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कर्नाटक में तादरी बंदरगाह के निर्माण के लिये तट की अनुमति प्रदान की गई

  • 24 Jan 2017
  • 5 min read

उल्लेखनीय है कि कर्नाटक राज्य के उत्तरी कन्नड़ क्षेत्र में टादरी बंदरगाह प्रोजेक्ट (Tadri SeaPort Project) को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (Ministry of Environment and Forest) के अवसंरचना प्रोजेक्टों के विशेषज्ञ पैनल द्वारा पर्यावरणीय एवं तटीय अनुमति प्रदान की गई है|

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि 38,000 करोड़ रुपये की लागत वाला यह औद्योगिक तथा अवसंरचना विकास सहयोग(Karnataka State Industrial and Infrastructure Development Corporation-KSIIDC) प्रोजेक्ट कर्नाटक राज्य का अब तक का सबसे बड़ा बंदरगाह प्रोजेक्ट होगा| ध्यातव्य है कि यह परियोजना सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership-PPP) के तहत प्रस्तावित परियोजना है| यह प्रोजेक्ट अघनाशिनी (Aghanashini) नदी के मुहाने पर बनाया जाएगा|
  • ध्यातव्य है कि इस बंदरगाह को प्रति वर्ष 62.36 मीट्रिक टन भार को प्रबंधित करने के लिये निर्मित किया जा रहा है| तथापि यहाँ अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात यह है कि स्थानीय समुदायों तथा पर्यावरणीय विशेषज्ञों के कड़े विरोध के बावजूद इस बंदरगाह के निर्माण कार्य को विशेषज्ञ पैनल द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है|
  • हालाँकि, इस पैनल द्वारा कुछ विशेष स्थितियों को स्पष्ट करने के पश्चात् ही इस परियोजना के निर्माण कार्य को आरंभ किये जाने की अनुमति प्रदान करने की अनुशंसा की गई है| पैनल के द्वारा KSIIDC को सर्वप्रथम वन विभाग से मंजूरी प्राप्त करने को कहा गया है क्योंकि इस बंदरगाह के निर्माण हेतु तकरीबन 200 हेक्टेयर वनों का सफाया किया जाएगा| 
  • हालाँकि इस वन क्षेत्र के नुकसान की क्षतिपूर्ति 200 हेक्टेयर क्षेत्र में मैन्ग्रोव वन लगाकर की जाएगी, परन्तु ऐसा किये जाने से पूर्व पैनल द्वारा इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक अध्ययन करने का भी आदेश दिया गया है|
  • ध्यातव्य है कि इन वैज्ञानिक अध्ययनों में इस क्षेत्र की तटीय पारिस्थितिकी में पाए जाने वाले बायवाल्वस (Bivalves), कस्तूरी (Oysters) तथा शैल मछली के अध्ययन को भी शामिल किया गया है| 
  • उल्लेखनीय है कि बायवाल्वस इस क्षेत्र के स्थानीय लोगों के लिये आय का एक मुख्य स्रोत है, परन्तु इस प्रोजेक्ट के निर्माण से उन पर पड़ने वाले प्रभावों के विषय में कोई अध्ययन नहीं किया गया है|
  • स्पष्ट है कि KSIIDC को इस प्रोजेक्ट के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिये राष्ट्रीय समुद्री विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography) अथवा समुद्री पारिस्थितिकी के किसी अन्य संस्थान द्वारा सुझाए गए समुद्री विविधता की संरक्षण प्रबंधन योजना (Marine Diversity Conservation Management Plan) का भी कार्यान्वयन करना होगा| 
  • गौरतलब है कि कुछ आलोचकों द्वारा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environment Impact Assessment) की कार्यप्रणाली पर प्रश्न-चिंह लगाते हुए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के समक्ष इस बात की  ओर ध्यान केन्द्रित किया गया है कि पर्यावरणीय प्रभाव आकलन द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले अधिकतर दस्तावेज तथा अन्य आँकड़े एवं सूचनाएँ अवैज्ञानिक परीक्षणों पर आधारित होते हैं| 
  • इतना ही नहीं इनके अंतर्गत आजीविका के नुकसान, ताज़े पानी की उपलब्धता तथा लवणीय जल में अनुचित हस्तक्षेप से सम्बन्धित किसी मुद्दे पर विचार नहीं किया गया है|
  • ध्यातव्य है कि इस पैनल के द्वारा समुद्री पारिस्थितिकी पर कोई विशेष अध्ययन किये बिना ही इस प्रोजेक्ट को अनुमति प्रदान करने की अनुशंसा की गई है| इतना ही नहीं, न तो अभी तक विकासक (Developer) द्वारा इस परियोजना के प्रारूप को अंतिम रूप प्रदान ही किया गया है और न ही इस परियोजना की विस्तृत सूचना को ही तैयार किया गया है|
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