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भारतीय राजव्यवस्था

संयुक्त राष्ट्र, राज्य नहीं

  • 21 May 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर फैसला देते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र भारत के संविधान के अनुच्छेद 12(Article 12) के तहत एक राज्य नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 226(Article 226) के तहत अपने अधिकार क्षेत्र के लिये उत्तरदायी नहीं है।

प्रमुख बिंदु

  • संयुक्त राष्ट्र(United Nations-UN) के एक पूर्व कर्मचारी संजय बहल को एक अमेरिकी संघीय न्यायालय(US Federal Court) ने कदाचार का दोषी पाया था।प्रमाणित दोष के आधार पर संजय बहल को 97 महीने की कैद और दो साल की आदेशात्मक नज़रबंदी  की सज़ा सुनाई गई थी।
  • इसके बाद बहल को मई 2014 में कैद से रिहाई देकर भारत निर्वासित कर दिया गया था।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में संजय बहल ने दावा किया था कि उनके मामले में निर्धारित  प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
  • संजय बहल ने नवंबर 2018 में विदेश मंत्रालय(Ministry of External Affairs-MEA) को एक पत्र लिखा था जिसमें नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 86 के तहत संयुक्त राष्ट्र संगठन (United Nation Organization-UNO) के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने की अनुमति देने की मांग की गई थी।
  • 1908 की धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक विदेशी राज्य के खिलाफ केंद्र सरकार की सहमति से किसी भी न्यायालय में मुकदमा दायर किया जा सकता है।
  • उस पत्र के जवाब में विदेश मंत्रालय ने  यह स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र को सम्मन जारी करने के लिए भारत सरकार की स्वीकृति आवश्यक नहीं है क्योंकि यह एक विदेशी राज्य नहीं, केवल एक आंतरिक संगठन है।
  • हालाँकि संयुक्त राष्ट्र (विशेषाधिकार एवं प्रतिरक्षा) अधिनियम 1947 के अंतर्गत संयुक्त राष्ट्र और इसके अधिकारी को कानूनी प्रक्रिया से प्रतिरक्षा (Immunity) का अधिकार है।
  • 1947 की अनुसूची के अनुच्छेद-2 की धारा 2, संयुक्त राष्ट्र को सभी प्रकार की क़ानूनी प्रक्रियाओं से प्रतिरक्षा का अधिकार देती है, बशर्ते किसी विशेष स्थिति में संयुक्त राष्ट्र स्वेच्छा से प्रतिरक्षा का  लाभ लेने से इनकार न कर दे।
  • निर्धारित की गई प्रतिरक्षा की शर्तों की व्यापकता और प्रासंगिकता सभी राष्ट्रीय कानूनों पर समान रूप से लागू होती है लेकिन प्रस्तुत मामला प्रतिवादी नंबर 2 (UNO) द्वारा प्रतिरक्षा  के अधिकार के त्याग पर निर्भर करती है। न्यायमूर्ति कैट ने यह स्पष्ट किया कि “जैसा कि प्रतिवादी संख्या 2 (संयुक्त राष्ट्र) कथित प्रतिरक्षा से छूट के अधिकार का प्रयोग नहीं करना चाहता है, अत: राष्ट्रीय कानूनों के पालन से संबंधित अनुच्छेद  याचिकाकर्त्ता की यहाँ कोई मदद नहीं करेगा।

1908 की समान प्रक्रिया संहिता की धारा 86 (section 86 of Civil Procedure Code, 1908)

  • 1908 की समान प्रक्रिया संहिता की धारा 86 विदेशी शासकों, राजदूतों, राजनयिकों, प्रतिनिधियों के खिलाफ मुक़दमा चलाने का अधिकार देती है।
  • 1908 की यह धारा  सुनिश्चित करती है कि एक विदेशी राज्य के खिलाफ केंद्र सरकार की सहमति से किसी भी न्यायालय में मुकदमा दायर किया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र (विशेषाधिकार एवं प्रतिरक्षा) अधिनियम, 1947( United Nations (Privileges and Immunities) Act, 1947)

  • यह अधिनियम संयुक्त राष्ट्र को, सभी प्रकार की कानूनी कार्यवाहियों  से प्रतिरक्षा या बचाव का अधिकार देता है।
  • परंतु प्रतिरक्षा का यह अधिकार तब तक ही बना रहेगा जब तक कि किसी असाधारण या विशेष परिस्थिति में संयुक्त राष्ट्र स्वेच्छा से  प्रतिरक्षा का लाभ लेने से इनकार न कर दे।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने उक्त फैसले में 1947 की अनुसूची के अनुच्छेद II की  धारा  2 का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया  कि इस मामले में संयुक्त राष्ट्र को प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है।

स्रोत- द हिंदू

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