तालचेर यूरिया परियोजना | 18 Sep 2019
चर्चा में क्यों?
तालचेर यूरिया परियोजना (Talcher Urea Project) के लिये कोयला गैसीकरण संयंत्र (Coal Gasification Plant) हेतु अनुबंध पर 17 सितंबर, 2019 को नई दिल्ली में हस्ताक्षर किये गए।
प्रमुख बिंदु:
- भारत एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि कार्यों में संलग्न है, साथ ही खाद्यान्न सुरक्षा हेतु जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग कृषि के उत्पादन पर आश्रित है।
- देश के खाद्यान्न उत्पादन में उर्वरकों, विशेषकर भारतीय संदर्भ में यूरिया की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वर्तमान में यूरिया की आवश्यकता को पूरा करने के लिये भारत प्रत्येक वर्ष लगभग 50 से 70 लाख टन यूरिया का आयात करता है।
- सरकार द्वारा घरेलू स्तर पर यूरिया उत्पादन को बढ़ाने हेतु सिंदरी, बरौनी, रामागुंडम और गोरखपुर जैसी बंद पड़ी इकाइयों के पुनरुद्धार के प्रयास किये जा रहे हैं।
- वर्तमान में देश में यूरिया का उत्पादन प्राकृतिक गैस और द्रवीकृत प्राकृतिक गैस के उपयोग से किया जा रहा है।
- द्रवीकृत प्राकृतिक गैस का आयात करना महंँगा है और इसमें अत्यधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। इसलिये देश में यूरिया और अन्य उर्वरकों के उत्पादन के लिये स्वदेशी कच्चे माल का उपयोग किया जा रहा है। तालचेर उर्वरक परियोजना इस दिशा में उठाया गया एक कदम है जिसमें यूरिया के उत्पादन के लिये पेटकोक के साथ स्थानीय कोयले का उपयोग किया जाएगा।
- इस परियोजना के लिये पेटकोक पारादीप रिफाइनरी से लिया जाएगा। यह परियोजना पर्यावरण की अनुकूलता के साथ ही प्रचुर मात्रा में उपलब्ध घरेलू कोयले के उपयोग को बढ़ावा देगी, साथ ही इस तकनीक की सफलता से कोयले के अन्य उत्पादों जैसे- डीजल, मेथनॉल और पेट्रोकेमिकल आदि के उत्पादन में भी तेज़ी आएगी।
- यह परियोजना ओडिशा की आत्मनिर्भरता में सुधार करेगी साथ ही ओडिशा में यूरिया की उपलब्धता के माध्यम से कृषि विकास को बढ़ावा देगी।
- पर्यावरण के अनुकूल होने के कारण यह परियोजना CoP-21 पेरिस समझौते के दौरान भारत द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मदद करेगी।