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बच्चों के लिये सोशल मीडिया विनियमन

  • 04 Oct 2024
  • 17 min read

प्रारंभिक परीक्षा के लिए:

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023, प्रधानमंत्री, उच्च न्यायालय, सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR)बच्चों का ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम (COPPA)

मेन्स के लिये:

भारत में सोशल मीडिया और इसका विनियमन, संबंधित कानून, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के निहितार्थ, आगे की राह

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के उपयोग हेतु न्यूनतम आयु लागू करने की योजना की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य बच्चों को सोशल मीडिया के संभावित खतरों से बचाना है।

  • यह पहल बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में है, विशेष रूप से महामारी के बाद, जिसमें युवाओं के बीच स्क्रीन समय में वृद्धि देखी गई। 
  • शेयरेंटिंग: यह "शेयरिंग" और "पेरेंटिंग" शब्दों का संयोजन है।
  • यह माता-पिता की अपने बच्चों के बारे में फोटो, वीडियो या अन्य जानकारी सोशल मीडिया पर साझा करने की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।

सोशल मीडिया के उपयोग के संबंध में वैश्विक नियामक प्रयास क्या हैं?

सोशल मीडिया:

  • सोशल मीडिया लोगों के बीच संवाद (वेबसाइटों और ऐप्स का संग्रह) के माध्यम को संदर्भित करता है जिसमें वे आभासी समुदायों और नेटवर्क में जानकारी एवं विचारों का निर्माण, साझा और/या आदान-प्रदान करते हैं। उदाहरण: फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन आदि।
  • समाचार पत्र एक प्रकार का प्रिंट मीडिया है जिसे सोशल मीडिया नहीं माना जाता है। यह मीडिया का एक पारंपरिक रूप है जिसमें पत्रिकाएँ, जर्नल और समाचार पत्र शामिल हैं। 

भारत में:

  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 का उद्देश्य बच्चों के सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करना है। DPDPA की धारा 9 में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के डेटा को संभालने के लिये 3 शर्तें बताई गई हैं।
    • सत्यापन योग्य अभिभावकीय सहमति: कंपनियों को माता-पिता या अभिभावक से सहमति प्राप्त करनी होगी।
    • बाल कल्याण के साथ संरेखण: व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण में बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • निगरानी और विज्ञापन पर प्रतिबंध: बच्चों पर नज़र रखने, व्यवहारिक निगरानी और लक्षित विज्ञापन पर प्रतिबंध है।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय: स्कूली बच्चों में अत्यधिक लत और इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को वर्ष 2023 में सोशल मीडिया तक पहुँच के लिये 21 वर्ष की आयु सीमा लागू करने का सुझाव दिया।

वैश्विक संदर्भ

  • दक्षिण कोरिया: सिंड्रेला लॉ, जिसे शटडाउन लॉ के नाम से भी जाना जाता है, 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मध्यरात्रि से सुबह 6 बजे के बीच ऑनलाइन गेम खेलने से प्रतिबंधित करता है। 
    • इंटरनेट की लत से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिये वर्ष 2011 में यह कानून पारित किया गया था और अगस्त 2021 में इसे समाप्त कर दिया गया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका द्वारा बच्चों के लिये ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम (COPPA), 1998 पारित किया गया, जिसके तहत वेबसाइटों को 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों से डेटा एकत्र करने से पहले उनके माता-पिता की सहमति लेना आवश्यक है, जिसके कारण कई प्लेटफार्मों ने इस आयु वर्ग के लिये पहुँच को प्रतिबंधित कर दिया है।
    • वर्ष 2000 के बाल इंटरनेट संरक्षण अधिनियम (CIPA) के अनुसार संघीय निधि प्राप्त करने वाले स्कूलों और पुस्तकालयों को हानिकारक ऑनलाइन सामग्री को फिल्टर करना अनिवार्य है।
  • यूरोपीय संघ: वर्ष 2015 में, यूरोपीय संघ ने 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को माता-पिता की सहमति के बिना इंटरनेट तक पहुँच पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून प्रस्तावित किया था।
    • जनरल सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) (डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन), 2018 यूरोपीय संघ में सख्त डेटा गोपनीयता मानक निर्धारित करता है, जो उपयोगकर्त्ताओं को उनकी व्यक्तिगत जानकारी पर नियंत्रण प्रदान करता है तथा एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है।
  • यूनाइटेड किंगडम: ब्रिटेन, जब वह यूरोपीय संघ का हिस्सा था, ने माता-पिता की सहमति से इंटरनेट तक ऑनलाइन पहुँच हेतु आयु 13 वर्ष निर्धारित की थी। मई 2024 में, एक सरकारी पैनल ने इसे बढ़ाकर 16 वर्ष करने की सिफारिश की। ब्रिटेन ने ऐज एप्रोप्रियेट डिज़ाइन कोड भी पेश किया, जिसके तहत प्लेटफॉर्म को मज़बूत डिफॉल्ट सेटिंग्स लागू करने के साथ जोखिमों को कम करके बच्चों की सुरक्षा एवं गोपनीयता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होती है।
  • फ्राँस: जुलाई 2023 में, फ्राँस ने एक कानून पारित किया, जिसके तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को माता-पिता की अनुमति के बिना 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ब्लॉक करना होगा, तथा गैर-अनुपालन के लिये वैश्विक बिक्री के 1% तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
    • इसके अलावा, यदि 16 वर्ष से कम आयु का कोई बच्चा प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में करता करता है और आय अर्जित करता है, तो उसके माता-पिता उस आय तक तब तक नहीं पहुँच सकते जब तक कि बच्चा 16 वर्ष की आयु का न हो जाए। 
  • चीन: अगस्त 2023 में, चीन ने बच्चों के इंटरनेट के उपयोग पर सख्त सीमाएँ निर्धारित कीं: 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिग प्रतिदिन दो घंटे, 8-15 वर्ष की आयु के बच्चे एक घंटे और 8 वर्ष से कम आयु के बच्चे 40 मिनट तक इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं, तथा रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक इसका उपयोग प्रतिबंधित रहेगा। 
    • विकास-केंद्रित ऐप्स के लिये अपवाद लागू होते हैं।
  • ब्राज़ील: नाबालिगों के लिये ऑनलाइन सुरक्षा में सुधार करने हेतु लैटिन अमेरिका में बड़े पहल के हिस्से के रूप में, ब्राज़ील ने अप्रैल 2023 में बच्चों के डेटा की सुरक्षा के लिये नियम पारित किये, जिसमें डिजिटल व्यवसायों द्वारा इस जानकारी को एकत्र करने और प्रबंधित करने के तरीके पर प्रतिबंध लगाए गए।

भारत में डिजिटल साक्षरता की स्थिति:

  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय  (NSSO) वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में डिजिटल साक्षरता कम है, केवल 40% भारतीय ही सामान्यतः कंप्यूटर कार्यों को जानते हैं।
  • टियर 2 और टियर 3 शहरों में किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 80% बच्चे अपने माता-पिता को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नेविगेट करने में मदद करते हैं, जो डिजिटल अंतर को दर्शाता है। 
  • इसके अतिरिक्त, भारत की भाषाई विविधता और समान डिवाइस-साझाकरण प्रथाओं के कारण समूची आबादी में सुसंगत डिजिटल सुरक्षा उपायों को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

बच्चों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करने के क्या कारण हैं?

  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: हानिकारक सामग्री, साइबर धमकी और ऑनलाइन शिकारियों के संपर्क में आने से बच्चों के लिये जोखिम उत्पन्न होता है। 
    • सोशल मीडिया के उपयोग से बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी बढ़ जाती हैं, जिनमें चिंता और अवसाद शामिल हैं।
  • पोर्नोग्राफी:सोशल मीडिया पर स्पष्ट जानकारी की अधिकता युवाओं को ऐसी सामग्री के संपर्क में लाती है जो उनकी उम्र के लिये अनुचित है, जिसका उनके रिश्तों और कामुकता के प्रति दृष्टिकोण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • भ्रामक: सोशल मीडिया भ्रामक जानकारी का स्रोत हो सकता है, बच्चे दुष्प्रचार से प्रभावित होने के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
  • वास्तविक जीवन में संबंधों को बढ़ावा देना: प्रतिबंध से बच्चों को आमने-सामने संवाद करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे बेहतर सामाजिक कौशल और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को बढ़ावा मिलेगा।
  • तकनीकी उत्तरदायित्व: ऐसे तर्क दिये जा रहे हैं कि बच्चों के लिये सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण बनाने के लिये तकनीकी कंपनियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिये, न कि केवल अभिभावकों की निगरानी पर निर्भर रहना चाहिये।

बच्चों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के विरुद्ध मुद्दे क्या हैं?

