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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की कोयले की मांग में वृद्धि

  • 05 Feb 2022
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कोयला, अक्षय ऊर्जा।

मेन्स के लिये:

भारत में कोयले की बढ़ती मांग और संबंधित चिंताओं का कारण।

चर्चा में क्यों?

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022 के अनुसार, अक्षय ऊर्जा पर ज़ोर देने के बावजूद देश में कोयले की मांग वर्ष 2030 तक 1.3-1.5 बिलियन टन के दायरे में रहने की उम्मीद है।

  •  यह वृद्धि 955.26 मिलियन टन की मौजूदा (2019-2020) मांग की 63% है।

कोयले की मांग बढ़ने का कारण:

  • लोहा और इस्पात उत्पादन में कोयले का उपयोग होता है तथा ईंधन को परिवर्तित करने के लिये प्रौद्योगिकियाँ मौजूद नहीं हैं।
  • 2022-2024 के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था के निरंतर विस्तार की उम्मीद है, जिसमें वार्षिक औसत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 7.4% है, जो कम-से-कम आंशिक रूप से कोयले से प्रेरित है।
  • केंद्र सरकार ने कोयला खनन निजी क्षेत्र के लिये खोल दिया है और इसे अपने सबसे महत्त्वाकांक्षी कोयला क्षेत्र के सुधारों में से एक के रूप में दावा किया है।

चिंताएँ:

  • कोयले के स्वतंत्र आवागमन से देश में स्थानीय प्रदूषण बढ़ेगा। सरकार ने कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों के लिये नए उत्सर्जन मानदंड अधिसूचित किये हैं लेकिन धरातल पर क्रियान्वयन नाकाफी रहा है।
  • कोयला और लिग्नाइट आधारित थर्मल पावर प्लांट वार्षिक आधार पर 1.3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जो देश में कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक-तिहाई है।
  • दिल्ली के लगभग एक-तिहाई क्षेत्र (लगभग 1,50,000 हेक्टेयर) पर वनीकरण करके सरकार प्रतिवर्ष 0.04% CO2 उत्सर्जन में कमी का दावा करती है।
    • वनीकरण सहित घनी आबादी वाले देश में नेट ज़ीरो का लक्ष्य प्राप्त करना बहुत आसान नहीं है।
    • कोयला कंपनियों द्वारा अक्षय ऊर्जा की ओर स्विच करना लो कार्बन इकॉनमी में बदलने की दिशा में एक और प्रयास था। 31 मार्च, 2021 तक सार्वजनिक उपक्रमों ने 1,496 मेगावाट की अक्षय क्षमता स्थापित की और अगले पाँच वर्षों के दौरान पर्याप्त कार्बन ऑफसेट क्षमता के साथ अतिरिक्त 5,560 मेगावाट नवीकरणीय क्षमता स्थापित करने की योजना बनाई है।
    • हालाँकि यह हाल ही में ग्लासगो सम्मेलन में  प्रधानमंत्री द्वारा किये गए वादे अर्थात गैर-जीवाश्म ईंधन के माध्यम से 500 गीगावाट स्थापित क्षमता और वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकता का 50% पूरा करने का केवल 1% हिस्सा ही है।

कोयला:

  • यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
  • आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) कहा जाता है।
  • दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।
  • भारत के कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड में रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं।
  • कोयले को भी चार रैंकों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।

आगे की राह

  • इन्हें वर्ष 2030 के बाद नई कोयला क्षमता जोड़ने को लेकर भी सतर्क रहना चाहिये क्योंकि इससे संसाधनों के बंद होने का खतरा है।
  • भारत को संपूर्ण कोयला मूल्य शृंखला में स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों में निवेश बढ़ाना चाहिये। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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