सुंदरबन में मैंग्रोव को हो रहा है लगातार नुकसान | 04 Jul 2017

संदर्भ
देश की ज़्यादातर मैंग्रोव वनस्पति पूर्वी एवं पश्चिमी तटों के किनारे पाई जाती हैं। मैंग्रोव वनस्पति एक तरफ जहाँ स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं, वहीं दूसरी तरफ तटीय क्षेत्रों को चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा भी प्रदान करती हैं, लेकिन हाल ही के अध्ययनों से पता चला है कि अनेक कारणों से इन वनस्पतियों के क्षेत्र में गिरावट हो रही है।

मैंग्रोव

  • यह एक सदाबहार झाड़ीनूमा या छोटा पेड़ होता है, जो तटीय लवण जल या लवणीय जल में वृद्धि करता है। 
  • इस शब्द का इस्तेमाल उष्णकटिबंधीय तटीय वनस्पतियों के लिये भी किया जाता है, जिसमें ऐसी ही प्रजातियाँ पाई जाति हैं। 
  • मैंग्रोव वन मुख्यतः 25 डिग्री उत्तर और 25 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • भारतीय मैंग्रोव क्षेत्र की ज़्यादा क्षति औपनिवेशिक काल के दौरान हुई थी, जब इनको खेती करने के लिये काटा जाता था।
  • ‘जादवपुर विश्वविद्यालय’ द्वारा किये गए एक अध्ययन में बताया गया है कि लगभग 10,000 वर्ग कि.मी. मैंग्रोव क्षेत्र, जो लाखों लोगों की भोजन, पानी और वन उत्पादों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, के लिये जलवायु परिवर्तन एक उभरता हुआ खतरा उत्पन्न कर रहा है।
  • ध्यातव्य है कि इस क्षेत्र में बाघों की एक अनूठी प्रजाति निवास करती है। इस बाघ प्रजाति ने ‘भूमि-समुद्र इंटरफ़ेस’ में आसानी से चलने-फिरने के लिये अपने आप को अनुकूलित कर लिया है। 
  • सुंदरबन एक ऐसा ठोस उदाहरण पेश कर रहा, जो यह दिखा रहा है कि पारिस्थितिकी में हो रहे नुकसान का लोगों के साथ-साथ आसपास के परिदृश्य पर क्या प्रभाव हो सकते है। 
  • आम तौर पर नदियों द्वारा लाई गई तलछट, जो यहाँ अवस्थित द्वीपों के क्षेत्रफल में वृद्धि करती थी, अब यह तलछट नदियों पर बनाए जा रहे बांधों द्वारा रोक ली जाती है। फलस्वरूप द्वीपों के क्षेत्रफल में कमी हो रही है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि इन वनों के क्षेत्रफल में कमी हो रही है।   
  • बड़ी हिमालयी नदियों द्वारा लाए गए ताज़े जल और उच्च लवणता वाला सुंदरबन का यह ‘संगम क्षेत्र’ (confluence zone) जैव-विविधता का एक केंद्र बना हुआ है, जो लगभग 4.5 मिलियन भारतीय लोगों को सहायता प्रदान कर रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि सुंदरी वन सहित मैंग्रोव पेड़ ऐतिहासिक रूप से नौकाओं और पुलों के निर्माण में स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं की मदद करते रहे है। यही कारण है कि इस क्षेत्र ने बड़ी संख्या में लोगों को यहाँ निवास करने के लिये आकर्षित किया है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र की जनसंख्या 1951 की 1.15 मिलियन से बढ़कर छ: दशक बाद 4.4 मिलियन हो गई है।

क्या किया जाना चाहिये 

  • भारतीय सुंदरबन वन क्षेत्र, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संलग्न मैंग्रोव पारिस्थितिकी क्षेत्र है, के ताज़ा अध्ययनों ने चेतावनी दी है कि इस क्षेत्र को हानि से बचाने के लिये त्वरित प्रयास किये जाने चाहिये।
  • सुंदरबन के कुछ हिस्सों को कानूनी रूप से राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों (विशेष रूप से बाघ संरक्षण) के रूप में संरक्षित किया गया है। 
  • इस क्षेत्र के भविष्य को हम स्थानीय स्तर की कार्रवाईयों को अपनाकर सुरक्षित कर सकते हैं।
  • ऐसी नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है, जो मानव विकास पर ध्यान दे, ताकि बढ़ते प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या दबाव को कम किया जा सके।
  • वैज्ञानिकों ने नीदरलैंड की तर्ज़ पर कटाव को रोकने हेतु डाइको (Dikes) का निर्माण करने का सुझाव दिया है।
  • यहाँ विद्यमान पेड़-पौधों की प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करने की ज़रूरत है, ताकि वे लवणता की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों को सह सकें और साथ ही साथ स्थानीय समुदायों को लाभ भी पहुँचा सकें।
  • चूँकि सुंदरबन पक्षी और जानवरों की प्रजातियों के लिये काफी प्रसिद्ध है। अत: हमें इस क्षेत्र में  पारिस्थतिकी-पर्यटन (Eco-tourism) पर सावधानीपूर्वक ध्यान देना चाहिये, जिसमें जागरूकता और राजस्व बढ़ाने की क्षमता विद्यमान है।

निष्कर्ष 
उपर्युक्त चर्चा से विदित है कि हमें इस अमूल्य धरोहर को बचाने की दिशा में तुरंत कारगर कदम उठाने चाहिये। इसके लिये भारत को बांग्लादेश के साथ मिलकर इस क्षेत्र के धारणीय विकास की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये। इसके लिये वित्त की कमी को पूरा करने हेतु ‘अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त व्यवस्था’ (International Climate Finance) की मदद लेनी चाहिये। जलवायु अनुसंधान और सामाजिक विज्ञान दोनों सहक्रियाशील रूप से कार्य करते हुए सुंदरबन को सुरक्षित बनाने में अहम् भूमिका निभा सकते हैं। इन प्रयासों से एक तरफ जहाँ स्थानीय समुदायों को गरीबी जैसी समस्याओं से उभारने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को भी कम किया जा सकेगा।