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बढ़ते राजस्व घाटे के कारण राज्यों की बिगड़ती राजकोषीय स्थिति

  • 25 Apr 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?
हाल ही में जारी केयर रेटिंग रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 के मुकाबले 2017-18 में राज्यों की राजकोषीय स्थिति खराब हुई है क्योंकि अधिकांश राज्यों के राजस्व घाटे में वृद्धि हुई है। साथ ही राजस्व अधिशेष वाले राज्यों के अधिशेष में भी कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार राज्यों ने परिसंपत्ति निर्माण पर अपने ध्यान केंद्रण में बढ़ोतरी की है जो कि भविष्य में संवृद्धि और विकास के लिये आवश्यक है।

प्रमुख बिंदु 

  • रिपोर्ट में 24 राज्यों का विश्लेषण किया गया है जिनमें से 14 राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2017-18 (FY18) में परिसंपत्ति सृजन (asset creation) हेतु अपना व्यय बढ़ाया है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकांश राज्य सकल राजकोषीय घाटा और सकल राज्य घरेलू अनुपात (GFD-GSDP ratio) को 3.5 प्रतिशत के अंदर रखने में सफल रहे हैं वहीं पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, नागालैंड और बिहार ने इसका अतिक्रमण किया है।
  • वित्तीय वर्ष 2016-17 (FY17) में 10 राज्यों में राजकोषीय घाटा अनुपात 3% से अधिक था, जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 में 14 राज्यों का घाटा 3% से अधिक था जिनमें से पाँच राज्यों में यह आँकड़ा 3.5% से भी अधिक था।
  • हालाँकि, रिपोर्ट में यह इंगित किया गया है कि अधिकांश राज्यों ने वित्त आयोग द्वारा निर्धारित राजकोषीय घाटे के मानदंडों का पालन किया।
  • समेकित आधार पर राज्यों के राजस्व व्यय में वृद्धि हुई है। बिहार, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश राज्य वित्तीय वर्ष 2016-17 में राजस्व अधिशेष की स्थिति में थे जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 में इसमें कमी आई।
  • असम, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने वित्तीय वर्ष 2016-17 में राजस्व घाटा दर्ज किया था और वित्तीय वर्ष 2017-18 में इसमें और वृद्धि हुई। 
  • जम्मू-कश्मीर, झारखंड और गुजरात ने अपने राजस्व अधिशेष में सुधार किया।
  • आंध्र प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल और हरियाणा जैसे राज्यों ने राजस्व घाटे को कम किया।
  • 14वें वित्त आयोग के अनुसार सभी राज्यों को शून्य राजस्व घाटा बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • अधिकांश राज्य अपने ऋण स्तर (जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में) स्थिर रखने में कामयाब रहे। जबकि 19 राज्यों में से 11 राज्यों ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में जीएसडीपी के 25 प्रतिशत के निर्धारित मानदंड के नीचे अपना कर्ज बनाए रखा।
  • 21 में से 10 राज्यों का ब्याज-राजस्व प्राप्ति अनुपात (interest to revenue receipts ratio) 10 प्रतिशत के मानदंड से कम था।
  • पंजाब और पश्चिम बंगाल सबसे अधिक ऋणी राज्यों में शामिल हैं, उनकी राजस्व प्राप्तियों का 20 प्रतिशत से अधिक ब्याज भुगतान पर खर्च किया जाता है जो विकास उद्देश्यों पर खर्च करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।
  • पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु पर ब्याज का बोझ उनके राजस्व के 15 प्रतिशत से अधिक था।
  • सरकार के लिये पूंजीगत परिव्यय अति महत्त्वपूर्ण होता है। यह पूंजीगत संचयन में वृद्धि करके भविष्य में संवृद्धि और विकास की नींव रखता है। 
  • रिपोर्ट के अनुसार परिसंपत्ति सृजन हेतु राज्यों का समेकित परिव्यय उनके कुल परिव्यय के 15 प्रतिशत की नीचे बना हुआ है।
  • हालाँकि, समेकित स्तर पर राज्यों द्वारा पूंजीगत परियोजनाओं के लिये परिव्यय कुल परिव्यय के 14.2 प्रतिशत पर स्थिर है लेकिन राज्य स्तर पर पूंजीगत परिसंपत्ति के सृजन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • जहाँ वित्तीय वर्ष 2016-17 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2017-18 में 24 में से 14 राज्यों के पूंजीगत योजनाओं हेतु परिव्यय में वृद्धि हुई, वहीं 10 राज्यों में इसमें कमी आई।
  • गोवा में परिसंपत्ति सृजन हेतु कुल परिव्यय का 27 प्रतिशत आवंटित किया गया जो सर्वाधिक था, जबकि पंजाब और छतीसगढ़ में यह मात्र 4 प्रतिशत आवंटित किया गया, जो सबसे कम था।
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