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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग

  • 17 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सुपरहाइड्रोफोबिक कोटिंग

मेन्स के लिये:

नैनो प्रौद्योगिकी  

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology- IIT) धनबाद के ‘इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स’ (Indian School of Mines- ISM) तथा ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State University) की टीम ने पॉलीयूरेथेन और सिलिकॉन डाइऑक्साइड नैनो कणों का इस्तेमाल कर कोटिंग में प्रयुक्त होने सुपरहाइड्रोफोबिक पदार्थ का निर्माण किया है।

मुख्य बिंदु:

  • कोटिंग में प्रयुक्त रसायन देश में आसानी से उपलब्ध हैं तथा वे पर्यावरण के अनुकूल भी हैं।
  • कोटिंग की यह तकनीक सिर्फ स्टील में ही नहीं अपितु अन्य धातुएँ यथा- एल्युमीनियम, तांबा, पीतल एवं ग्लास, कपड़े, कागज़, लकड़ी आदि में भी प्रयोग की जा सकती है  

अपनाई गई विधि:

  • स्टील कोटिंग से पूर्व टीम ने आसंजन शक्ति में सुधार के लिये विशेष प्रकार के रासायनिक विधि का प्रयोग किया ताकि स्टील की सतह पर खुरदरापन पैदा किया जा सके। इसके बिना, स्टील की चिकनाई के कारण कोटिंग आसानी नहीं हो पाती है।

आसंजन (Adhesion):

  • दो भिन्न प्रकार के कणों या सतहों के एक-दूसरे से चिपकने की प्रवृत्ति को आसंजन कहते हैं। 

संसंजन (Cohesion):

  • दो समान कणों या सतहों के आपस में चिपकने की प्रवृत्ति को संसंजन कहते हैं।

उपयोगिता:

  • कोटिंग की इस तकनीक में सुपरहाइड्रोफोबिक (सतह पर न चिपकने की प्रवृति) गुण पाया गया। इस कोटिंग तकनीक को अम्लीय (pH 5) और क्षारीय (pH 8) दोनों स्थितियों में छह सप्ताह से अधिक समय तथा 230°C तापमान तक तक टिकाऊ पाया गया।
  • कोटिंग तकनीक की यांत्रिक स्थिरता को जल-जेट, रेत-अभिघर्षण आदि में भी अत्यधिक स्थिर पाया गया था।
  • कोटिंग द्वारा प्रदर्शित एक अन्य क्षमता; स्व-सफाई का कार्य है। पानी की बूँदें तथा धूल कोटिंग सतह से चिपकती नहीं हैं तथा स्वत: सतह से लुढ़क जाती हैं।  

नैनो कण एवं स्वास्थ्य:

Exposure-to-human

  • नैनो तकनीक का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है। ‘नैनो’ एक ग्रीक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सूक्ष्म या छोटा। 100 नैनोमीटर या इससे छोटे कणों को ‘नैनो कण’ माना जाता है।
  • अत्यधिक सूक्ष्म आकार के कारण नैनो कणों के रासायनिक एवं भौतिक लक्षण बदल जाते हैं। उदाहरण के लिये जिंक धातु के ‘नैनो कण’ स्तर पर पहुँचने पर पारदर्शी हो जाते हैं।
  • नैनो कणों के उपयोग के साथ कुछ चुनौतियाँ भी उभर रही हैं। धात्विक नैनो कणों के उत्पादन और उपयोग में लगातार वृद्धि होने के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता बढ़ रही है।
  • नैनो कण वातावरण में, खासतौर पर मृदा में पहुँच जाएँ तो जीवाणुओं और मृदा के जीवों को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसके अलावा नैनो कण प्रदूषकों के साथ मिलकर अधिक विषाक्त प्रदूषकों को जन्म दे सकते हैं।

आगे की राह:

  • नैनो कणों की विषाक्तता का पता लगाने में एकीकृत पद्धति उपयोगी सिद्ध हो सकती है। 
  • किसी भी नैनो-युक्त उत्पाद के व्यावसायीकरण से पहले उससे होने वाली क्षति का आकलन किया जाना चाहिये। 
  • उत्पादों में प्रयोग होने वाले नैनो कणों का पूर्ण विवरण उल्लिखित होना चाहिये। इस बात को लेकर अधिक शोध करने की ज़रूरत है कि किस समय और किस सांद्रता पर नैनो कणों का कम-से-कम प्रयोग करके अत्यधिक लाभ उठाया जा सकता है।

नैनो मिशन: 

  • भारत सरकार ने ‘मिशन क्षमता निर्माण कार्यक्रम’ के रूप में वर्ष 2007 में नैनो मिशन की शुरुआत की थी। 
  • इसका कार्यान्वयन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Science and Technology) के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) द्वारा किया जा रहा है। 
  • इस मिशन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं- 
    • बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देना। 
    • बुनियादी ढाँचे का विकास करना। 
    • नैनो अनुप्रयोगों एवं प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना। 
    • मानव संसाधन विकास को बढ़ावा देना। 
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग हासिल करना। 
    • नैनो मिशन के नेतृत्व में किये गए प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्तमान में भारत नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रकाशनों के मामले में विश्व के शीर्ष पाँच देशों में शामिल है।

स्रोत: द हिंदू

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