भारतीय संस्थानों द्वारा नाइट्रोजन प्रदूषण का अध्ययन | 25 Jan 2019

चर्चा में क्यों?


हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom-UK) द्वारा 50 अनुसंधान संस्थानों को नाइट्रोजन प्रदूषण के आकलन और अध्ययन के लिये 20 मिलियन पाउंड का वित्त प्रदान किया गया। इन 50 अनुसंधान संस्थानों में भारत के 18 संस्थान भी शामिल हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यूनाइटेड किंगडम द्वारा दक्षिण एशिया में पर्यावरण, खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिये नाइट्रोजन प्रदूषण की चुनौती से निपटने हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम पर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।
  • दक्षिण एशियाई नाइट्रोजन हब, यूनाइटेड किंगडम के सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी (Centre for Ecology & Hydrology) के अंतर्गत एक सहयोगी की भूमिका में काम कर रहे हैं, जिसमें ब्रिटेन और दक्षिण एशिया के 50 से अधिक संगठन शामिल किये गए हैं।
  • नाइट्रोजन प्रदूषण के आकलन और अध्ययन हेतु इस वित्त को ग्लोबल चैलेंज रिसर्च फंड (Global Challenges Research Fund-GCRF) के तहत यूनाइटेड किंगडम रिसर्च एंड इनोवेशन (United Kingdom Research and Innovation-UKRRI) द्वारा दिया जाएगा।
  • आने वाले पाँच वर्षों में 19.6 मिलियन पाउंड दिया जाएगा जिसमें URKI से 17.1 मिलियन तथा UK एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों से 2.5 मिलियन पाउंड का सहयोग शामिल है। इसमें दक्षिण एशिया सहकारी पर्यावरण कार्यक्रम (SACEP) भी शामिल है।
  • जिसका उद्देश्य विकासशील देशों एवं वैश्विक स्तर पर सतत् विकास में आने वाली चुनौतियों के लिये सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, भागीदारों और गैर सरकारी संगठनों के रचनात्मक और टिकाऊ समाधान विकसित करना है

वित्त प्राप्त भारतीय अनुसंधान संस्थान निम्नलिखित हैं –

  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
  • सेंटर फॉर मरीन लिविंग रिसोर्सेज एंड इकोलॉजी
  • काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च
  • राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान
  • गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद
  • भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान
  • राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान
  • राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी परिसर
  • भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान
  • हिंद महासागर रिम एसोसिएशन, पारिस्थितिक समाधान
  • जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
  • कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी
  • नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट
  • नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी
  • प्रकृति संरक्षण सोसाइटी
  • सस्टेनेबल इंडिया ट्रस्ट
  • ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI)

नाइट्रोजन प्रदूषण

  • नाइट्रोजन - वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस सबसे ज़्यादा मात्रा में पाई जाने वाली एक निष्क्रिय गैस है। परंतु जब यह गैस खेतों, नालों और जैविक कचरे के यौगिकों से निकलती है तो क्रियाशील होकर प्रदूषणकारी हो जाती है, इसका प्रभाव ग्रीन हाउस गैस जैसा भी हो सकता है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा अब तक कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और इसके ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया लेकिन नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव के लिये 300 गुना अधिक शक्तिशाली है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • अंतर्राष्ट्रीय नाइट्रोजन पहल (International Nitrogen Initiative-INI) के अध्यक्ष तथा नई दिल्ली में जैव प्रौद्योगिकी के एक प्रोफेसर के अनुसार, नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) की मात्रा वायुमंडल में नगण्य है, लेकिन प्रदूषण से यह बढ़ सकती है और निकट भविष्य में कार्बन डाईऑक्साइड से ज़्यादा खतरनाक हो सकती है।
  • वायु प्रदूषण के साथ-साथ नाइट्रोजन प्रदूषण, जैव विविधता, नदियों एवं समुद्रों के प्रदूषण, ओज़ोन परत , स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और आजीविका पर भी बुरा असर डाल सकता है। उदाहरण के लिये –

♦ नाइट्रोजन प्रदूषण सामान्यतः रासायनिक उर्वरकों, पशुओं के मल और जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जन के कारण होता है। अमोनिया और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैसें वायु प्रदूषण को बढ़ाने में सहयोग करती हैं जो वैश्विक स्तर पर श्वसन एवं हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ा सकती हैं।
♦ रासायनिक उर्वरक, नाइट्रेट और उद्योग धंधों से निकलने वाले अवशिष्ट नाइट्रोजनी पदार्थ नदियों और समुद्रों को प्रदूषित करते हैं, जो मनुष्यों, मछलियों, प्रवाल और पौधों के जीवन पर बुरा प्रभाव डालते हैं।


स्रोत – द हिंदू