स्वच्छ भारत की अपशिष्ट प्रबंधन समस्या | 26 Feb 2018
संदर्भ
- पिछले महीने संपन्न दावोस बैठक में भारतीय नेताओं ने व्यापार के लिये खुले देश के रूप में भारत की एक प्रभावशाली तस्वीर पेश की थी। लेकिन वास्तविक रूप में भारत के कस्बों और शहरों में जीवन की गुणवत्ता उत्साहवर्द्धक नहीं है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन शहरी केंद्रों को साफ रखने के लिये नगपालिकाओं द्वारा प्रदान कराई जाने वाली मूलभूत सेवाओं में से एक है। लेकिन अधिकांश नगरपालिकाओं द्वारा शहर के भीतर या बाहर एक डंपयार्ड पर ठोस अपशिष्ट को बेतरतीब ढंग से जमा किया जा रहा है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपशिष्ट निपटान और प्रबंधन की एक दोषपूर्ण प्रणाली का अनुसरण कर रहा है।
भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति
- भारत में प्रतिदिन 150,000 टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste-MSW) पैदा होता है। मुंबई सर्वाधिक कचरा पैदा करने वाला दुनिया का पाँचवां सबसे बड़ा शहर है।
- फिर भी केवल 83% कचरा ही इकट्ठा किया जाता है और 30% से कम कचरा उपचारित किया जाता है।
- विश्व बैंक के मुताबिक 2025 तक भारत का दैनिक अपशिष्ट उत्पादन 377,000 टन तक पहुँच जाएगा।
- इसके लिये भले ही शहरीकरण और औद्योगीकीकरण को दोषी ठहराया जाए, लेकिन भारत के बड़े शहरों द्वारा पैदा किया जाने वाला कचरा एक वास्तविक और मूर्त संकट है।
क्यों आवश्यक है MSW प्रबंधन?
- अपशिष्ट समस्या शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के लिये कई सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों को प्रस्तुत करती है, जिनमें MSW प्रबंधन प्रमुख समस्या है। यह तो सर्वविदित है ही कि शहरी अपशिष्ट हमारे स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करता है।
- इसके अतिरिक्त आजीविका के लिये कचरे के संग्रहण, छंटनी और व्यापार में अनौपचारिक रूप से कार्यरत कूड़ा-कचरा बीनने वाले हज़ारों लोगों की दुर्दशा भी एक समस्या है।
- एक अनुमान के अनुसार, कूड़ा-कचरा बीनने वाले प्रतिवर्ष नगरपालिका के बजट के लगभग 14% हिस्से की बचत कराते हैं।
- प्राकृतिक संसाधनों के न्यासी के रूप में हम भी अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करने में विफल रहे हैं।
- इसे दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल साइट पर किये जाने वाले अपशिष्ट दहन की समस्या से समझा जा सकता है। यह अपशिष्ट दहन वायु प्रदूषण की समस्या का मुख्य अवयव है।
MSW प्रबंधन की उपेक्षा क्यों?
- व्यवहारात्मक परिवर्तन द्वारा स्वच्छता को बढ़ावा देना भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम की प्रमुख प्राथमिकता रही है। क्लीन इंडिया डैशबोर्ड निरंतर इस कार्यक्रम की उपलब्धियों को ट्रैक करता है।
- इसके अनुसार, 82,607 वार्डों में से लगभग 51,734 में अब 100% डोर-टू-डोर अपशिष्ट संग्रहण की सुविधा है, जो कि नवंबर 2015 में केवल 33,278 वार्डों में उपलब्ध थी।
- लगभग 88.4 मेगावाट ऊर्जा कचरा-से-ऊर्जा (waste-to-energy-WTE) परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न की जा रही है।
- लेकिन शौचालय निर्माण और खुले में शौच की प्रथा के उन्मूलन पर असंतुलित ज़ोर देने से ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों की भारी उपेक्षा हुई है।
- भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से आगे बढ़ रही है। ऐसे में सरकार को अपशिष्ट प्रबंधन को उच्च प्राथमिकता देनी चाहिये अन्यथा भारत को भी आने वाले समय में भयंकर अपशिष्ट संकट का सामना करना पड़ सकता है।
दक्षिण कोरिया का MSW प्रबंधन मॉडल : केस स्टडी
- दक्षिण कोरिया की अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था दुनिया की सबसे परिष्कृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में से एक है। यह जानना रुचिकर हो सकता है कि किस प्रकार दक्षिण कोरिया आर्थिक विकास और अपशिष्ट उत्पादन के संबंध को अलग-अलग करने में सफल रहा है।
- पिछली आधी शताब्दी में तेज़ी से औद्योगीकीकरण के बावजूद दक्षिण कोरिया आर्थिक सहयोग और विकास संगठन का ऐसा एकमात्र देश है जिसने सकल घरेलू उत्पाद में पाँच गुना वृद्धि के बाद भी MSW को 40% तक कम करने में सफलता पाई है।
पृष्ठभूमि
- 1980 के दशक तक दक्षिण कोरिया ने भी अधिकांश अन्य विकासशील देशों की तरह अपशिष्ट दहन और लैंडफिल के माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन की दक्षता में सुधार करने का प्रयास किया।
- क्योंकि यह रीयूज़ और रिसाइकल जैसे जनकेंद्रित अभियानों की तुलना में अपेक्षाकृत आसान माना जाता है।
- किंतु 1980 के दशक के अंत में तेज़ी से बढती कचरे की समस्या के मद्देनज़र दक्षिण कोरिया ने एक मात्रा आधारित कचरा शुल्क प्रणाली(Volume-based Waste Fee System) को लागू किया।
- इसका उद्देश्य अपशिष्ट उत्पादन को नियंत्रित करना, अपशिष्ट प्रबंधन के वित्तपोषण के लिये अतिरिक्त संसाधनों को जुटाना और अधिकतम रिसाइक्लिंग प्राप्त करना था।
- इसके बाद से MSW उत्पादन में भारी कमी देखी गई है। 1990 में 30.6 मिलियन मीट्रिक टन से कम होकर यह 2016 में 19.3 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है।
- दक्षिण कोरिया अब जर्मनी के बाद दुनिया में दूसरा सर्वाधिक रिसाइक्लिंग दर (60%) वाला देश है।
- इसके अतिरिक्त कचरे के लैंडफिल और दहन की दर 1990 के 94% से घटकर 2016 में 38% हो गई है।
- WTE संयंत्रों से ऊर्जा उत्पादित करने के लिये इस समग्र कार्ययोजना को नीतिगत प्रयासों से पूरित किया गया।
- दक्षिण कोरिया ने 2008 में "अपशिष्ट संसाधन और बायोमास ऊर्जा के लिये उपाय" जारी किये।
- इसके तहत WTE सुविधाओं का विस्तार करने के लिये स्थानीय सरकारों को बजटीय और तकनीकी सहायता प्रदान की गई।
- दुनिया का पहला लैंडफिल-आधारित हाइड्रोजन संयंत्र 2011 में दक्षिण कोरिया में बनाया गया था।
- साथ ही 60% से अधिक नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा कचरे से पैदा की जाती है। इसके विपरीत भारत में पवन और सौर ऊर्जा प्रमुख अक्षय ऊर्जा स्रोत हैं।