आत्महत्या कोई आपराधिक कृत्य नहीं है | 07 Apr 2017

संदर्भ
गौरतलब है कि मार्च माह के अंत में, लोकसभा द्वारा मानसिक स्वास्थ्य विधेयक (Mental Health Care Bill) को पारित किया गया है। ध्यातव्य है कि यह विधेयक एक असफल आत्महत्या का पूर्णतया खंडन करता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इस विधेयक के अनुसार, आत्महत्या का प्रयास करने वाला व्यक्ति गंभीर तनाव की स्थिति में होने के कारण परेशान होता है और इसी के परिणामस्वरूप वह आत्महत्या करने का प्रयास करता है।
  • ऐसे व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (आत्महत्या करने की कोशिश) की धारा 309 के तहत दंड देने के बजाय, जुर्माना (भले ही ज्यादातर मामलों में यह एक टोकन राशि की क्यों न हो) या एक वर्ष तक के कारावास का प्रावधान किया गया है।
  • स्पष्ट है कि यह विधेयक आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को सज़ा देने की बजाय उसकी देखभाल करने के विकल्प को अधिक प्राथमिकता देता है। वस्तुतः इसका उद्देश्य व्यक्ति को ऐसे किसी भी कृत्य को पुन: करने से रोकना है।
  • नए विधेयक के अनुसार, सरकार द्वारा विशेष रूप से आत्महत्याओं एवं आत्महत्याओं के प्रयासों को कम करने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के तहत कुछ विशेष पहलों, नियमों एवं डिज़ाइनों को क्रियान्वित किया जाना चाहिये।

धारा 309 की संवैधानिकता पर प्रश्न

  • वर्ष 1985 में, मुंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश आर.ए. जहागीरदार द्वारा चार ऐसे कारण प्रस्तुत किये गए जिनके परिणामस्वरूप आईपीसी की धारा 309 के संबंध में असंवैधानिकता का प्रश्न खड़ा हो गया।
  • इन कारणों में सबसे पहला कारण यह था कि कोई भी व्यक्ति इस बात पर सहमत नहीं है कि आत्महत्या के मुद्दे पर किसका नियंत्रण होना चाहिये और कम आत्महत्या वाला प्रयास कौन सा होता है?
  • दूसरा, आत्महत्या के मामलों में आपराधिक मनोवृत्ति स्पष्ट नहीं होती है। 
  • तीसरा, अस्थायी पागलपन, जो आत्महत्या के प्रयास को बढ़ावा देता है, नरहत्या जैसे मामलों में एक वैध बचाव की स्थिति होती है और चौथा, व्यक्तियों को आत्महत्या के लिये प्रेरित करने वाली मानसिक दशा को दंड की नहीं वरन् देखभाल की आवश्यकता होती है।

जीने का अधिकार बनाम मरने का अधिकार

  • उल्लेखनीय है कि ऐसे ही एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक बयान जारी किया गया था, जिसमें न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार प्रदान किया गया है। परंतु, इसके साथ-साथ यह भी स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं होता है।
  • हालाँकि, कुछ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में जीवन के अधिकार के साथ-साथ इच्छामृत्यु के अधिकार को भी स्वीकार किया गया है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट

  • लोगों को अवसाद की स्थिति से बाहर निकालने एवं आत्महत्या की दर में कमी लाने के उद्देश्य को मद्देनज़र रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का निर्णय किया। 
  • वस्तुतः इसका एक अहम् कारण यह भी है कि दुनियाभर के विशेषज्ञों द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि अवसाद और मानसिक बीमारी जैसे मुद्दों पर चुप्पी बनाए के कारण ही अवसाद की इस स्थिति में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है।
  • ध्यातव्य है कि एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग पाँच करोड़ भारतीय अवसाद से ग्रस्त है। इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत एक अनुमान के अनुसार, संपूर्ण विश्व में तकरीबन 300 मिलियन से अधिक लोग इस बीमारी के साथ जीवन जीने को मजबूर हैं।

अवयस्क मृत्यु का कारण

  • जैसा की हम सभी जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति के खराब स्वास्थ्य और विकलांगता का प्रमुख कारण निराशा होती है।
  • यही कारण है कि मानसिक विकार वाले लोगों को इस बीमारी से बाहर निकालने हेतु आवश्यक समर्थन के अभाव एवं उक्त व्यक्ति के मन में मानसिक रोगी के कलंक लगने के डर के कारण इस विषय में खुलकर बात न करना, इत्यादि ऐसी चीज़े है जो एक व्यक्ति को एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन जीने के लिये उनके उपचार के विकल्प से महरूम रखती है।
  • उल्लेखनीय है कि मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य से पृथक नहीं किया जा सकता है। 
  • वास्तविकता यह है कि शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण होने वाली समयपूर्व मृत्यु की तुलना में अवसाद से पीड़ित लोगों की प्रतिशता कहीं अधिक होती है।
  • यही कारण है कि दुनिया भर के युवा लोगों के बीच आत्महत्या करने का दूसरा सबसे आम कारण उनकी मानसिक दशा होती है।

निष्कर्ष
स्पष्ट है कि तेज़ी से बदलते समाज एवं जीवन जीने के तरीकों ने जहाँ एक ओर मानव को बहुत अधिक स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बना दिया है, वहीं दूसरी ओर जीवन में अकेलेपन की समस्या को भी जन्म दिया है। जिसकी परिणिति अंततः अवसाद के रूप में सामने आती है। अत: सरकार द्वारा की गई इस पहल के साथ हमारी की भी यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है हम इस बात का ख्याल रखें कि हमारे आसपास रहने वाले लोग किस मानसिक स्थिति का सामना कर रहे है। ऐसे लोगों का तिरस्कार करने की बजाय यह जानने का प्रयास किया जाना चाहिये कि उनकी समस्या क्या है ताकि समय रहते उस समस्या अथवा बीमारी का इलाज कर, एक बहुमूल्य जीवन को सुरक्षित किया जा सकें।