SDGs की प्राप्ति हेतु नीति आयोग का प्रयास | 01 Jan 2020
प्रीलिम्स के लिये:
सतत् विकास लक्ष्य, नीति आयोग, सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक
मेन्स के लिये:
सतत् विकास लक्ष्य और भारत, लैंगिक समानता से संबंधित मुद्दे
चर्चा में क्यों?
सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग (NITI Aayog) ने नियत समय में सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDG) की प्राप्ति सुनिश्चित करने हेतु विकास के क्षेत्र में ऐतिहासिक रूप से पिछड़े राज्यों के साथ वित्तपोषण अभ्यास (Financing Exercise) शुरू करने की योजना बनाई है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- नीति आयोग ने अपने सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक (Sustainable Development Goal India Index) रिपोर्ट में यह चिंता ज़ाहिर की है कि यदि राज्य उल्लेखनीय प्रगति नहीं करते हैं तो भारत सतत् विकास लक्ष्यों को नियत समय में प्राप्त करने में पीछे रह जाएगा।
- नीति आयोग ने सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु पिछड़े राज्यों के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया है, जिससे वे SDG निगरानी प्रणाली स्थापित करने में सक्षम हो गए हैं और साथ ही नीति आयोग संस्थानों के निर्माण, क्षमता, ज्ञान और अभिसरण में साझेदारी हेतु उनका समर्थन भी कर रहा है।
- सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में बिहार, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, उत्तर प्रदेश और असम का प्रदर्शन सबसे खराब था।
- नीति आयोग ने पहले ही अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सहयोग से मुख्य SDGs को प्राप्त करने की वित्तीय लागत का अनुमान लगाना शुरू कर दिया है। सहयोग के अगले चरण के रूप में, विकास की दिशा में पिछड़े राज्यों के साथ वित्तपोषण अभ्यास शुरू करने की योजना है।
- संयुक्त राष्ट्र प्रणाली (United Nation System) के साथ साझेदारी में राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और स्थानीय सरकारों के लिये एक व्यापक क्षमता निर्माण कार्यक्रम बनाया जा रहा है।
- प्रशिक्षण मॉड्यूल (Training Modules) बड़े पैमाने पर SDGs निगरानी ढाँचे को विकसित करने, संकेतकों की पहचान और डिज़ाइन तैयार करने के साथ ही स्थानीयकरण एवं डैशबोर्ड को कवर करेगा।
SDGs भारत सूचकांक के अनुसार SDGs की प्राप्ति में चुनौतियाँ
- सतत् विकास लक्ष्य भारत सूचकांक, 2019 की रिपोर्ट में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मानकों पर राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की प्रगति का मूल्यांकन किया गया है। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि भारत पाँच लक्ष्यों में सुधार के आधार पर अपने औसत स्कोर में सुधार करने में कामयाब रहा है।
- हालाँकि रिपोर्ट में कहा गया है कि दो लक्ष्यों- पोषण और लैंगिक असमानता- समस्या का विषय बने हुए हैं और रिपोर्ट में इन क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की मांग की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, अकुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के कारण खाद्य अपव्यय और हानि चिंता का एक प्रमुख विषय बना हुआ है।
- रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई है, गौरतलब है कि वर्ष 2017 में महिलाओं के खिलाफ लगभग 3.60 लाख आपराधिक घटनाएँ हुईं, जबकि अपराध दर वर्ष 2014 में 56.6 % से बढ़कर वर्ष 2017 में 57.9 % हो गई है।
- लैंगिक समानता प्राप्त करने के क्षेत्र में अभी भी कई समस्याएँ हैं जो कि निम्नलिखित हैं-
- विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक समानता (विशेषकर ट्रांसजेंडर लोगों के लिये) से संबंधित आँकड़ों का अभाव।
- श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी में कमी। ध्यातव्य है कि वर्तमान में महिलाओं की श्रमशक्ति में भागीदारी केवल 17.5% है।
- देश में वेतन के मामले में भी लैंगिक अंतराल बना हुआ है, गौरतलब है कि पुरुषों के वेतन और महिलाओं के वेतन में यह अंतराल विभिन्न क्षेत्रों में 50-75% तक है।
- कृषि क्षेत्र में अभी भी महिलाओं की भागीदारी अधिक है, इसके अतिरिक्त देश की अधिकांश जनसंख्या अनौपचारिक क्षेत्र में बहुत कम या बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के संलग्न है जिसमें महिलाओं की भी काफी अधिक भागीदारी है।
- भूमि तक महिलाओं की पहुँच और स्वामित्व में भी असमानता है। ग्रामीण भारत में 75 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएँ कृषि कार्यों में लगी हुई हैं किंतु परिचालन भूमि में महिलाओं की भागीदारी केवल 13.96 प्रतिशत है। भूमि स्वामित्व का अभाव इनपुट, बीज, उर्वरक, ऋण और कृषि विस्तार सेवाओं तक उनकी पहुँच को सीमित करता है।
- ग़ौरतलब है कि फसल में खाद्य पदार्थों का महत्त्वपूर्ण स्तर ऊपर की ओर होता है और कटाई के बाद, कटाई के दौरान एवं वितरण और उपभोग के चरणों में खाद्यान्न की काफी मात्रा नष्ट या बर्बाद हो जाती है।
- जलवायु अनुकूल टिकाऊ कृषि प्रथाओं, नई तकनीक के साथ-साथ कृषि विकास योजनाओं को व्यापक रूप से अपनाना एक बड़ी चुनौती है क्योंकि कृषि विकास योजनाओं में उन छोटे किसानों द्वारा धारित भूमि का बड़ा हिस्सा शामिल होता है, जिनके पास अक्सर वित्त और संसाधनों की कमी होती है तथा ऐसे किसान 82 प्रतिशत से अधिक हैं।
आगे की राह
- केंद्र एवं राज्य के मध्य परस्पर समन्वय के आधार पर सतत् विकास को बढ़ावा देना।
- सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारों के मध्य सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना।