जीएम सरसों पर विचार की आवश्यकता | 14 Apr 2018

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में वैज्ञानिक वर्ग ने भारतीय जनमानस और समाज से यह अपील की है कि वे जीएम सरसों के धुर विरोध की बजाय इस मुद्दे पर शांतिपूर्वक पुनः विचार करें, क्योंकि आनुवंशिक रूप से संशोधित सरसों (जीएम सरसों) के वाणिज्यिक प्रयोग का मुद्दा मात्र विज्ञान से ही संबंधित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-राजनीतिक मुद्दा भी है जिस पर समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा विचार किया जाना अति आवश्यक है। 

इस संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण 

  • अधिकांश वैज्ञानिक जीएम सरसों को सुरक्षित और उपयोगी मानते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि यह स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, अतः इसका उपयोग न किया जाए।
  • वैज्ञानिकों का कहना है कि विज्ञान जीएम सरसों के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है लेकिन इसके संबंध में नीति निर्णयन एक जटिल प्रक्रिया है। अतः समाज द्वारा इस पर गहन विचार-विमर्श किया जाना बेहद आवश्यक है।
  • हालाँकि, भारत की विज्ञान अकादमियों को भी इस बारे में आगे आने की आवश्यकता है और विज्ञान के मामलों पर विशेष रूप से सरकार को सलाह देने के लिये बड़ी भूमिका निभानी चाहिये।
  • भारतीय विज्ञान वर्ग को बौद्धिक रूप से जीवंत होने की आवश्यकता है जिसमें विज्ञान अकादमियों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
  • इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत ने अब तक जीडीपी के अनुसार विज्ञान पर खर्च नहीं किया है। हालाँकि, इस बारे में प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन ने कहा कि संसाधनों में वृद्धि होगी लेकिन एक तथ्य यह भी है कि विज्ञान से संबंधित आवंटन में अधिक बजटीय कटौती नहीं हुई है जो इस बात को दर्शाता है कि प्रधानमंत्री विज्ञान क्षेत्र को प्राथमिकता दे रहे हैं और इससे संबंधित मामलों में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप भी कर रहे हैं।

जीएम फसल किसे कहते हैं ?

  • जीएम फसल उन फसलों को कहा जाता है जिनके जीन को वैज्ञानिक तरीके से रूपांतरित किया गया हो।
  • ऐसा इसलिये किया जाता है ताकि फसल की उत्पादकता में वृद्धि हो सके तथा फसल को कीट प्रतिरोधी अथवा सूखा रोधी बनाया जा सके।

इनका विरोध क्यों होता है ?

  • इनका विरोध किये जाने के कई कारण हैं। विरोध करने वाले कहते हैं कि जीएम फसलों की लागत अधिक पड़ती है। कुछ इसे असफल प्रयोग मानते हैं तो अन्य कुछ इसके पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव को लेकर विरोध करते हैं। वे इसे स्वास्थ्य तथा जैव विविधता के लिये हानिकारक मानते हैं।
  • ट्रांसजेनिक सरसों का डीएनए इसके आस-पास के पौधों को दूषित कर सकता है। 
  • कुछ समूह इसे भारत के अरबों रुपए के कृषि बाज़ार पर विदेशी कंपनियों के कब्ज़े की साज़िश भी मानते हैं।

डीएमएच-11

  • डीएमएच-11 (DMH-11) सरसों की एक किस्म है जिसका विकास दिल्ली विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया जिसका नेतृत्व दीपक पेंटल द्वारा किया गया है।
  • इसे वरुण नामक एक पारंपरिक सरसों की प्रजाति को पूर्वी यूरोप की एक प्रजाति के साथ क्रॉस कराकर तैयार किया गया है।
  • इससे सरसों की पैदावार में तीस प्रतिशत की वृद्धि होने का दावा किया जा रहा है, जिससे देश में खाद्य तेलों के आयात में कमी आ सकती है।