विशेष विवाह अधिनियम, 1954 | 14 Jan 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह के भावी पक्षों के लिये विवाह से 30 दिन पूर्व नोटिस जारी करना वैकल्पिक बना दिया है।
प्रमुख बिंदु
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
- विशेष विवाह अधिनियम भारत में अंतर-धार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह को पंजीकृत करने एवं मान्यता प्रदान करने हेतु बनाया गया है।
- यह एक नागरिक अनुबंध के माध्यम से दो व्यक्तियों को अपनी शादी विधिपूर्वक करने की अनुमति देता है।
- अधिनियम के तहत किसी धार्मिक औपचारिकता के निर्वहन की आवश्यकता नहीं होती है।
विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधान
- धारा 4: अधिनियम की धारा 4 में कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं:
- इसके अनुसार, दोनों पक्षों में से किसी का भी जीवनसाथी नहीं होना चाहिये।
- दोनों पक्षों को अपनी सहमति देने में सक्षम होना चाहिये, अर्थात् वे वयस्क हों एवं अपने फैसले लेने में सक्षम हों।
- दोनों पक्ष के बीच कानून के तहत निर्धारित निषिद्ध संबंध नहीं होना चाहिये।
- इसके साथ ही पुरुष की आयु कम-से-कम 21 वर्ष और महिला की आयु कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिये।
- धारा 5 और 6
- इन धाराओं के तहत विवाह करने के इच्छुक पक्षों के लिये यह अनिवार्य है कि वे अथवा उनमें से कोई एक पक्ष जो कि पिछले तीस दिनों से जिस क्षेत्र में निवास कर रहा है, वहाँ के संबंधित विवाह अधिकारी को अपने विवाह संबंधी नोटिस दे। इसके पश्चात् विवाह अधिकारी अपने कार्यालय में विवाह की सूचना प्रकाशित करता है।
- यदि किसी को भी इस विवाह से कोई आपत्ति है, तो वह अगले 30 दिनों की अवधि में इसके विरुद्ध सूचना दर्ज करा सकता है। यदि आपत्ति सही पाई जाती है तो विवाह अधिकारी विवाह हेतु अनुमति प्रदान करने से मना कर सकता है।
उच्च न्यायालय का निर्णय
- टिप्पणी
- न्यायालय ने कहा कि विवाह संबंधित नोटिस के अनिवार्य प्रकाशन से संबंधित प्रावधान दोनों पक्षों की स्वतंत्रता और गोपनीयता संबंधी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, विवाह में शामिल दोनों पक्षों को राज्य एवं गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के हस्तक्षेप के बिना विवाह के लिये अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है।
- न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि विवाह के लिये धर्मनिरपेक्ष कानून के बावजूद देश में अधिकांश विवाह धार्मिक रीति-रिवाज़ों के अनुसार होते हैं। न्यायालय ने कहा कि जब धर्म संबंधी व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह से संबंधित नोटिस जारी करने अथवा आपत्ति दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है, तो ऐसी आवश्यकता देश के धर्मनिरपेक्ष कानून में भी मान्य नहीं होनी चाहिये।
- वैवाहिक नोटिस प्रकाशित करना वैकल्पिक: न्यायालय ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 5 और 6 के तहत प्रकाशन हेतु विवाह के दोनों पक्षों के लिये विवाह अधिकारी को विवाह से संबंधित नोटिस देना वैकल्पिक बना दिया है।
- विवाह अधिकारी के लिये निर्देश: यदि दोनों पक्ष लिखित रूप में नोटिस के प्रकाशन हेतु अनुरोध नहीं करते हैं, तो विवाह अधिकारी इस तरह के नोटिस को प्रकाशित नहीं करेगा अथवा विवाह को लेकर आपत्तियाँ दर्ज नहीं करेगा। हालाँकि यदि अधिकारी को कोई संदेह है, तो वह तथ्यों के अनुसार उपयुक्त विवरण/प्रमाण की मांग कर सकता है।
निर्णय का आधार
- आधार के मामले (वर्ष 2017) में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना था।
- हादिया विवाह मामले (वर्ष 2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने साथी चुनने के अधिकार को एक मौलिक अधिकार माना था।
- नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ वाद (वर्ष 2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को IPC की धारा 377 से अलग करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
निर्णय का महत्त्व
- इस निर्णय से विवाह के लिये धर्म परिवर्तन के मामलों में कमी आएगी, क्योंकि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के तहत होने वाली देरी कई जोड़ों को धर्म परिवर्तन कर विवाह करने को मजबूर कर देती है।
- यह अंतर-धार्मिक एवं अंतर्जातीय विवाह में आने वाली बाधाओं को समाप्त करेगा, जिससे सही मायनों में धर्मनिरपेक्षता और समतावाद के आदर्शों को बढ़ावा मिलेगा।
- यह अंतर-धार्मिक एवं अंतर्जातीय जोड़ों को अशांत तत्वों का निशाना बनने से बचाएगा।
संबंधित मुद्दे
- अनिवार्य रूप से सार्वजनिक नोटिस जारी करने के प्रावधान को समाप्त करने से धोखाधड़ी के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है।
- यह बलपूर्वक धर्म परिवर्तन जैसी असामाजिक गतिविधियों को और सुविधाजनक बना सकता है।