निधि उपयोग के निर्णय में राज्य सरकारों का अत्यधिक हस्तक्षेप | 02 Aug 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (CSE) द्वारा ज़िला खनिज फाउंडेशन पर किये गए अध्ययन में यह समझने के लिये कि डीएमएफ ट्रस्ट कैसे काम करते हैं; ओडिशा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान सहित 12 शीर्ष खनन राज्यों में 50 खनन जिलों की समीक्षा की गई।
प्रमुख बिंदु
- इस अध्ययन के अनुसार किसी भी ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) ने खनन प्रभावित लोगों को इसके लाभार्थियों के रूप में नहीं पहचाना है; ज़्यादातर राज्यों में डीएमएफ प्रशासन में नौकरशाहों और राजनीतिक प्रतिनिधियों का प्रभुत्व है।
- उचित प्रशासनिक ढाँचे की अनुपस्थिति के कारण योजना के कार्यान्वयन में स्पष्टता का अभाव है तथा डीएमएफ फंडों का उपयोग कैसे किया जाएगा इसका निर्णय लेने में बहुत अधिक सरकारी हस्तक्षेप है।
- अध्ययन में बताया गया है कि कहीं भी लाभार्थियों की पहचान नहीं की गई है। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से खान या खनन से संबंधित गतिविधियों के स्थान के आधार पर क्षेत्र का विकास करना है।
- जबकि खानों के आस-पास रहने वाले लोग निश्चित रूप से प्रभावित होते हैं, क्षेत्र-विशिष्ट दृष्टिकोण कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण लाभार्थियों को छोड़ देता है, जैसे खनन के कारण विस्थापित हुए लोग और खनन के लिये अपनी आजीविका (वन-आधारित आजीविका सहित) खोने वाले लोग।
- अध्ययन में कहा गया है कि किसी भी राज्य के डीएमएफ में ग्रामसभा सदस्यों के प्रतिनिधित्व की व्यावहारिक रूप से कोई गुंजाइश नहीं है।
- अध्ययन के अनुसार एक भी ज़िले ने बाल पोषण और पाँच वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर में सुधार के लिये आवश्यक निवेश नहीं किया है। यह ज़्यादातर खनन प्रभावित ज़िलों में एक मुख्य समस्या है और उच्च जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों में स्थिति विशेष रूप से खराब है।