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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

GERD पर गतिरोध

  • 07 Jul 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रैंड रेनेसां डैम, नील नदी

मेन्स के लिये:

ग्रैंड रेनेसां डैम विवाद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इथियोपिया ने ऊपरी ब्लू नील नदी पर एक ग्रैंड इथियोपियाई रेनेसां डैम (Grand Ethiopian Renaissance Dam’s - GERD) जलाशय को भरने (Filling) का दूसरा चरण शुरू किया है, जिसके कारण इस पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आगामी बैठक से पूर्व सूडान और मिस्र से तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है।

  • इससे पूर्व इथियोपिया ने यह घोषणा की थी कि वह जुलाई में किसी समझौते या बिना किसी समझौते के साथ जलाशय के फिलिंग/भरने के दूसरे चरण में आगे बढ़ेगा।

GERD

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • अफ्रीका की सबसे लंबी नदी नील एक दशक से चल रहे जटिल विवाद के केंद्र में है, इस विवाद में कई देश शामिल हैं, जो नदी के जल पर निर्भर हैं।
  • इथियोपिया द्वारा वर्ष 2011 में ब्लू नील नदी पर GERD के निर्माण का कार्य शुरू किया गया था।
    • यह 145 मीटर लंबी पनबिजली प्रोजेक्ट है जो अफ्रीका की सबसे बड़ी बांध परियोजना है जिसका नील नदी पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा।
    • ब्लू नील, नील नदी की एक सहायक नदी है और यह इसके पानी की मात्रा का दो-तिहाई भाग तथा अधिकांश गाद का वहन करती है।
  • मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र में स्थित है इसलिये इसने बांध के निर्माण पर आपत्ति जताई है तथा इस परियोजना के लिये एक लंबी समयावधि प्रस्तावित की है।
    • मिस्र का मानना है कि जलाशय प्रारंभिक अवस्था में जल से भरा होता है लेकिन नदी पर इथियोपिया का नियंत्रण होने से उसकी सीमाओं के भीतर जल स्तर कम हो सकता है।
  • सूडान भी इस विवाद में बांध के निर्माण स्थान के कारण शामिल रहा है।
  • जल स्रोत के रूप में अफ्रीका में नील नदी का बहुत अधिक महत्त्व है, अत: चिंता का मुख्यतया विषय यह है कि वर्तमान नदी विवाद दोनों राष्ट्रों (इथियोपिया और मिस्र) के बीच पूर्ण संघर्ष में भी बदल सकता है। 
  • हाल ही में अमेरिका ने इस नदी विवाद में मध्यस्थता करने के लिये कदम बढ़ाया है।

इथियोपिया के लिये बाँध का महत्त्व:

  • इथियोपिया का मानना है कि इस बाँध से लगभग 6,000 मेगावाट बिजली पैदा होगी जो इसके औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगी।
  • यह पड़ोसी क्षेत्रों में अधिशेष बिजली का निर्यात करके राजस्व भी अर्जित कर सकता है।
    • केन्या, सूडान, इरिट्रिया और दक्षिण सूडान जैसे पड़ोसी देश भी बिजली की कमी से ग्रस्त हैं और अगर इथियोपिया इन्हें बिजली बेचने का फैसला करता है तो वे जलविद्युत परियोजना से भी लाभान्वित हो सकते हैं।

मिस्र की चिंता:

  • मिस्र इस बात से चिंतित है कि पानी पर इथियोपिया के नियंत्रण से उसके देश का भू-जल स्तर कम हो सकता है।
  • मिस्र अपने पीने के पानी और सिंचाई आपूर्ति के लगभग 97% के लिये नील नदी पर निर्भर है।
  • यह बाँध मिस्र के आम नागरिकों के भोजन और पानी की सुरक्षा तथा आजीविका को खतरे में डाल देगा।

सूडान का पक्ष:

  • सूडान भी इस बात से चिंतित है कि अगर इथियोपिया नदी के जल पर नियंत्रण करता है तो उसका भी भू-जल स्तर प्रभावित हो सकता है।
  • हालाँकि इस बाँध से पैदा होने वाली बिजली से सूडान को फायदा होने की संभावना है।

नील नदी

  • नील नदी अफ्रीका में स्थित है। यह भूमध्यरेखा के दक्षिण में बुरुंडी से निकलकर उत्तर-पूर्वी अफ्रीका से होकर भूमध्य सागर में गिरती है। 
  • कभी-कभी विक्टोरिया झील को नील नदी का स्रोत माना जाता है, जबकि कागेरा नदी (Kagera River) जैसी विविध आकारों की नदियाँ स्वयं इस झील के लिये फीडर रूप में कार्य करती हैं।
  • नील नदी को दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक माना जाता है।
    • नील नदी की तीन प्रमुख सहायक नदियाँ- ब्लू नील, अटबारा और व्हाइट नील हैं।
  • नील नदी का बेसिन काफी विशाल है और इसमें तंजानिया, बुरुंडी, रवांडा, कांगो और केन्या आदि देश शामिल हैं।
  • नील नदी एक चापाकार डेल्टा का निर्माण करती है। त्रिकोणीय अथवा धनुषाकार आकार वाले डेल्टा को चापाकार डेल्टा कहा जाता है।

आगे की राह

  • संघर्ष को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिये पड़ोसी देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय निकायों द्वारा मध्यस्थता और सुविधा आवश्यक है।
  • यदि संघर्ष को सुलझाने का प्रयास संघर्षरत पक्षों के बीच बातचीत को सुविधाजनक बनाने से नहीं होता है तो एक क्षतिपूर्ति पद्धति अपनाई जा सकती है जिसके लिये देशों को एक-दूसरे के नुकसान की भरपाई करने की आवश्यकता होगी।

स्रोत: द हिंदू

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