भारतीय विरासत और संस्कृति
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर
- 23 Sep 2021
- 3 min read
प्रिलिम्स के लिये:पद्मनाभस्वामी मंदिर,सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें पिछले वर्ष (2020) अदालत के आदेश के अनुसार इसे 25 साल के ऑडिट से छूट देने की मांग की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- पद्मनाभस्वामी मंदिर के बारे में:
- यह मंदिर वर्ष 2011 में उस समय चर्चा में आया जब इसकी भूमिगत तिजोरियों में रखे गए 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक के खजाने की खोज की गई।
- वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रथागत कानून के अनुसार, अंतिम शासक की मृत्यु के बाद भी शाही परिवार के सदस्यों के पास शेबैत अधिकार/ प्रबंधन करने का अधिकार (Shebait Rights) है।
- शेबैत अधिकारों का अर्थ है देवता के वित्तीय मामलों के प्रबंधन का अधिकार।
- पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट को पूर्व त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा बनाया गया है।
- हालांँकि न्यायालय ने भविष्य में मंदिर के पारदर्शी प्रशासन के लिये तिरुवनंतपुरम ज़िला न्यायाधीश को अध्यक्ष के रूप में एक प्रशासनिक समिति के गठन का निर्देश दिया।
- ट्रस्ट का तर्क है, चूँकि इसका गठन (न्यायालय के पूर्व के आदेश पर) मंदिर के अनुष्ठानों की देख-रेख के लिये किया गया था, प्रशासन में इसकी कोई भूमिका नहीं थी, यह मंदिर से अलग एक इकाई है और इसे ऑडिट में शामिल नहीं किया जा सकता है।
- प्रशासनिक समिति के अनुसार, यह अत्यधिक वित्तीय तनाव की स्थिति है और त्रावणकोर शाही परिवार द्वारा संचालित मंदिर से संबंधित ट्रस्ट ऑडिट की मांग के खर्च को पूरा करने में सक्षम नहीं है।
- पद्मनाभस्वामी मंदिर:
- इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर 8वीं शताब्दी का है लेकिन वर्तमान संरचना का निर्माण 18वीं शताब्दी में तत्कालीन त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा (Marthanda Varma) द्वारा किया गया था।
- यह मंदिर शुरू में लकड़ी का बना था लेकिन बाद में इसे ग्रेनाइट से बनाया गया।
- यह मंदिर वास्तुकला की अनूठी चेरा शैली में निर्मित है तथा यहाँ के मुख्य देवता भगवान विष्णु हैं जो आदिश या सभी नागों के राजा अनंत शयन मुद्रा (शाश्वत योग की झुकी हुई मुद्रा) में विराजमान हैं।
- इसे भारत में वैष्णववाद से जुड़े 108 पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है।
- इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर 8वीं शताब्दी का है लेकिन वर्तमान संरचना का निर्माण 18वीं शताब्दी में तत्कालीन त्रावणकोर के महाराजा मार्तंड वर्मा (Marthanda Varma) द्वारा किया गया था।