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सामाजिक न्याय

बच्‍चों से जुड़े यौन अपराधों के लिये सख्त दंडात्‍मक प्रावधान

  • 11 Jul 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

प्रधानमंत्री की अध्‍यक्षता में मंत्रिमंडल ने बच्‍चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के संदर्भ में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए बाल यौन अपराध संरक्षण कानून 2012 (पोक्‍सो) में संशोधन (Amendments in the Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012) को मंज़ूरी दे दी है।

  • प्रमुख बिंदु:
  • इस संशोधन में बच्‍चों से जुड़े यौन अपराधों के लिये मृत्‍युदंड सहित सख्‍त दंडात्‍मक प्रावधान किये गए हैं।
  • कानून में संशोधन के ज़रिये कड़े दंडात्‍मक प्रावधानों के फलस्वरूप बच्‍चों से जुड़े यौन अपराधों में कमी आएगी।
  • विपरीत परिस्थिति में फंसे बच्‍चों के हितों की रक्षा की जा सकेगी साथ ही उनकी सुरक्षा एवं सम्‍मान भी सुनिश्चित हो सकेगा।
  • इस संशोधन का लक्ष्‍य बच्‍चों से जुड़े अपराधों के मामले में दंडात्‍मक व्‍यवस्‍थाओं को अधिक स्‍पष्‍ट करना है।

पृष्‍ठभूमि:

  • POCSO, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) का संक्षिप्त नाम है।
  • संभवतः मानसिक आयु के आधार पर इस अधिनियम का वयस्क पीड़ितों तक विस्तार करने के लिये उनकी मानसिक क्षमता के निर्धारण की आवश्यकता होगी। इसके लिये सांविधिक प्रावधानों और नियमों की भी आवश्यकता होगी, जिन्हें विधायिका अकेले ही लागू करने में सक्षम है।
  • POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
  • इस अधिनियम ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्‍यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और बच्‍चे का शारीरिक, भावनात्‍मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज्‍यादा महत्त्व देते हुए बच्‍चे के श्रेष्‍ठ हितों और कल्‍याण का सम्‍मान करता है। इस अधिनियम में लैंगिक भेदभाव (Gender Discrimination) नहीं है।

“हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है कि 16 वर्ष की आयु के बाद सहमति से यौनिक, शारीरिक संबंध या इस प्रकार के अन्य कृत्यों को POCSO अधिनियम के दायरे से बाहर कर देना चाहिये।”

मद्रास उच्च न्यायालय के सुझाव

  • POCSO अधिनियम के खंड 2(d) के अंतर्गत चाइल्ड/बालक को 18 वर्ष से कम आयु के बजाय 16 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में पुनः परिभाषित किया जा सकता है।
  • अधिनियम में कुछ उपयुक्त संशोधन किये जा सकते हैं ताकि 16 वर्ष से अधिक आयु की लड़की और 16 से 21 वर्ष की आयु के बीच के लड़के के बीच के संबंधों पर सख्त प्रावधान लागू न हों।
  • यदि सहमति से बने यौन संबंधों के मामले में 16 वर्ष या उससे अधिक आयु की पीड़िता से अपराध करने वाले व्यक्ति की आयु पाँच वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिये। इस प्रकार अपरिपक्व आयु की लड़की का किसी परिपक्व व्यक्ति द्वारा लाभ उठाए जाने से रोका जा सकेगा।

विभिन्न अधिनियमों के अंतर्गत निर्धारित आयु वर्ग के तहत चाइल्ड/बालक की परिभाषा

  • POCSO अधिनियम: 18 वर्ष से कम
  • बाल मज़दूर (निषेध एवं विनियमन)अधिनियम 1986: 14 वर्ष से कम
  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: 14 वर्ष से कम
  • कंपनी अधिनियम, 1948: 15 वर्ष से कम

आयु की सहमति प्रदान करने पर वैश्विक कानून

  • बहुत से देशों में 16 साल या उससे कम आयु वर्ग को चाइल्ड/बालक की श्रेणी में रखा गया है।
  • अमेरिका के बहुत से देश, यूरोप, जापान, कनाडा ऑस्ट्रेलिया चीन और रूस भी इस श्रेणी में शामिल है।

POCSO के अंतर्गत निर्धारित आयु में कमीं की माँग

  • डिज़िटल तकनीकी के नवाचार के इस दौर में बच्चों को ज़्याद- से-ज़्यादा जानकारियाँ प्राप्त हैं। वे POCSO द्वारा निर्धारित आयु से बहुत पहले ही किसी भी रिश्ते के प्रति वयस्क और परिपक्व हो रहे हैं।
  • 16-18 आयु वर्ग के बच्चों द्वारा पाए गए यौन शोषण के मामले जो लड़की के माता-पिता या अभिभावकों के अनुरोध पर दर्ज़ किये जाते हैं, सामान्यतः सहमति पर आधारित होते हैं। ऐसे बहुत से मामले न्यायालय में लंबित हैं जिनमें POCSO प्रावधान का लाभ उठाकर इसका दुरूपयोग किया जा रहा है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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