भारत में अधिकरणों को सशक्त बनाना | 04 Mar 2025
प्रिलिम्स के लिये:अधिकरण, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, सशस्त्र बल अधिकरण (AFT), न्यायाधीश एडवोकेट जनरल। मेन्स के लिये:अधिकरणों के बारे में, अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021, अधिकरणों से संबंधित चुनौतियाँ। |
स्रोत: एचटी
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय (SC) अधिकरणों को प्रभावित करने वाले प्रमुख मुद्दों की जाँच तथा अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर रहा है ।
- इसके द्वारा कुशल न्यायनिर्णयन सुनिश्चित करने और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिये अधिकरणों को मज़बूत बनाने के महत्त्व को रेखांकित किया है।
अधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 क्या है?
- परिचय:
- यह अधिनियम कुछ अपीलीय अधिकरणों को समाप्त करके तथा उनके कार्यों को उच्च न्यायालयों जैसे विद्यमान न्यायिक निकायों को हस्तांतरित करके अधिकरणों के कामकाज को सुव्यवस्थित करने के लिये बनाया गया था।
- इसे मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2021) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के तहत पेश किया गया था, जिसने अधिकरण (ट्रिब्यूनल) संबंधी सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा की शर्तें) अध्यादेश, 2021 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दिया था।
- प्रमुख प्रावधान:
- न्यायाधिकरण उन्मूलन: यह अधिनियम कई अपीलीय न्यायाधिकरणों को भंग करके उनके कर्तव्यों को उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक निकायों को हस्तांतरित करता है।
- जाँच एवं चयन समिति: इसकी स्थापना अधिकरण के अध्यक्षों और सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश करने के लिये की गई है।
- केंद्रीय अधिकरणों के लिये:
- अध्यक्ष: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या CJI द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (निर्णायक मत)।
- केंद्र सरकार द्वारा नामित दो सचिव।
- अधिकरण का वर्तमान/निवर्तमान अध्यक्ष, अथवा उच्चतम न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अथवा उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश।
- गैर-मतदान सदस्य: संबंधित केंद्रीय मंत्रालय का सचिव।
- राज्य प्रशासनिक अधिकरणों के लिये:
- अध्यक्ष: संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (निर्वाचन मत)।
- राज्य सरकार के मुख्य सचिव।
- राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष।
- अधिकरण का वर्तमान/निवर्तमान अध्यक्ष अथवा उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश।
- पदावधि और आयु सीमा: न्यूनतम आयु 50 वर्ष के साथ अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि 4 वर्ष होगी।
- अधिकरण के सदस्यों के लिये अधिकतम आयु सीमा 67 वर्ष और अध्यक्ष के लिये 70 वर्ष अथवा 4 वर्ष का कार्यकाल पूरा होने तक, जो भी पहले हो, है।
- अधिकरण के अध्यक्ष और सदस्य पुनर्नियुक्ति के पात्र हैं, तथा उनकी पिछली सेवा को वरीयता दी जाएगी।
- अधिकरण के सदस्यों का हटाया जाना: केंद्र सरकार खोज-सह-चयन समिति की सिफारिश पर अध्यक्ष या सदस्य को हटा सकती है।
- न्यायाधिकरण उन्मूलन: यह अधिनियम कई अपीलीय न्यायाधिकरणों को भंग करके उनके कर्तव्यों को उच्च न्यायालयों और अन्य न्यायिक निकायों को हस्तांतरित करता है।
अधिकरण क्या हैं?