  • प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ: डिजिटल वातावरण में प्रतिबंधों को लागू करना मुश्किल है। बच्चे अक्सर आयु प्रतिबंधों को दरकिनार करने के तरीके खोज लेते हैं, जैसा कि दक्षिण कोरिया के सिंड्रेला कानून की विफलता से स्पष्ट है।
  • अभिभावकों पर बोझ: आयु संबंधी प्रतिबंध लागू करने से अभिभावकों पर अनुचित बोझ पड़ता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ डिजिटल साक्षरता कम है। 
    • कई अभिभावकों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर प्रभावी ढंग से काम करने के कौशल का अभाव हो सकता है, जिससे उनके बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सकारात्मक सहभागिता की हानि: सोशल मीडिया सीखने, समाजीकरण और रचनात्मकता के लिये मूल्यवान अवसर प्रदान कर सकता है।
    • पूर्ण प्रतिबंध से बच्चे इन लाभों से वंचित हो सकते हैं तथा भविष्य में रोज़गार के लिये आवश्यक डिजिटल कौशल विकसित करने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: नाबालिगों को अपनी बात कहने और जानकारी तक पहुँचने का अधिकार है। प्रतिबंध इन अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है, जिससे विविध विचारों और समुदायों के साथ जुड़ने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।
  • सोशल मीडिया के लाभ: सोशल मीडिया युवाओं को सहायक नेटवर्क से जोड़कर समुदाय निर्माण को बढ़ावा देता है, जो उनकी पहचान की पुष्टि करता है, साथ ही यह युवाओं को वैश्विक मुद्दों और रुझानों से संबंधित जानकारी प्रदान करने और सीखने के लिये एक मूल्यवान उपकरण के रूप में भी कार्य करता है।

आगे की राह

  • शिक्षा और जागरूकता: सुरक्षित ऑनलाइन नेविगेशन, गोपनीयता और जोखिमों को पहचानने की शिक्षा देने के लिये स्कूलों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त, सिगरेट की पैकेजिंग की तरह, किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों को उज़ागर करने के लिये सोशल मीडिया ऐप्स पर चेतावनी लेबल होने चाहिये।
  • सुरक्षित प्लेटफॉर्म डिज़ाइन: तकनीकी कंपनियों को सुरक्षात्मक सुविधाओं और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल गोपनीयता सेटिंग्स को लागू करके बाल सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • सहयोगात्मक विनियमन: सरकारों, शिक्षकों और तकनीकी फर्मों को ऐसे विनियमों पर सहयोग करना चाहिये, जो डिजिटल जुड़ाव के साथ सुरक्षा को संतुलित करते हों, तथा इसके लिये UK के आयु-उपयुक्त डिज़ाइन कोड जैसे मॉडलों को अपनाना चाहिये।
  • निगरानी और मूल्यांकन: तकनीकी कंपनियों की ओर से पारदर्शिता और जवाबदेहिता सुनिश्चित करते हुए, नियमों और प्लेटफॉर्म के परिवर्तनों का निरंतर मूल्यांकन करना।
  • अभिभावकों की भागीदारी: अभिभावकों को अच्छी ऑनलाइन आदतों को अपनाने तथा अपने बच्चों के साथ डिजिटल अनुभवों पर चर्चा करने के लिये प्रोत्साहित करने तथा उन्हें प्लेटफॉर्म को समझने में सहायता के लिये संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आयु प्रतिबंध लागू करने में चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने में माता-पिता, शैक्षणिक संस्थानों और तकनीकी कंपनियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न 1. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15 
(b) अनुच्छेद 19 
(c) अनुच्छेद 21 
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42 वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिए राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44 वें संशोधन के अधीन उपबंध

उत्तर: (c)


मुख्य परीक्षा:

Q. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जांच कीजिए। (2017)

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