में शामिल होने के लिये रुचि दिखाई है।
  • मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम।

NATO

नाटो-इंडिया पॉलिटिकल डायलॉग:

  • परिचय:
    • भारत ने 12 दिसंबर, 2019 को ब्रुसेल्स में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के साथ अपनी पहली राजनीतिक बातचीत की।
  • महत्त्व:
    • नाटो चीन और पाकिस्तान दोनों को द्विपक्षीय वार्ता में शामिल करता रहा है।
    • जबकि नाटो को राजनीतिक वार्ता में शामिल करने से भारत को क्षेत्रों की स्थिति और भारत के लिये चिंता के मुद्दों के बारे में नाटो की धारणाओं में संतुलन लाने का अवसर मिलेगा।
      • अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका सहित, चीन और आतंकवाद पर भारत तथा नाटो दोनों के दृष्टिकोणों में अभिसरण है।
  • समस्याएँ:
    • नाटो के दृष्टिकोण के अनुसार, उसके सामने सबसे बड़ा खतरा चीन नहीं, बल्कि रूस है, जिसकी आक्रामक कार्रवाई यूरोपीय सुरक्षा के लिये खतरा है।
      • इसके अलावा यूक्रेन और इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस ट्रीटी जैसे मुद्दों को रखने से रूसी इनकार के कारण नाटो-रूस परिषद (NATO-Russia Council) की बैठके बुलाने में नाटो/ NATO को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था,
      • नाटो देशों के बीच मतभेद को देखते हुए, चीन पर उसके विचार को मिश्रित रूप में देखा गया, जबकि इसने चीन के उदय पर विचार-विमर्श किया, इसने चुनौती और अवसर दोनों को प्रस्तुत किया,
        • इसके अलावा अफगानिस्तान में नाटो ने तालिबान को राजनीतिक इकाई के रूप में देखा।
  • नाटो का दृष्टिकोण:
    • भारत के साथ संवाद नाटो देशों के बीच सहयोग को और बढ़ाएगा एवं भारत की भू-रणनीतिक स्थिति अद्वितीय परिप्रेक्ष्य साझा करती है और भारत के अपने क्षेत्र तथा उसके बाहर अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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