भारतीय इतिहास
श्री अरबिंदो: भारतीय राष्ट्रवाद के पैगंबर
- 13 Dec 2022
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प्रिलिम्स के लिये:श्री अरबिंदो, भारतीय राष्ट्रवाद के पैगंबर, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, आज़ादी का अमृत महोत्सव।मेन्स के लिये: भारतीय राष्ट्रवाद आंदोलन में श्री अरबिंदो का योगदान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने आज़ादीी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में श्री अरबिंदो की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में पुडुचेरी में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लिया।
- प्रधानमंत्री ने श्री अरबिंदो के सम्मान में एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया।
श्री अरबिंदो
- परिचय:
- अरबिंदो घोष का जन्म 15 अगस्त, 1872 को कलकत्ता में हुआ था। वह एक योगी, द्रष्टा, दार्शनिक, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के माध्यम से संसार को ईश्वरीय अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किया अर्थात् नव्य वेदांत दर्शन को प्रतिपादित किया।
- 5 दिसंबर, 1950 को पुद्दुुचेरी में उनका निधन हो गया।
- ब्रिटिश शासन से छुटकारा पाने के लिये अरबिंदो की व्यावहारिक रणनीतियों ने उन्हें "भारतीय राष्ट्रवाद के पैगंबर" के रूप में चिह्नित किया।
- शिक्षा:
- उनकी शिक्षा दार्जिलिंग के एक क्रिश्चियन कॉन्वेंट स्कूल में शुरू हुई।
- उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जहाँ वे दो शास्त्रीय और कई आधुनिक यूरोपीय भाषाओं में कुशल हो गए।
- वर्ष 1892 में उन्होंने बड़ौदा (वडोदरा) और कलकत्ता (कोलकाता) में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्य किया।
- उन्होंने शास्त्रीय संस्कृत सहित योग और भारतीय भाषाओं का अध्ययन शुरू किया।
- भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन:
- वर्ष 1902 से 1910 तक उन्होंने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के संघर्ष में भाग लिया।
- वर्ष 1905 में बंगाल के विभाजन ने अरबिंदो को बड़ौदा में अपनी नौकरी छोड़ने और राष्ट्रवादी आंदोलन में उतरने के लिये प्रेरित किया। उन्होंने देश भक्ति पत्रिका ‘वन्दे मातरम’ की शुरुआत की, जो कि याचना के बजाय कट्टरपंथी तरीकों और क्रांतिकारी रणनीति का प्रचार करती थी।
- अंग्रेजों ने उन्हें तीन बार ने गिरफ्तार किया था, दो बार देशद्रोह के आरोप में और एक बार "युद्ध छेड़ने" की साजिश रचने के आरोप में।
- उन्हें वर्ष 1908 (अलीपुर बम कांड) में गिरफ्तार किया गया था।
- दो वर्ष के बाद वे ब्रिटिश भारत से भाग गए और पांडिचेरी (फ्रांँसीसी उपनिवेश) में शरण ली तथा राजनीतिक गतिविधियों का त्याग कर दिया और आध्यात्मिक गतिविधियों को अपना लिया ।
- उन्होंने पुद्दुचेरी में मीरा अल्फासा से मुलाकात की और उनके आध्यात्मिक सहयोग से “योग समन्वय" हुआ।
- योग समन्वय का उद्देश्य जीवन से पलायन या सांसारिक अस्तित्व से बचना नहीं है, बल्कि इसके बीच रहते हुए भी हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन करना है।
- द्वितीय विश्व युद्ध पर अरबिंदो के विचार:
- कई भारतीयों ने द्वितीय विश्व युद्ध को औपनिवेशिक कब्जे से छुटकारा पाने हेतु एक उपयुक्त समय के रूप में देखा तथा अरबिंदो ने अपने हमवतन लोगों से मित्र राष्ट्रों का समर्थन करने और हिटलर की हार सुनिश्चित करने के लिये कहा।
- आध्यात्मिक यात्रा:
- पुद्दुुचेरी में उन्होंने आध्यात्मिक साधकों के एक समुदाय की स्थापना की, जिसने वर्ष 1926 में श्री अरबिंदो आश्रम के रूप में आकार लिया।
- उनका मानना था कि पदार्थ, जीवन और मन के मूल सिद्धांतों को स्थलीय विकास के माध्यम से सुपरमाइंड के सिद्धांत द्वारा अनंत और परिमित दो क्षेत्रों के बीच एक मध्यवर्ती शक्ति के रूप में सफल किया जाएगा।
- साहित्यिक रचनाएँ:
- बंदे मातरम नामक एक अंग्रेज़ी अखबार (वर्ष 1905 में)।
- योग के आधार
- भगवतगीता और उसका संदेश
- मनुष्य का भविष्य विकास
- पुनर्जन्म और कर्म
- सावित्री: एक किंवदंती और एक प्रतीक
- आवर ऑफ गॉड
- मृत्यु:
- 5 दिसंबर, 1950 को पुद्दुचेरी में उनका निधन हो गया।