पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन: थाईलैंड | 17 Sep 2021
प्रिलिम्स के लियेपर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये‘पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन’ का महत्त्व और इसकी प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
थाईलैंड का मानना है कि ‘पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन’ (SEP) का उसका घरेलू विकास दृष्टिकोण ‘सतत् विकास लक्ष्यों’ (SDGs) को प्राप्त करने हेतु एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में काम कर सकता है।
- वर्ष 2020 में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ आंदोलन की घोषणा की थी, जिसमें भारत और उसके नागरिकों को सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिये इसी प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाया गया है। भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है तो इसमें ‘आत्मकेंद्रित’ व्यवस्था की हिमायत नहीं की जाती है, बल्कि यह संपूर्ण विश्व के सुख, सहयोग और शांति पर ज़ोर देता है।
प्रमुख बिंदु
- ‘पर्याप्त अर्थव्यवस्था दर्शन’ (SEP)
- यह विकास के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है, जिसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं और स्थितियों के लिये एक व्यावहारिक अनुप्रयोग के तौर पर डिज़ाइन किया गया है।
- यह थाईलैंड की ‘मौलिक प्रशासन नीति’ का भी हिस्सा है।
- इसे वर्ष 1997 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद थाईलैंड द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- यह एक ऐसा दर्शन है, जो बाह्य झटकों से स्वयं को प्रतिरक्षित करने हेतु आंतरिक मार्गदर्शन करता है और इसे किसी भी स्थिति एवं किसी भी स्तर पर लागू किया जा सकता है।
- यह विकास के लिये एक अभिनव दृष्टिकोण है, जिसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं और स्थितियों के लिये एक व्यावहारिक अनुप्रयोग के तौर पर डिज़ाइन किया गया है।
- स्तर :
- व्यक्तिगत एवं पारिवारिक स्तर : इसका अर्थ है उपलब्ध संसाधनों के सीमित स्तर में एक सामान्य जीवन का निर्वहन करना तथा दूसरे लोगों का अनुचित लाभ उठाने से बचना।
- सामुदायिक स्तर : इसका अभिप्राय निर्णयन में भाग लेने के लिये एक साथ शामिल होना तथा पारस्परिक रूप से लाभकारी ज्ञान विकसित करना एवं उचित ढंग से प्रौद्योगिकी को लागू करना है।
- राष्ट्रीय स्तर : यह उपयुक्तता, प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ, कम जोखिम और अधिक निवेश से बचाव पर अधिक बल देने के साथ-साथ एक समग्र दृष्टिकोण रखता है।
- इसमें दुनिया भर में प्रचलित व्यवस्थाओं के साथ तालमेल बिठाना, निवेश की हेजिंग और आयात को कम करना तथा अन्य देशों पर निर्भरता को कम करना शामिल है।
- स्तंभ :
- ज्ञान : यह विकासात्मक गतिविधियों की प्रभावी योजना और निष्पादन को सक्षम बनाता है।
- नैतिकता और मूल्य : यह ईमानदारी, परोपकारिता और दृढ़ता पर ज़ोर देकर, सक्रियता, नागरिकों के प्रभुत्व तथा सुशासन को अंतिम लक्ष्य के रूप में बढ़ावा देकर मानव विकास को बढ़ाता है।
- सिद्धांत :
- संयम/संतुलन : इसमें किसी की क्षमता के अंतर्गत उत्पादन और उपभोग करना तथा अतिभोग से बचना शामिल है।
- तर्कसंगतता : यह किसी पारिवार और समुदाय की बेहतरी हेतु कार्यों के कारणों और परिणामों की जाँच करने के लिये उनकी बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग करता है।
- सावधानी/बुद्धिमत्ता : यह किसी भी व्यवधान के कारण होने वाले प्रभावों से निपटने हेतु जोखिम प्रबंधन को संदर्भित करता है।