सर्वोच्च न्यायालय एवं शिक्षा का अधिकार (Supreme and RTE) | 17 Nov 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम को लागू करने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर आगे सुनवाई से इनकार कर दिया।
प्रमुख बिंदु
- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "चमत्कार की उम्मीद मत करो। भारत एक विशाल देश है, यहाँ बहुत सी प्राथमिकताएँ हैं और निश्चित रूप से शिक्षा उन प्राथमिकताओं में से एक है। लेकिन न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।"
- शीर्ष अदालत ने इससे पहले याचिकाकर्त्ता एवं पंजीकृत सोसायटी ‘अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ’ से बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के क्रियान्वयन पर केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपने को कहा था।
- रंजन गोगोई के अतिरिक्त इस पीठ में न्यायमूर्ति एस.के. कौल और न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ शामिल थे। इस पीठ ने याचिकाकर्ता को बताया कि केंद्र ने इस प्रस्ताव के जवाब में कहा था कि वह इस मामले पर ज़रूरी काम कर रहा है।
- आगे हस्तक्षेप से इनकार करते हुए न्यायालय ने आदेश दिया, "हमने याचिकाकर्त्ता के वकील को सुना और प्रासंगिक मामले को समझ लिया है। हम हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। तद्नुसार रिट याचिका खारिज की जाती है।"
- अखिल दिल्ली प्राथमिक शिक्षक संघ नामक सोसायटी ने 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों की शिक्षा के अधिकार के कार्यान्वयन की मांग की थी।
- सोसायटी द्वारा दायर की गई याचिका में कहा गया था कि सरकारी स्कूलों के बंद रहने और इन स्कूलों में लगभग 9.5 लाख शिक्षकों के पद खाली होने की वज़ह से बच्चों को कष्ट उठाना पड़ता है।
- इस जनहित याचिका ने कई रिपोर्टों को संदर्भित किया जिसमें देश भर में बच्चों के लिये नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 के अधिकारों की कई विशिष्ट आवश्यकताओं की अनदेखी सहित शिक्षा हेतु बच्चों के अधिकारों के व्यवस्थित और व्यापक उल्लंघन दर्शाए गए हैं।
- आँकड़ों का हवाला देते हुए इस याचिका में यह भी बताया गया कि 14,45,807 सरकारी और पंजीकृत निजी स्कूल देश में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करते हैं और 2015-16 के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 3.68 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जो स्कूल नहीं जाते।
- इस सोसायटी ने न्यायालय से अनुरोध किया कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को छह महीने के भीतर इन बच्चों की पहचान करने के लिये निर्देश दिया जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनमें से कितने बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए।
- इसके अतिरिक्त राज्य और केंद्रशासित प्रदेश उन सभी सरकारी, निजी, सहायता प्राप्त या अवैतनिक स्कूलों की पहचान करें जिनमें बाधा रहित पहुँच, लड़कों और लड़कियों के लिये अलग शौचालय, शिक्षण स्टाफ और शिक्षण संबंधी सामग्री, प्रत्येक शिक्षक के लिये कम-से-कम एक कक्षा के साथ सभी मौसमों के अनुकूल इमारत जैसी उचित आधारभूत संरचना नहीं है।