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भारतीय अर्थव्यवस्था

वाणिज्यिक जहाज़ों को बढ़ावा देने हेतु सब्सिडी योजना

  • 23 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय पोत परिवहन कंपनियों को सब्सिडी सहायता,  केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, राष्ट्रीय एक्जिम (निर्यात-आयात) व्यापार

मेन्स के लिये

भारतीय पोत परिवहन कंपनियों के लिये सब्सिडी योजना की विशेताएँ, औचित्य और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी कार्गो के आयात के लिये मंत्रालयों और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSE) द्वारा जारी वैश्विक निविदाओं में भारतीय पोत परिवहन (Shipping) कंपनियों को सब्सिडी सहायता प्रदान करने की एक योजना को मंज़ूरी दी है।

  • यह योजना पाँच वर्षों के दौरान 1624 करोड़ रुपए की सब्सिडी प्रदान करेगी।

प्रमुख बिंदु 

योजना की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह योजना फ्लैगिंग (ध्वजांकन) में वृद्धि की परिकल्पना करती है तथा भारतीय जहाज़रानी क्षेत्र  में निवेश के लिये भारतीय कार्गो तक पहुँच प्रदान करेगी।
    • फ्लैगिंग का तात्पर्य राष्ट्रीय पंजीकरण द्वारा एक पोत को शामिल करने की प्रक्रिया से है तथा "फ्लैगिंग आउट" राष्ट्रीय पंजीकरण के माध्यम से एक पोत को हटाने/अलग करने की प्रक्रिया है।
  • सब्सिडी समर्थन एक विदेशी शिपिंग कंपनी द्वारा न्यूनतम बोली के 5% से 15% तक भिन्न होता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि जहाज़ को 1 फरवरी, 2021 के बाद या उससे पहले ध्वजांकित/फ्लैगिंग किया गया था।
  • हालाँकि पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अनुसार, 20 वर्ष से अधिक पुराने जहाज़ इस योजना के तहत पात्र नहीं होंगे।

योजना का औचित्य:

  • भारतीय नौवहन उद्योग का लघु आकार:  7,500 किलोमीटर लंबा समुद्र तट, महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय आयात-निर्यात (EXIM) व्यापार जो सालाना आधार पर लगातार बढ़ रहा है, वर्ष 1997 के बाद से पोत परिवहन में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की नीति के बावजूद भारतीय पोत परिवहन उद्योग और भारत का राष्ट्रीय बेड़ा अपने वैश्विक समकक्षों की तुलना में काफी छोटा है।
    • वर्तमान में भारतीय बेड़े की क्षमता के लिहाज से वैश्विक बेड़े में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1.2% है। 
    • भारत के ‘आयत-निर्यात (एक्जिम)  व्यापार’ की ढुलाई में भारतीय जहाज़ों की हिस्सेदारी 1987-88 के 40. 7% से घटकर 2018-19 में लगभग 7.8% रह गई है।
  • उच्च परिचालन लागतों की भरपाई: वर्तमान में भारतीय शिपिंग उद्योग अपेक्षाकृत अधिक परिचालन लागत वहन करता है, इसके प्रमुख कारकों में ऋण निधि की उच्च लागत, भारतीय नाविकों के वेतन पर कराधान, जहाज़ों के आयात पर IGST, जीएसटी में निर्बाध इनपुट टैक्स क्रेडिट तंत्र आदि शामिल हैं।
    • इस संदर्भ में इन उच्च परिचालन लागतों का सब्सिडी सहायता के माध्यम से समर्थन किया जाएगा तथा  यह भारत में वाणिज्यिक जहाज़ों को ध्वजांकित करने के लिये अधिक आकर्षित करेगा।
  • विदेशी मुद्रा व्यय में वृद्धि: उच्च परिचालन लागत के कारण एक भारतीय चार्टरर (अथवा मालवाहक) के माध्यम से शिपिंग सेवाओं का आयात किसी स्थानीय शिपिंग कंपनी की सेवाओं को अनुबंधित करने की तुलना में सस्ता होता है।
    • परिणामस्वरूप विदेशी पोत परिवहन कंपनियों को किये जाने वाले ‘माल ढुलाई बिल भुगतान’ के मद में विदेशी मुद्रा व्यय में वृद्धि हुई है।

योजना का महत्त्व: 

  • रोज़गार सृजन की क्षमता: भारतीय बेड़े में वृद्धि से भारतीय नाविकों को प्रत्यक्ष रोज़गार मिलेगा क्योंकि भारतीय जहाज़ों को केवल भारतीय नाविकों को नियुक्त करना आवश्यक होता है।
    • इसके अतिरिक्त नाविक बनने के इच्छुक कैडेट्स को जहाज़ों पर ऑन-बोर्ड प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक होता है। भारतीय जहाज़, युवा भारतीय कैडेट लड़कों और लड़कियों को प्रशिक्षण के लिये स्लॉट उपलब्ध कराएंगे।
  • सामरिक लाभ: भारतीय शिपिंग उद्योग के विकास को बढ़ावा देने के लिये एक नीति भी आवश्यक है क्योंकि एक व्यापक राष्ट्रीय बेड़ा होने से भारत को आर्थिक वाणिज्यिक और सामरिक लाभ मिलेगा।
  • आर्थिक लाभ: एक मज़बूत और विविध स्वदेशी शिपिंग बेड़े से न केवल विदेशी शिपिंग कंपनियों को किये जाने वाले माल ढुलाई बिल भुगतान में विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि महत्त्वपूर्ण कार्गो के परिवहन हेतु विदेशी जहाज़ों पर भारत की अत्यधिक निर्भरता भी कम होगी।
    • इस प्रकार यह आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य को प्राप्त करने के साथ ही भारतीय जीडीपी में योगदान करने में मदद करेगा।

स्रोत:  द हिंदू

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