उच्चतम न्यायालय का फैसला और चुनाव सुधार | 07 Mar 2020
प्रीलिम्स के लिये:अनुच्छेद 129, अनुच्छेद 142, लिली थॉमस बनाम भारत संघ मेन्स के लिये:राजनीति में बढ़ता अपराधीकरण और चुनाव सुधार |
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय ने 13 फरवरी, 2020 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129 तथा अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए सभी राजनीतिक दलों को अपने विधानसभा और लोकसभा उम्मीदवारों के संपूर्ण आपराधिक इतिहास को प्रकाशित करने का आदेश दिया है।
पृष्ठभूमि:
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय वर्ष 2018 के ‘पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ’ (Public Interest Foundation vs Union of India) मामले में गठित एक संवैधानिक पीठ के फैसले के आधार पर दिया गया है जो कि राजनीतिक दलों द्वारा अपनी वेबसाइट और इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया पर अपने उम्मीदवारों के आपराधिक विवरण प्रकाशित करने तथा सार्वजनिक जागरूकता फैलाने संबंधी एक अवमानना याचिका पर आधारित था।
- इस फैसले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत में राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण और नागरिकों के बीच इस तरह के अपराधीकरण के बारे में जानकारी की कमी बताई थी।
मुख्य बिंदु:
- उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि चुनाव से पहले उम्मीदवारों के चयन के कारणों में उम्मीदवार की योग्यता, उसकी उपलब्धियाँ होनी चाहिये न कि चुनाव में उसके जीतने की संभावना।
- उम्मीदवार से संबंधित सूचना को एक स्थानीय भाषा के समाचार पत्र व एक राष्ट्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित करना तथा फेसबुक एवं ट्विटर सहित राजनीतिक दलों की आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
- इन सूचनाओं को उम्मीदवार चयन के 48 घंटों के भीतर या नामांकन पत्र दाखिल करने की तिथि से कम-से-कम दो सप्ताह पहले, जो भी पहले हो, प्रकाशित करना होगा।
- संबंधित राजनीतिक दल उम्मीदवार चुनने के 72 घंटों के भीतर निर्देशानुसार अनुपालन रिपोर्ट निर्वाचन आयोग को प्रस्तुत करेंगे।
- यदि कोई राजनीतिक दल ऐसी अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने में विफल रहता है तो निर्वाचन आयोग निर्देशों का अनुपालन नहीं किये जाने का संज्ञान आदेशों/निर्देशों की अवमानना के रूप में उच्चतम न्यायालय के समक्ष लाएगा।
अनुच्छेद 129:
- उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना- उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अवमानना के लिये दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।
अनुच्छेद 142
- उच्चतम न्यायालय के आदेशों तथा साथ ही अन्वेषण आदि से संबंधित आदेशों का प्रवर्तन कराना।
वर्ष 2002 एवं वर्ष 2003 में न्यायालय का आदेश:
- वर्ष 2002 एवं वर्ष 2003 में न्यायालय ने आदेश दिया था कि चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवार अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से संबंधित स्व-शपथ पत्र (Self-Sworn Affidavits) किसी भी न्यायालय में दे सकते हैं।
- इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का वर्तमान निर्णय न्यायालय द्वारा पहले दिये गए (वर्ष 2002 एवं वर्ष 2003 में) आदेशों से भिन्न है।
- हालाँकि वर्ष 2002 और वर्ष 2003 में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय महत्त्वपूर्ण थे और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association for Democratic Reforms) द्वारा चुनावी सुधार हेतु किये गए प्रयासों के बावज़ूद राजनीतिक पार्टियों या मतदाता पर इसका वांछित प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि वर्तमान लोकसभा में 43% सदस्यों के खिलाफ एक या अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- जबकि वर्ष 2004 में संसद के 24% सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे जो कि वर्ष 2009 में बढ़कर 30%, वर्ष 2014 में 34% हो गए थे। इसमें लगभग आधे मामले कथित जघन्य अपराधों जैसे- हत्या, हत्या का प्रयास, बलात्कार और अपहरण के थे। वहीं वर्ष 2019 में संसद के 88% सदस्य करोड़पति पाए गए।
- उपरोक्त आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है ‘बाहुबल’ और ‘धनबल’ हमारी राजनीतिक प्रणाली का हिस्सा बन गए हैं। वास्तव में ‘धनबल’ ने हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली को ‘धनिकतंत्र’ की दिशा में आगे बढ़ाया है।
- बेशक राजनीतिक उम्मीदवारों के खिलाफ दर्ज की गई FIR इरादतन आपराधिक नहीं होती है। नागरिक विरोध के परिणामस्वरूप दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का उल्लंघन एक ऐसा ही उदाहरण है। मेधा पाटेकर या अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के मामले को शायद ही आपराधिक माना जा सकता है।
मतदाताओं का व्यवहार:
- मतदाता व्यवहार अक्सर अपनी तात्कालिक आवश्यकताओं के अनुसार होता है। उदाहरण के लिये मुफ्त की वस्तुओं का वितरण, पैसा एवं उपहार आदि। मतदाता व्यवहार अब बदलना शुरू हो गया है क्योंकि मतदाता अब अक्सर पैसे और मुफ्त की मांग करते हैं।
लिली थॉमस बनाम भारत संघ
(Lily Thomas vs Union of India)
- अब तक जो भी महत्त्वपूर्ण चुनावी सुधार हुए हैं वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों पर ही आधारित हैं। 10 जुलाई, 2013 को लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में कहा गया था कि एक सांसद या विधायक जो अपराध के लिये दोषी पाया जाता है, उसे न्यूनतम दो वर्ष का कारावास दिया जाएगा और वह सदन की सदस्यता तत्काल प्रभाव से खो देगा तथा उसे जेल अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष के लिये चुनाव लड़ने से वंचित किया जाएगा।
आगे की राह:
- गौरतलब है कि राजनीतिक दल चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार को ही टिकट देते हैं। इससे चुनावी प्रक्रिया में ‘धनबल’ और ‘बाहुबल’ को बढ़ावा मिलता है जिससे हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली ‘धनिकतंत्र’ की दिशा में आगे बढ़ रही है। इन दोनों समस्याओं में तत्काल सुधार की ज़रूरत है और इसके लिये कार्यपालिका द्वारा ही प्रयास किया जाना चाहिये।