SRP ‘एश्योरेंस स्कीम’ तथा ‘इकोलेबल’ | 08 Oct 2020
प्रिलिम्स के लिये:सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म, इकोलेबल, एश्योरेंस स्कीम, SRP- VERIFIED लेबल, IRRI, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, GLOBALG.A.P, NEPCon-Preferred by Nature, International Food Policy Research Institute मेन्स के लिये:धान के पर्यावरणीय प्रभाव तथा इसके नियंत्रण में SRP ‘एश्योरेंस स्कीम’ तथा ‘इकोलेबल’ की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (Sustainable Rice Platform- SRP) ने उपभोक्ताओं तथा वैश्विक रूप से धान के हितधारकों के लिये एक नई ‘एश्योरेंस स्कीम’ तथा ‘इकोलेबल’ लॉन्च किया है जिससे उपभोक्ताओं तथा दुकानदारों को संवहनीय रूप से उत्पादित धान की पहचान करने में मदद मिलेगी।
"SRP- VERIFIED” लेबल
- सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (SRP) ने "SRP- VERIFIED” लेबल विकसित किया है जिसका उद्देश्य विश्व में सर्वाधिक उगाई जाने वाली फसलों में से एक के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।
सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (SRP)
- सस्टेनेबल राइस प्लेटफॉर्म (SRP) की स्थापना दिसंबर 2011 में की गई थी।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के नेतृत्व में यह एक वैश्विक बहु-हितधारक गठबंधन है, जिसमें एक साथ 100 से अधिक सार्वजनिक, निजी, अनुसंधान, वित्तीय संस्थान और नागरिक समाज संगठन शामिल हैं।
- इसका उद्देश्य वैश्विक चावल क्षेत्र में व्यापार प्रवाह, उत्पादन एवं खपत के संचालन और आपूर्ति शृंखलाओं में संसाधन दक्षता एवं निरंतरता को बढ़ावा देना है।
- नए लेबल के साथ, उपभोक्ता चावल उत्पादन के मूल देश का पता लगाने में सक्षम होंगे। इस योजना से पूरे चावल उद्योग को भी लाभ होगा।
- SRP-सत्यापित चावल का स्टॉक करके, खुदरा विक्रेता संवहनीयता संबंधी प्रतिबद्धताओं और जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। उद्योग के अभिकर्त्ता भी SRP-सत्यापित आपूर्तिकर्त्ताओं के माध्यम से सोर्सिंग द्वारा अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के जोखिम को कम करने और संवहनीयता सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे।
न्यू एश्योरेंस स्कीम
(New Assurance Scheme)
- नई एश्योरेंस स्कीम, संवहनीय धान कृषि के लिये SRP मानक (SRP Standard for Sustainable Rice Cultivation) पर आधारित है, जो चावल/धान के लिये विश्व का स्वैच्छिक संवहनीयता मानक है। इसे सिद्ध सर्वोत्तम प्रथाओं द्वारा रेखांकित किया गया है और अनुपालन का आकलन करने के लिये एक विज्ञान-आधारित प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
- धान की खेती में सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू करने से जल के उपयोग में 20% की कमी हो सकती है और बाढ़ वाले धान के खेतों से मीथेन उत्सर्जन में 50% तक की कमी हो सकती है।
- इस योजना का प्रबंधन जर्मनी स्थित ग्लोबल जी.ए.पी. (GLOBALG.A.P) द्वारा किया जाएगा, जो SRP मानक के अनुसार उत्पादकों के निरीक्षण के लिये उत्तरदायी योग्य सत्यापन निकायों के अनुमोदन की निगरानी करेगा।
- डेनमार्क-आधारित गैर-लाभकारी संगठन NEPCon-Preferred by Nature- जो बेहतर भूमि प्रबंधन तथा व्यावसायिक प्रथाओं का समर्थन करता है, पहला संगठन है जिसे SRP सत्यापन ऑडिट करने के लिये अनुमोदित किया गया है।
ग्लोबल जी.ए.पी.
- ग्लोबल जी.ए.पी. (GLOBALG.A.P.) एक एक वैश्विक संगठन है जिसका प्रमुख उद्देश्य विश्व भर में सुरक्षित एवं सतत्/संवहनीय कृषि को बढ़ावा देना है। यह विश्व भर में कृषि उत्पादों के प्रमाणीकरण के लिये स्वैच्छिक मानकों का निर्धारण करता है तथा उनका संचालन करता है।
- GLOBALG.A.P. की शुरुआत वर्ष 1997 में EUREPGAP के रूप में शुरू हुईं, जो कि यूरो-रिटेलर वर्किंग ग्रुप से संबंधित खुदरा विक्रेताओं की एक पहल है।
- अपनी वैश्विक पहुँच और अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय G.A.P. (Good Agricultural Practice) मानक को दर्शाने के लिये EUREPGAP ने वर्ष 2007 में अपना नाम बदलकर GLOBALG.A.P. कर लिया।
आगे की राह
- विश्व भर में 3.5 बिलियन से अधिक लोग एक दैनिक भोज्य पदार्थ के रूप में चावल पर निर्भर हैं, लेकिन निर्विवाद रूप से यह फसल पर्यावरण को प्रभावित करती है। धान की खेती विश्व में ताज़े जल के संसाधनों का एक-तिहाई तक उपभोग करती है और एक अत्यंत प्रभावशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन का उत्सर्जन करती है। धान के खेतों से होने वाले मीथेन का यह उत्सर्जन वैश्विक रूप मानवजनित उत्सर्जन का 20% तक होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute) के अनुसार, वैश्विक रूप से बढ़ते तापमान के कारण यह जीवनदायी फसल भी प्रभावित होगी तथा जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक इसके उत्पादन में 15% तक की गिरावट आने की संभावना है।
- विश्व के 144 मिलियन चावल उत्पादकों में से 90% या तो गरीबी रेखा पर या इसके आस-पास जीवन-यापन कर रहे हैं ऐसे में SRP प्रणालियों को अपनाने से किसानों की शुद्ध आय 10-20% तक बढ़ सकती है।