सामाजिक न्याय
बाल देखभाल संस्थानों का सर्वे
- 05 Jan 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत बाल देखभाल संस्थानों की जाँच-पड़ताल शामिल है। इस रिपोर्ट में चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा किये गए 9,589 आश्रय घरों/बाल देखभाल संस्थानों के सर्वेक्षण के निष्कर्ष शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
- ‘मैपिंग एक्सरसाइज ऑफ द चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस (CCI)/होम्स’ का अध्ययन किशोर न्याय प्रणाली के एक महत्त्वपूर्ण घटक पर प्रकाश डालता है जिसमें किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के संदर्भ में देश भर में बाल देखभाल संस्थानों/आश्रय घरों की कार्य पद्यति प्रमुख है।
- इस सर्वेक्षण में 9,589 बाल देखभाल संस्थानों और आश्रय घरों का अध्ययन किया गया। इन संस्थानों में से ज्यादातर गैर-सरकारी संगठनों (NGO) द्वारा चलाए जाते हैं, जो किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम के तहत आते हैं।
- आश्रय लेने वाले अधिकांश बच्चे अनाथ, परित्यक्त, यौन हिंसा के शिकार, तस्करी या आपदाओं एवं अन्य संघर्ष के शिकार हैं। इनमें कानूनी लड़ाई लड़ने वाले 7,422 बच्चे और 1,70,375 लड़कियों सहित देखभाल एवं सुरक्षा के इच्छुक कुल 3,70,227 बच्चे शामिल हैं।
- बच्चों को अक्सर उचित शौचालयों की कमी, असुरक्षित वातावरण जैसे माहौल का सामना करते हुए आश्रय घरों में रहना पड़ता है। विधि के तहत प्रदत्त शिकायत निवारण अवसर दर्दनाक वास्तविकता को रेखांकित करते हैं।
- हाल के अध्ययनों के अनुसार, 2016 तक केवल 32% बाल देखभाल संस्थान या आश्रय घर किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत पंजीकृत किये गए थे और बाकी या तो अपंजीकृत थे या पंजीकरण की प्रतीक्षा में थे।
- कुछ राज्यों में स्पष्ट रूप से बहुत कम आश्रय घर हैं। कुल आश्रय घरों के 43.5% तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल में हैं।
आगे की राह
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस निराशाजनक प्रवृति में वांछित सुधार केवल राज्य सरकारों द्वारा व्यवस्थित जाँच के माध्यम से कर सकता है।
- यह कार्य कुछ विशेष अधिकारियों को नियुक्त करके किया जा सकता है, जिनका मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी संस्थान किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के तहत पंजीकृत हों, प्रत्येक को प्राप्त धनराशि का लेखा-जोखा हो और गोद लेने के दौरान अनिवार्य बाल संरक्षण नीतियों का पालन किया जा रहा हो।