दक्षिण अटलांटिक विसंगति | 28 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

दक्षिण अटलांटिक विसंगति, वान एलन रेडिएशन बेल्ट, चुंबकीय विसंगति

मेन्स के लिये:

पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

'यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी' (European Space Agency- ESA) के 'स्वॉर्म' (Swarm) उपग्रहों द्वारा प्राप्त आँकड़ों के अध्ययन से दक्षिण अटलांटिक क्षेत्र के ऊपर ‘चुंबकीय विसंगति’ (Magnetic Anomaly) का पता चला है। चुंबकीय विसंगति पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में स्थानिक भिन्नता को बताता है।  

प्रमुख बिंदु:

  • चुंबकीय विसंगति को 'दक्षिण अटलांटिक विसंगति' (South Atlantic Anomaly- SAA) के रूप में भी जाना जाता है।
  • 'दक्षिण अटलांटिक विसंगति' का विस्तार दक्षिण अमेरिका से दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका तक है।
  • वर्ष 1970 के बाद से चुंबकीय विसंगति के आकार में लगातार वृद्धि देखी गई है तथा यह 20 किमी. प्रतिवर्ष की गति से पश्चिम की ओर बढ़ रही है। 

दक्षिण अटलांटिक विसंगति (South Atlantic Anomaly- SAA):

  • ‘दक्षिण अटलांटिक विसंगति’ अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बीच के क्षेत्र में पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्र के व्यवहार को संदर्भित करता है।  
  • दक्षिण अटलांटिक विसंगति पृथ्वी के निकटस्थ उस क्षेत्र को बताता है जहाँ पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, सामान्य चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में कमज़ोर पाया गया है।

SAA

दक्षिण अटलांटिक विसंगति का कारण:

  • दक्षिण अटलांटिक विसंगति (SAA) एक ऐसा क्षेत्र है जहां पृथ्वी की ‘वान एलन रेडियशन बेल्ट' (Van Allen Radiation Belt) पृथ्वी की सतह के निकटतम आ  जाती है। 
  • दक्षिण अटलांटिक विसंगति क्षेत्र में 'वान एलन रेडियशन बेल्ट' की ऊँचाई सामान्य से 200 किमी. तक कम हो गई है। इससे इस क्षेत्र में ऊर्जावान कणों का प्रवाह बढ़ जाता है।

वान एलन रेडिएशन बेल्ट (Van Allen Radiation Belt):

  • किसी भी ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र के कारण ग्रह के चारों तरफ आवेशित एवं ऊर्जावान कणों की एक ‘रेडिएशन बेल्ट’ (Radiation Belt) पाई जाती है।
  • ‘वान एलन रेडिएशन बेल्ट’ पृथ्वी के चारों ओर विकिरण बेल्ट को संदर्भित करता है।
  • इन बेल्टों की खोज वर्ष 1958 में डॉ. जेम्स वान एलन तथा उनकी टीम द्वारा की गई थी। डॉ. जेम्स वान एलन के नाम पर ही पृथ्वी के रेडिएशन बेल्ट को ‘वान एलन रेडिएशन बेल्ट’ कहा जाता है।
  • बृहस्पति, शनि जैसे ग्रहों के भी समान रेडिएशन बेल्ट पाई जाती है।
  • ये बेल्ट पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के आंतरिक भाग में पाई जाती है।

वान एलन रेडिएशन बेल्ट का निर्माण:

  • ऐसा माना जाता है कि रेडिएशन बेल्ट के मुख्य घटकों का निर्माण सौर पवन तथा कॉस्मिक विकिरणों से होता हैं। पृथ्वी के दो रेडिएशन बेल्ट हैं। एक ‘आंतरिक वान एलन रेडिएशन बेल्ट’ और दूसरा ‘बाहरी रेडिएशन बेल्ट’। 
  • आंतरिक रेडिएशन बेल्ट:
    • आंतरिक बेल्ट पृथ्वी की सतह से 1000 किमी. से 6000 किमी. की ऊँचाई तक विस्तृत है।
    • आंतरिक बेल्ट में प्रोटॉन तथा इलेक्ट्रॉनों का एक संयोजन होता है।
  • बाह्य रेडिएशन बेल्ट:
    • बाह्य बेल्ट पृथ्वी सतह से 15,000 किमी. से 25,000 किमी. तक विस्तृत है।
    • बाह्य विकिरण बेल्ट में मुख्यत: ऊर्जावान तथा आवेशित इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं।

Radiation-Belt

चुंबकीय क्षेत्र के कमज़ोर होने का कारण:

  • विगत 200 वर्षों में पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में औसतन 9% की कमी हुई है। पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में सबसे अधिक कमी SAA क्षेत्र में देखने को मिली है। 
  • विगत 50 वर्षों में SAA के क्षेत्र में विस्तार हुआ है तथा यह लगातार पश्चिम की ओर बढ़ गया है।

SAA का प्रभाव:

  • ‘मैग्नेटिक शील्ड’ (Magnetic Shield) चुंबकीय ध्रुव के स्थान को निर्धारित करने में मदद करता है। SAA प्रभाव के कारण पृथ्वी के चुंबकीय ध्रुव को फिर से निर्धारित करने की आवश्यकता हो सकती है। 
  • ‘मैग्नेटिक शील्ड’ (Magnetic Shield) अवांछित विकिरण को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अत: SAA के कारण चुंबकीय विकिरण प्रभाव में वृद्धि हो सकती है।
  • यह वैश्विक उपग्रह एवं दूरसंचार प्रणाली को प्रभावित कर सकता है, स्मार्टफोन में मैपिंग एवं नेविगेशन प्रणाली भी इससे प्रभावित हो सकती है।
  • SAA के कारण पक्षियों का अंतर्राष्ट्रीय प्रवास प्रभावित हो सकता है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पक्षी तथा जानवरों का मौसमी प्रवास पृथ्वी के बाह्य वायुमंडल में परिवर्तन से प्रभावित होता है।

निष्कर्ष:

  • दक्षिण अटलांटिक विसंगति के बारे में भी वैज्ञानिक समझ अपर्याप्त है, अत: भविष्य में इसका क्या प्रभाव होगा यह अभी अज्ञात है, लेकिन विभिन्न शोधों के अनुसार भविष्य में पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। इसलिये संचार व्यवस्था में आवश्यक सुरक्षा उपायों को अपनाना चाहिये ताकि संचार व्यवस्था विकरण प्रभावों से न्यूनतम प्रभावित हो।

स्रोत: इकोनॉमिक्स टाइम्स