चीनी उद्योग क्षेत्र द्वारा इन्वेंटरी कम करने हेतु इथेनॉल-मिश्रित ईंधन कार्यक्रम की मांग | 05 May 2018
चर्चा में क्यों ?
चीनी उद्योग ने केंद्र सरकार से बढ़ते चीनी अधिशेष को कम करने हेतु इथेनॉल-मिश्रित ईंधन कार्यक्रम अपनाने की मांग की है। ऐसे में जब केंद्र सरकार इथेनॉल उत्पादन के लिये जीएसटी प्रोत्साहन प्रदान करने पर विचार कर रही है, चीनी उद्योग के प्रतिनिधियों का कहना है कि सरकार को चीनी उत्पादन में कटौती करने के लिये चीनी उद्योग को अनुमति दे देनी चाहिये।
प्रमुख बिंदु
- परंपरागत रूप से उद्योगों में एल्कोहल का उत्पादन चीनी के उप-उत्पाद शीरे से किया जाता है।
- आसवन क्षमता को देखते हुए यह अनुमान लगाया गया है कि चीनी उद्योग उत्पादन में 5 लाख टन की कटौती कर सकता है।
- हालाँकि, विशाल अधिशेष को देखते हुए यह केवल एक अस्थायी उपाय है।
- इथेनॉल-मिश्रित ईंधन कार्यक्रम के विस्तार हेतु आसवन क्षमता में वृद्धि करनी होगी और इसके लिये निवेश में भी बढ़ोतरी की आवश्यकता है।
- पिछले कुछ समय में चीनी की कीमत में काफी गिरावट आई है और यह ₹28 प्रति किलोग्राम तक पहुँच चुकी है। साथ ही गन्ना उत्पादक किसानों की बकाया रकम लगभग ₹18,000 करोड़ हो चुकी है।
- हालाँकि, आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने सीजन 2017-18 में पेराई किये गए प्रति क्विटंल गन्ने पर ₹5.50 की वित्तीय सहायता चीनी मिलों को देने को अपनी मंजूरी दे दी है, ताकि गन्ने की लागत की भरपाई हो सके। इससे चीनी मिलों को किसानों की बकाया गन्ना रकम निपटाने में मदद मिलेगी। इस सहायता राशि के लगभग ₹1500 करोड़ होने का अनुमान है।
- उद्योग प्रतिनिधियों का कहना है, क्योंकि चीनी की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें घरेलू कीमतों से भी कम हैं, अतः सरकार द्वारा सुझाए गए 20 लाख टन के निर्यात का विकल्प भी व्यवहार्य नहीं है।
- अभी तक आसवन भट्टियों (distilleries) से 360 करोड़ लीटर एल्कोहल का उत्पादन होता है जो अधिकांशतः चीनी मिलों से संबंधित है। इसमें से लगभग 155 करोड़ लीटर की आपूर्ति ऑटोमोबाइल ईंधन में 5 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण को पूरा करने के लिये की जाती है।
- हालाँकि, यदि चीनी मिलें चीनी उत्पादन में कटौती करती हैं, तो उन्हें इथेनॉल के लिये प्रतिस्पर्द्धी मूल्य प्रदान कर भरपाई की जानी चाहिये।
- साथ ही, केंद्र सरकार को इथेनॉल के अंतर्राज्यीय परिवहन को भी व्यवस्थित बनाने की आवश्यकता है।
- उदाहरणस्वरूप, इथेनॉल को उत्तर प्रदेश से हरियाणा ले जाने पर दोनों सरकारों द्वारा करारोपण के कारण ₹4.15 प्रति लीटर की अतिरिक्त लागत आती है। तेल विपणन कंपनियाँ इस अतिरिक्त लागत की प्रतिपूर्ति नहीं करती हैं, क्योंकि राज्य सरकारों से जीएसटी के तहत इस तरह के कर लगाने की अपेक्षा नहीं की जाती।