- परिचय: अधिकरण अर्द्ध-न्यायिक निकाय हैं जो प्रशासन, कराधान, पर्यावरण, प्रतिभूतियों आदि से संबंधित विवादों के समाधान से संबंधित है।
- कार्य: यह विभिन्न कार्य करता है, जिसमें विवादों का समाधान करना, पक्षकारों के बीच अधिकारों का निर्धारण करना, प्रशासनिक निर्णय लेना और मौजूदा प्रशासनिक निर्णयों की समीक्षा करना शामिल है।
- संवैधानिक प्रावधान: अधिकरणों को भारतीय संविधान में 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से शामिल किया गया था, क्योंकि वे मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे।
- अनुच्छेद 323-A: यह लोक सेवा मामलों के लिये प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 323-B: इसमें विभिन्न मामलों पर अधिकरणों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं, जिनमें कराधान, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, औद्योगिक और श्रमिक विवाद, संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव, खाद्य सुरक्षा शामिल हैं।
अधिक जानकारी हेतु यहाँ क्लिक कीजिये: अधिकरण और न्यायालय में क्या अंतर है?
अधिकरणों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्टाफ की कमी: पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक और तकनीकी सदस्यों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है और अधिकरण की प्रभावशीलता कम हुई है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय के दिवाला और शोधन अक्षमता कोड (IBC) के मामलों से स्पष्ट होता है।
- बुनियादी ढाँचे का अभाव: NGT समेत कई अधिकरणों को अपर्याप्त न्यायालय कक्ष, डिजिटल केस प्रबंधन और तकनीकी सहायता का सामना करना पड़ता है, जिससे केस की दक्षता प्रभावित होती है। शहरी क्षेत्रों में NGT की सीमित पहुँच से भी पर्यावरण विवादों में हाशिए पर स्थित समुदायों का न्याय तक पहुँच सीमित होता है।
- प्रक्रियागत अकुशलताएँ: बार-बार स्थगन, समय-सीमा में चूक, तथा कमज़ोर प्रवर्तन से अधिकरणों की कार्यकुशलता में बाधा उत्पन्न होती है, जिसके कारण मुवक्किल उच्चतर न्यायालयों का रुख करते हैं।
- उदाहरण के लिये, NCLT और NCLAT को अत्यधिक विलंब का सामना करना पड़ता है, जहाँ IBC के तहत 67% दिवालियापन मामले 330 दिन की समय-सीमा से अधिक समय तक लंबित रहते हैं।
- राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता: राजनीतिक प्रतिबद्धता की कमी, बजट की कमी और वित्त मंत्रालय द्वारा लागत में कटौती से अधिकरण की दक्षता में बाधा आती है।
आगे की राह
- त्वरित नियुक्तियाँ: अधिकरणों के कुशलतापूर्वक कार्य हेतु न्यायिक एवं तकनीकी सदस्यों की समय पर नियुक्ति आवश्यक है।
- इसके अतिरिक्त इनकी विशेषज्ञता एवं निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाने के क्रम में इन्हें प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी में निवेश: डिजिटलीकरण, ई-कोर्ट एकीकरण एवं क्षेत्रीय पीठों के माध्यम से अधिकरण की दक्षता को बढ़ाने से केस ट्रैकिंग को सुव्यवस्थित किया जा सकता है, देरी को कम किया जा सकता है तथा न्याय तक पहुँच में सुधार किया जा सकता है।
- प्रक्रियात्मक और प्रशासनिक सुधार: अधिकरणों को प्रक्रियात्मक एवं प्रशासनिक सुधार के माध्यम से देरी के लिये दंड लगाना चाहिये तथा लंबित मामलों को कम करने के क्रम में मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- रजिस्ट्री एवं प्रशासनिक स्टाफ को मज़बूत करने से कुशल केस शेड्यूलिंग एवं प्रबंधन सुनिश्चित होगा।
- स्वायत्तता और जवाबदेहिता: अधिकरणों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने हेतु अधिक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिये तथा पारदर्शिता बढ़ाने, सरकारी हस्तक्षेप को न्यूनतम करने एवं कुशल संचालन के लिये पर्याप्त संसाधन आवंटन सुनिश्चित करने के क्रम में मज़बूत निरीक्षण तंत्र पर भी बल देना चाहिए।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारतीय न्यायिक प्रणाली में अधिकरणों के महत्त्व पर प्रकाश डालिये। साथ ही, पारंपरिक न्यायिक प्रणाली में न्याय के अधिकरणीकरण के प्रभाव की चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान के अनुरूप बनाया गया था? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) |