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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

चमगादड़ और मनुष्यों पर वायरस संबंधी शोध

  • 03 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्‍ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र

मेन्स के लिये:

शोध संबंधी विभिन्न तथ्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने नगालैंड में अमेरिका, चीन और भारत के शोधकर्त्ताओं द्वारा चमगादड़ और मनुष्यों पर किये गए इबोला जैसे घातक वायरस संबंधी एंटीबॉडीज़ के प्रसार से संबंधित शोध की जाँच के आदेश दिये हैं।

मुख्य बिंदु:

  • चीन के वुहान से लगभग 20 देशों में प्रसारित नोवल कोरोनोवायरस (Novel Coronavirus) के कारण यह शोध जाँच के दायरे में आया है।
  • कोरोनावायरस के कारण लगभग 300 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।
  • भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) ने उक्त शोध प्रकरण की जाँच के लिये पाँच सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसने अपनी रिपोर्ट स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय को सौंप दी है।

क्या था शोध?

  • यह शोध भारत के ‘टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च’ (Tata Institute of Fundamental Research), नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज़ (National Centre for Biological Sciences- NCBS), चीन के ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (Wuhan Institute of Virology), अमेरिका के ‘यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ यूनिवर्सिटी ऑफ़ द हेल्थ साइंसेज़’ और सिंगापुर की ‘ड्यूक-नेशनल यूनिवर्सिटी’ (Duke-National University) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था।
  • इस शोध को ‘फिलोवायरस रीएक्टिव एंटीबॉडीज़ इन ह्यूमंस एंड बैट्स इन नॉर्थईस्ट इंडिया इम्प्लाई जूनोटिक स्पिलओवर’ (Filovirus-reactive antibodies in humans and bats in Northeast India imply Zoonotic spillover) नाम से एक अमेरिकी जर्नल में प्रकाशित किया गया।
  • इस शोध में शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पूर्वोत्तर भारत में चमगादड़ों और इनके शिकारियों दोनों में फिलोवायरस (जैसे इबोलावायरस मार्बर्गव वायरस और डायनलोवायरस) के प्रतिक्रियाशील एंटीबॉडीज़ की उपस्थिति है।
  • जबकि इस क्षेत्र में इबोला वायरस रोग का कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है।
  • इस शोध से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में चमगादड़ विविध श्रेणी के फिलोवायरस के मेज़बान के रूप में कार्य करते हैं तथा इन चमगादड़ों के संपर्क में आने से फिलोवायरस फैल जाता है।
  • इस शोध में पाया गया कि चमगादड़ में मौजूद वायरस विभिन्न प्रकोपों के लिये ज़िम्मेदार वायरस के प्रतिरूप नहीं होते हैं।

क्यों आया यह शोध जाँच के दायरे में?

  • यह शोध जाँच के दायरे में इसलिये आया था क्योंकि 12 में से दो शोधकर्त्ता ‘वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलोजीज़ डिपार्टमेंट ऑफ इमर्जिंग इन्फेक्शस डिज़ीज़’ (Wuhan Institute of Virology’s Department of Emerging Infectious Diseases) से संबंधित थे।
  • यह शोध संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा विभाग की रक्षा खतरा निवारण एजेंसी (Defense Threat Reduction Agency- DTRA) द्वारा वित्त पोषित था।
  • सरकार का आरोप है कि वैज्ञानिकों ने बिना अनुमति के चमगादड़ों और उनके शिकारियों (मनुष्यों) के रक्त के नमूनों को एकत्रित किया।
  • ऐसी संस्थाओं को विदेशी संस्थाओं के रूप में विशेष अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की राय:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार, चमगादड़ प्रायः इबोला, रेबीज़, मारबर्ग और सार्स कोरोनावायरस के वाहक होते हैं।
  • कई उच्च स्तरीय महामारियाँ चमगादड़ द्वारा वाहित हैं तथा वैज्ञानिक हर समय नए चमगादड़ जनित वायरस की खोज करते रहते हैं।
  • इबोला ने वर्ष 2013 से 2016 तक कई बार वैश्विक स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा किया है।
  • यह एक जानलेवा बीमारी है, इससे होने वाली मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है।

नए खोजे गए कोरोनावायरस की व्यापक चुनौतियों को देखते हुए इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिये प्रयास किये जाने की आवश्यकता है तथा साथ ही यह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है कि देश में किये जाने वाले चिकित्सा संबंधी शोधों में सभी मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाए।

स्रोत- द हिंदू

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