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शासन व्यवस्था

पुलिस व्यवस्था पर सर्वेक्षण

  • 28 Aug 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

कॉमन कॉज़ (Common Cause) और लोकनीति (Lokniti) नामक गैर-सरकारी संगठनों द्वारा देश के 21 राज्यों में किये गए सर्वेक्षण में पाया गया है कि देश के अधिकतर पुलिस अफसर अत्यधिक कार्यभार, कार्य एवं निजी जीवन के बीच असंतुलन और संसाधनों की कमी के कारण भारी तनाव में हैं।

सर्वेक्षण की मुख्य बातें:

  • एक तिहाई पुलिस अफसरों ने यह माना है कि यदि उन्हें समान वेतन और सुविधाओं वाली कोई अन्य नौकरी दी जाए तो वे अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ देंगे।
  • चार में से तीन पुलिसकर्मियों ने कहा कि कार्यभार के कारण उनके लिये अपने काम को अच्छी तरह से करना मुश्किल हो जाता है और इससे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
    • आँकड़ों के अनुसार, एक औसत पुलिस अधिकारी एक दिन में लगभग 14 घंटे कार्य करता है, जबकि मॉडल पुलिस अधिनियम (Model Police Act) सिर्फ 8 घंटों की ड्यूटी की सिफारिश करता है।
    • हर दूसरे पुलिसकर्मी ने सप्ताह में एक भी अवकाश न मिलने की बात कही है।
  • कार्य तथा निजी जीवन के बीच असंतुलन के अतिरिक्त पुलिसकर्मियों को संसाधनों की कमी की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
    • कुछ पुलिस स्टेशनों में पीने के पानी, स्वच्छ शौचालय, परिवहन, कर्मचारियों और नियमित खरीद के लिये धन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • पुलिसकर्मियों ने बुनियादी तकनीकी सुविधाओं जैसे- कंप्यूटर और भंडारण सुविधा की अनुपस्थिति की भी बात कही है।
  • सर्वेक्षण में न्यायिक प्रक्रियाओं के प्रति पुलिस बल में कई लोगों के आकस्मिक (Casual) रवैये पर प्रकाश डाला गया है।
    • लगभग पाँच में से तीन पुलिसकर्मियों का मानना ​​है कि प्राथमिक जाँच रिपोर्ट (First Investigation Report-FIR) दर्ज होने से पहले प्राथमिक जाँच होनी चाहिये, चाहे वह कितना भी गंभीर अपराध क्यों न हो।
      • यह 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के विपरीत है जिसमें कहा गया है कि यदि किसी पीड़ित द्वारा संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाता है तो पुलिस द्वारा FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
    • सर्वेक्षण में शामिल हर तीसरे पुलिस कर्मियों ने सहमति व्यक्त की है कि मामूली अपराधों के लिये पुलिस द्वारा अभियुक्तों को सौंपी गई मामूली सज़ा कानूनी परीक्षण से बेहतर है।
    • सर्वेक्षण में भाग लेने वाले तीन-चौथाई लोगों का मानना है कि पुलिस का अपराधियों के प्रति हिंसक रवैया अपनाना ठीक है।
  • सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि पुलिसकर्मियों को शारीरिक मापदंडों, हथियारों और भीड़ नियंत्रण के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया गया है, तथापि अभी तक उन्हें साइबर अपराध या फोरेंसिक तकनीक के मॉड्यूल का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
  • उपरोक्त तथ्यों के कारण ही वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (World Justice Project) द्वारा जारी रूल ऑफ लॉ इंडेक्स (Rule of Law Index) में भारत की रैंकिंग 126 देशों में से 68वीं हैं।

आगे की राह

भारत में पुलिस और न्याय व्यवस्था दिनों-दिन खराब होती जा रही है जिसके कारण इसे जल्द-से-जल्द नए सुधारों की आवश्यकता है। चूँकि पुलिस, कानून एवं व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं, इसलिये केंद्र सरकार प्रकाश सिंह मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई सिफारिशों को लागू करने के लिये सभी राज्यों से आग्रह कर सकती है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

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