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श्रीलंका का 20वाँ संविधान संशोधन पारित

  • 23 Oct 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में संविधान संशोधन की प्रक्रिया

मेन्स के लिये:

श्रीलंका का 20वाँ संविधान संशोधन और भारत के हित

चर्चा में क्यों?

श्रीलंका की संसद ने दो-दिवसीय बहस के बाद दो-तिहाई बहुमत के साथ विवादास्पद 20वाँ संविधान संशोधन पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • 20वाँ संविधान संशोधन पारित कराना विधायिका में राजपक्षे प्रशासन की पहली बड़ी परीक्षा थी क्योंकि इसने न केवल राजनीतिक विरोध, बल्कि श्रीलंका की दक्षिणी राजनीति को प्रभावित करने वाले प्रभावशाली बौद्ध गुरुओं की चिंता और प्रतिरोध को भी जन्म दिया।
  • श्रीलंका की संसद के 225 सदस्यीय सदन में 156 सांसदों ने इसके पक्ष में मतदान किया, जबकि 65 विधायकों ने इस विधेयक के खिलाफ मतदान किया।
  • गौरतलब है कि आठ विपक्षी सांसदों ने कानून के पक्ष में मतदान किया, जबकि उनकी पार्टियों और नेताओं ने न केवल इसका विरोध किया है बल्कि इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है।
  • विपक्षी दलों और सिविल सोसाइटी समूहों द्वारा दायर की गई 39 याचिकाओं के बाद श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि कानून पारित होने के लिये केवल दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, परंतु इस कानून के चार खंडों को पारित करने के लिये एक जनमत संग्रह के माध्यम से अतिरिक्त सार्वजनिक स्वीकृति की आवश्यकता है।

20वाँ संविधान संशोधन से संबंधित प्रावधान:

  • 2 सितंबर, 2020 को श्रीलंका सरकार ने संविधान संशोधन का एक मसौदा प्रकाशित किया था, जिसके माध्यम से राष्ट्रपति की शक्तियों पर अंकुश लगाने वाले 19वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को बदलने के लिये विधायी प्रक्रिया भी शुरू की गई थी।
  • हाल ही में पारित संविधान संशोधन तकरीबन 42 वर्ष पूर्व श्रीलंका के तत्कालीन प्रधानमंत्री जे.आर. जयवर्धने द्वारा लागू किये गए श्रीलंका के संविधान में 20वाँ संशोधन है।
  • पारित संविधान संशोधन में संवैधानिक परिषद को संसदीय परिषद में बदलने का प्रावधान किया गया है। मौजूदा नियमों के अनुसार, संवैधानिक परिषद के निर्णय राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी हैं, किंतु पारित संसदीय परिषद के निर्णय मानने के लिये राष्ट्रपति बाध्य नहीं है।
  • संविधान संशोधन के माध्यम से मंत्रिमंडल और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति एवं बर्खास्तगी में प्रधानमंत्री की सलाह की आवश्यकता से संबंधित प्रावधान को हटा दिया गया है। साथ ही  अब श्रीलंका में प्रधानमंत्री की बर्खास्तगी संसद के विश्वास पर नहीं बल्कि राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करेगी। 
  • पारित संशोधन के तहत राष्ट्रपति को कुछ सीमित परिस्थितियों के अलावा संसद की एक वर्ष की अवधि के बाद उसे भंग करने के संबंध में निर्णय लेने की शक्ति दी गई है, जिसका अर्थ है कि संसद की एक वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति उसे किसी भी समय भंग कर सकता है।
  • पारित संशोधन में किसी भी विधेयक को संसद के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व आम जनता के लिये प्रकाशित करने की अवधि को 14 दिन से घटाकर 7 दिन कर दिया गया है।

संविधान संशोधन के विरोधियों का पक्ष:

  • श्रीलंकाई संसद में दो दिवसीय बहस के दौरान विपक्षी सांसदों ने तर्क दिया कि इस संशोधन ने राष्ट्रपति को बेलगाम अधिकार देते हुए देश को सत्तावाद के रास्ते पर ले जाने की राह प्रस्तुत की है, जबकि सरकार के सांसदों ने बेहतर प्रशासन के लिये केंद्रीकृत शक्ति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • 20वाँ संविधान संशोधन ऐसे समय में पारित किया गया है जब देश COVID-19 की एक नई लहर का सामना कर रहा है, जिसमें मामलों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। 
  • 20वाँ संविधान संशोधन संवैधानिक परिषद की बहुलवादी और विचारशील प्रक्रिया के माध्यम से स्वतंत्र संस्थानों के लिये महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों के संबंध में राष्ट्रपति की शक्तियों पर बाध्यकारी सीमाओं को समाप्त करने का प्रावधान करता है।
  • श्रीलंका के कई कानून विशेषज्ञों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि सरकार इस संशोधन के माध्यम से देश की संस्थाओं के राजनीतिकरण का प्रयास कर रही है,  जबकि इन्हें राजनीति के दायरे से स्वतंत्र कर आम नागरिकों के कल्याण के लिये गठित किया गया था। 
  • सरकार द्वारा किये जा रहे ये संविधान संशोधन जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही को प्रभावित करेंगे और श्रीलंका के संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों के समक्ष चुनौती उत्पन्न करेंगे।
  • संवैधानिक नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत की समाप्ति से सार्वजनिक धन के कुशल, प्रभावी और पारदर्शी उपयोग पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

भारत का पक्ष:

  • भारत ने श्रीलंका के 20वें संविधान संशोधन को लेकर अभी तक कोई भी आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है और न ही भारत द्वारा बयान जारी करने का कोई अनुमान है, क्योंकि यह संशोधन पूरी तरह से श्रीलंका का आंतरिक मामला है।
  • हालाँकि भारत सरकार निश्चित रूप से श्रीलंका के घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है, क्योंकि 20वें संशोधन के प्रावधान स्पष्ट रूप से राष्ट्रवादी सिंहली भावनाओं को प्रकट करते हैं। ऐसे में यह घटनाक्रम भारत-श्रीलंका के दीर्घकालिक संबंधों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • हालाँकि भारत के दृष्टिकोण से 19वें संविधान संशोधन से ज़्यादा 13वाँ संविधान संशोधन महत्त्वपूर्ण है। इसी वर्ष फरवरी माह में जब श्रीलंका के वर्तमान प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे भारत के दौरे पर आए थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को दोहराया था कि श्रीलंका को 13वें संशोधन के कार्यान्वयन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • ध्यातव्य है कि 13वें संविधान संशोधन के प्रावधानों का हटना श्रीलंका के तमिल अल्पसंख्यकों के लिये एक बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकता है।

स्रोत- द हिंदू

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