शासन व्यवस्था
भारत में स्पूतनिक वी की आपूर्ति पर समझौता
- 17 Sep 2020
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, COVID-19, स्पूतनिक-वी मेन्स के लिये:COVID-19 वैक्सीन का निर्माण, वैक्सीन निर्माण में भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस के संप्रभु धन कोष ‘रूस प्रत्यक्ष निवेश कोष’ (Russia Direct Investment Fund- RDIF) द्वारा भारत को स्पूतनिक-वी (Sputnik V) वैक्सीन की 10 करोड़ खुराक की आपूर्ति के लिये हैदराबाद स्थित ‘डॉ. रेड्डीज़ लेबोरेट्रीज़’ (Dr. Reddy’s Laboratories) के साथ एक समझौता किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- स्पूतनिक-वी वैक्सीन का विकास रूस के ‘गामलेया राष्ट्रीय महामारी विज्ञान और सूक्ष्म जीव विज्ञान अनुसंधान संस्थान’ (Gamaleya National Research Institute of Epidemiology and Microbiology) द्वारा किया गया है।
- 11 अगस्त, 2020 को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इस वैक्सीन के पंजीकरण के बाद यह COVID-19 के नियंत्रण हेतु मनुष्यों को दिये जाने के लिये किसी सरकार द्वारा प्रमाणित पहली वैक्सीन बन गई।
- यह वैक्सीन एडिनोवायरल वेक्टर प्लेटफॉर्म पर आधारित है।
- गौरतलब है कि इस वैक्सीन का नाम सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किये गए प्रथम कृत्रिम पृथ्वी उपग्रह (Artificial Earth Satellite) स्पुतनिक-I (Sputnik-I) के नाम पर रखा गया है।
RDIF और डॉ. रेड्डीज़ लेबोरेट्रीज़ का समझौता:
- डॉ. रेड्डीज़ लेबोरेट्रीज़ द्वारा भारत में इस वैक्सीन के प्रयोग हेतु नियामकीय अनुमति प्राप्त करने के लिये चरण-3 के परीक्षण की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
- इस समझौते के तहत डॉ. रेड्डीज लेबोरेट्रीज़ को इस दवा की पहली 10 करोड़ खुराक खरीदने का अधिकार होगा, हालाँकि अभी तक इस वैक्सीन के मूल्य के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
- ध्यातव्य है कि इस समझौते के अंतर्गत वैक्सीन को भारत में निर्मित करने की बात नहीं शामिल की गई है।
- RDIF के अनुसार, वर्ष 2020 की समाप्ति तक भारत में इस वैक्सीन की आपूर्ति प्रारंभ हो सकती है, हालाँकि यह वैक्सीन के सफल परीक्षण और भारत में इसकी नियमाकीय अनुमति पर भी निर्भर करेगा।
COVID-19 वैक्सीन निर्माण के अन्य प्रयास:
- RDIF द्वारा भारत में इस वैक्सीन के निर्माण हेतु कई भारतीय कंपनियों से भी बातचीत की जा रही है
- हाल ही में ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका और पुणे स्थित ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ (Serum Institute of India- SII) द्वारा भी COVID-19 वैक्सीन निर्माण के लिये एक समझौता किया गया है।
- इस समझौते के तहत SII द्वारा COVID-19 वैक्सीन की 10 करोड़ खुराक का निर्माण किया जाएगा।
- इसके अतिरिक्त भारत की कुछ अन्य कंपनियों (जैसे-भारत बायोटेक, बायोलॉजिकल ई, अरबिंदो फार्मा और इंडियन इम्यूनोलॉजिकल) द्वारा भी COVID-19 वैक्सीन निर्माण हेतु अलग-अलग संस्थानों के साथ समझौते किये गए हैं।
भारत में आवश्यक नियामकीय अनुमति:
- भारत में किसी भी वैक्सीन के प्रयोग की अनुमति केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) द्वारा दी जाती है।
- आमतौर पर भारत से बाहर विकसित किसी भी वैक्सीन के लिये भारतीय लोगों पर चरण-2 और चरण-3 का परीक्षण करना अनिवार्य होता है। अंतिम चरण या लेट फेज़ ट्रायल ( Late-Phase Trial) के परीक्षण इसलिए आवश्यक होते हैं क्योंकि वैक्सीन का प्रभाव विभिन्न जनसंख्या समूहों पर भिन्न हो सकता है।
- हालाँकि वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए CDSCO को बगैर लेट फेज़ ट्रायल के भी वैक्सीन के प्रयोग हेतु आपातकालीन अनुमति देने का अधिकार है।
- स्पूतनिक वी से जुड़ी चिंताएँ:
- इस वैक्सीन के बारे में प्रकाशित डेटा की कमी और इसके तीव्र विकास को लेकर विशेषज्ञों ने इस वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता पर चिंता व्यक्त की है।
- कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, रूस द्वारा वैक्सीन की सुरक्षा से ज्यादा इसे शीघ्र ही जारी करने पर विशेष ध्यान दिया गया है।
- गौरतलब है कि रूस द्वारा अभी तक इस वैक्सीन के नैदानिक परीक्षणों के चरण I और चरण II के परिणामों को सार्वजनिक किया गया है, जिसमें इस वैक्सीन में बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के 100% स्थिर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के प्रदर्शन की बात कही गई है।
- इस वैक्सीन के पंजीकरण के बाद का नैदानिक परीक्षण अभी 40,000 स्वयंसेवकों पर चल रहा है।
भारत के लिये अवसर:
- एक बड़े घरेलू बाज़ार के साथ वैश्विक स्तर पर वैक्सीन निर्माण में भारत का महत्त्वपूर्ण स्थान है
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वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत से कुल 878.64 मिलियन अमेरिकी डॉलर की वैक्सीन का निर्यात किया गया जो देश के कुल फार्मा निर्यात ( 55.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का 4.27% था।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) की लगभग 70% वैक्सीन और खसरे (Measles) के 90% टीकों का निर्माण भारत में होता है।
- अतः यदि इस वैक्सीन के नैदानिक परीक्षण का अंतिम चरण सफल रहता है तो इस वैक्सीन के निर्माण के माध्यम से भारत COVID-19 से निपटने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकेगा।