भूगोल
सौर-कलंक सिद्धांत: कारण एवं प्रभाव
- 11 Aug 2020
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:सौर-कलंक, सोलर फ्लेयर्स, कोरोनल मास इज़ेक्शन्स, ऑरोरा, सौर-चक्र, माउंडर मिनिमम मेन्स के लिये:सौर-कलंक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन' (NASA) की 'सोलर डायनेमिक्स ऑब्ज़र्वेटरी' (Solar Dynamics Observatory- SDO) द्वारा व्यापक सौर-कलंक (Sunspot) समूह- AR2770 को देखा गया।
प्रमुख बिंदु:
- ऐसा माना जा रहा है कि सौर कलंक का 25वाँ चक्र सूर्य के आंतरिक भाग में चल रहा है। हाल ही में कुछ पूर्ण विकसित सौर-कलंक दिखाई देने लगे हैं जिनकी पहचान सौर-कलंक (Sunspot) समूह- AR2770 के रूप मे की गई है।
- AR2770 के अवलोकन से पता चलता है कि सौर-कलंक चक्र का 25वाँ चक्र सौर सतह पर दिखाई देना शुरू हो गया है, जो 25वें सौर-चक्र के प्रारंभ को बताता है।
सौर-कलंक:
- सौर-कलंक सूर्य की सतह का ऐसा क्षेत्र होता है जिसकी सतह आसपास के हिस्सों की तुलना अपेक्षाकृत काली (DARK) होती है तथा तापमान कम होता है। इनका व्यास लगभग 50,000 किमी. होता है।
- ये सूर्य की बाहरी सतह अर्थात फोटोस्फीयर (Photosphere) के ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ किसी तारे का चुंबकीय क्षेत्र सबसे अधिक होता है। यहाँ का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में लगभग 2,500 गुना अधिक होता है।
- सामान्यत: चुंबकीय क्षेत्र तथा तापमान में व्युत्क्रमनुपाती संबंध होता है , अर्थात तापमान बढ़ने पर चुंबकीय क्षेत्र घटता है।
सौर-चक्र (Solar Cycle):
- अधिकांश सौर-कलंक समूहों में दिखाई देते हैं तथा उनका अपना चुंबकीय क्षेत्र होता है, जिसकी ध्रुवीयता लगभग 11 वर्ष में बदलती है जिसे एक ‘सौर चक्र’ (Solar Cycle) कहा जाता है।
- सौर-कलंकों की संख्या में लगभग 11 वर्षों के चक्र के दौरान वृद्धि तथा कमी होती है जिन्हें क्रमशः सौर कलंक के विकास तथा ह्रास का चरण कहा जाता है, वर्तमान में इस चक्र की न्यूनतम संख्या या ह्रास का चरण चल रहा है।
- वर्तमान सौर चक्र की शुरुआत वर्ष 2008 से मानी जाती है जो अपने ’सौर न्यूनतम’ (Solar Minimum) चरण में है।
- ’सौर न्यूनतम’ के दौरान सौर-कलंकों सौर फ्लेयर्स (Solar Flares) की संख्या में कमी देखी जाती है।
सौर-कलंक से जुड़ी घटनाएँ:
सोलर फ्लेयर्स (Solar Flares):
- सोलर फ्लेयर्स सूर्य के निकट चुंबकीय क्षेत्र की रेखाओं के स्पर्श, क्रॉसिंग या पुनर्गठन के कारण होने वाली ऊर्जा का अचानक विस्फोट है तथा सोलर फ्लेयर्स उत्पन्न होती है।
- सोलर फ्लेयर्स के विस्फोट से उत्पन्न ऊर्जा वर्ष 1945 में हिरोशिमा पर गिराए गए ’लिटिल बॉय’ परमाणु बम के लगभग होती है।
कोरोनल मास इजेक्शन्स (CMEs):
- कोरोनल मास इजेक्शन्स (CME) सूर्य के कोरोना से प्लाज़्मा एवं चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट है जिसमें अरबों टन कोरोनल सामग्री उत्सर्जित होती है तथा इससे पिंडों के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है।
ऑरोरा की घटना:
- सौर-पवनों के कारण मैग्नेटोस्फेयर में परिवर्तन होता है, जिससे पृथ्वी के दोनों ध्रुवों अर्थात दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव के आसमान में हरे, लाल और नीले रंग के मिश्रण से प्रकाश उत्पन्न होता है जिसे ऑरोरा या ध्रुवीय ज्योति कहा जाता है।
- ध्रुवीय स्थिति के आधार पर इन्हें उत्तरी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Borealis) तथा दक्षिण ध्रुवीय ज्योति (Aurora Australis) के नाम से जाना जाता है।
माउंडर मिनिमम (Maunder Minimum):
- जब न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता की अवधि दीर्घकाल तक रहती है तो इसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहते हैं।
- वर्ष 1645-1715 के बीच की अवधि में सौर कलंक परिघटना में विराम देखा गया जिसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहा जाता है। यह अवधि तीव्र शीतकाल से युक्त रही, अत: सौर कलंक अवधारणा को जलवायु परिवर्तन के साथ जोड़ा जाता है।
सौर-कलंक के प्रभाव:
- सौर-कलंक से उत्पन्न सोलर फ्लेयर्स के कारण रेडियो संचार, ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) प्रणाली, ऊर्जा-ग्रिड तथा उपग्रह आधारित संचार प्रणाली बुरी तरह प्रभावित हो सकती है।
- सौर-कलंक के कारण 'भू-चुंबकीय तूफान’ (Geomagnetic Storms) उत्पन्न हो सकते हैं।
- 'भू-चुंबकीय तूफान' सौर-तूफ़ानों के कारण पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर में उत्पन्न अव्यवस्था है जिससे पृथ्वी की इन खतरनाक विकिरणों से प्राप्त सुरक्षा प्रभावित होती है।
- माउंडर मिनिमम अर्थात न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता के समय धरातलीय सतह तथा उसके वायुमंडल का शीतलन, जबकि अधिकतम सौर कलंक सक्रियता काल के समय वायुमंडलीय उष्मन होता है।
- ‘अल नीनो’ और ‘ला नीना’ की घटना को भी वैज्ञानिकों द्वारा सौर-कलंक के साथ संबंधित करने का प्रयास किया जा रहा है, यद्यपि यह अनेक दोषों से युक्त है।