एयर इंडिया में रणनीतिक विनिवेश | 30 Jun 2017
संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने विनिवेश पर सचिवों के कोर ग्रुप (CGD) की सिफारिशों के आधार पर एयर इंडिया और उसकी पाँच सहायक कंपनियों के रणनीतिक विनिवेश की लंबे समय से हो रही मांग को सिद्धांततः मंज़ूरी दे दी है। ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा एयरलाइन को नुकसान से बचने के लिये काफी लम्बे समय से भारी रकम खर्च करनी पड़ रही थी।
एयर इंडिया
- एयर इंडिया के पास देश में 140 विमानों का सबसे बड़ा घरेलू और लंबी दूरी का बेड़ा है।
- यह लगभग 41 अंतर्राष्ट्रीय और 72 घरेलू गंतव्यों के लिये अपनी सेवाएँ प्रदान करता है।
- एयर इंडिया 17 प्रतिशत बाज़ार हिस्सेदारी के साथ भारत का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय वाहक है।
- एयर इंडिया की घरेलू पैसेंजर बाज़ार में 14.6 फीसदी हिस्सेदारी है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- विनिवेश की मात्रा तय करने के लिये मंत्रियों के एक समूह का गठन किया जाएगा।
- इस एयरलाइन्स के 52,000 करोड़ रुपए से अधिक के कर्ज़ भार को देखते हुए ‘नीति आयोग’ ने एयरलाइन के पूर्ण निजीकरण का सुझाव दिया है।
- एयर इंडिया को 2012 में भी पिछली सरकार द्वारा 30,000 करोड़ रुपए का बेलआउट पैकेज़ दिया गया था, साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा ऋण राहत प्रदान की गई थी।
- एयर इंडिया पर अभी लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज़ भार विद्यमान है। यह अनुमान लगाया जाता है कि परिसंपति की बिक्री भी पूरी एयरलाइन्स की वर्तमान देनदारियों को पूरा नहीं कर पाएगी।
- इसके तहत सीधे तौर पर सरकार द्वारा एयरलाइन के लेनदारों को भुगतान किया जा सकता है या फिर अप्रत्यक्ष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा ऋण माफी की जा सकती है।
- यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि क्या एयरलाइन का पूरी तरह से निजीकरण किया जाएगा और कैसे इसकी बिक्री को अंतिम रूप दिया जाएगा। यह भी संभावना है कि सरकार अपनी तीन लाभकारी सहायक कंपनियों का अलग से विनिवेश करे, ताकि एयर इंडिया की देनदारियों से निपटने में मदद मिल सके।
- उल्लेखनिये है कि इस प्रकार की मदद से सरकार को भारी निवेश करना पड़ता है और उसके राजकोष पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अगर इस प्रकार सरकारी खर्चे को बचाया जाता है तो सरकार इस पैसे का उपयोग महत्त्वपूर्ण सामाजिक और बुनियादी ढाँचे से संबंधित कार्यक्रमों को पूरा करने के लिये कर सकती है।
किस दिशा में आगे बढ़े
- विनिवेश का लक्ष्य एयरलाइन के लिये सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करना है।
- बेहतर मूल्य प्राप्त करने का एक अच्छा तरीका यह हो सकता है कि घरेलू और विदेशी दोनों खरीदारों को इसके लिये स्वतंत्र रूप से बोली लगाने की अनुमति दी जाए। ध्यातव्य है कि सरकार को विदेशी निवेशकों को एयर इंडिया में हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति देने के लिये एफ.डी.आई. नीति (FDI Policy) में बदलाव करने की आवश्यकता पड़ेगी।
- नागरिक उड्डयन मंत्रालय लेनदारों को भुगतान करने के लिये ‘गैर-कोर संपत्तियों’ (Non-Core Assets) की बिक्री के लिये एक प्लान बना रही है ताकि निजी खरीदारों के लिये एयरलाइन को और अधिक आकर्षक बनाया जा सके।
- इंडिगो (IndiGo ) एयरलाइन्स ने पहले ही एयर इंडिया में हिस्सेदारी खरीदने के लिये अपनी रुचि व्यक्त की है, साथ ही अन्य घरेलू एयरलाइन्स द्वारा भी बोली लगाने के संकेत दिये गए है।
निष्कर्ष
एयर इंडिया की ऋण भार समस्या का सरकार को तुरंत समाधान करने की ज़रूरत है। वास्तव में ऋण भार से निपटना सरकार के लिये लम्बे समय से एक चुनौती बना हुआ है। अत: सरकार को एयरलाइन्स के विनिवेश की प्रक्रिया में इस प्रकार आगे बढ़ना चाहिये, ताकि विनिवेश प्रक्रिया न केवल एयर इंडिया के लिये ही महत्त्वपूर्ण बन सके, बल्कि आने वाले समय में सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य इकाईयों के विनिवेश को भी आसान बना सके।