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सामाजिक उद्यमिता

  • 22 Dec 2020
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय उद्योग परिसंघ (दक्षिणी क्षेत्र) ने सामाजिक उद्यमिता पर एक प्रतियोगिता की घोषणा की है।

  • यह प्रतिस्पर्द्धा/प्रतियोगिता मौजूदा सामाजिक उद्यमों (जो अपने शुरूआती चरण में हैं) और ऐसे छात्रों के लिये है जिनके विचार उद्यमशील होने के साथ ही समाज केंद्रित तथा समाज पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने वाले हैं।
  • भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry) सलाहकार और परामर्श संबंधी प्रक्रियाओं के माध्यम से भारत के विकास, उद्योग, सरकार एवं नागरिक समाज के बीच साझेदारी के लिये अनुकूल वातावरण बनाने का काम करता है। CII एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी, उद्योगों को नेतृत्व प्रदान करने वाला और उद्योग-प्रबंधित संगठन है।

प्रमुख बिंदु

सामाजिक उद्यमिता का अर्थ:

  • यह वाणिज्यिक उद्यम के विचार को धर्मार्थ (Charitable) गैर-लाभकारी संगठन के सिद्धांतों के साथ मिश्रित करने वाली अवधारणा है।
  • इसमें सामाजिक असमानताओं को दूर करने हेतु कम लागत वाले उत्पादों एवं सेवाओं से जुड़े व्यावसायिक मॉडल के विकास पर ज़ोर दिया जाता है।
  • यह अवधारणा आर्थिक पहल को सफल बनाने में मदद करती है और इसके तहत किये जाने वाले सभी निवेश सामाजिक एवं पर्यावरणीय मिशन पर केंद्रित होते हैं।
  • सामाजिक उद्यमियों को सामाजिक नवप्रवर्तनकर्त्ता (Social Innovators) भी कहा जाता है। वे परिवर्तनकारी के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं और अपने अभिनव विचारों का उपयोग करके महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करते हैं। वे समस्याओं की पहचान करते हैं और अपनी योजना के माध्यम से उनका समाधान करते हैं।
  • सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility) और ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) निवेश के साथ-साथ सामाजिक उद्यमिता की अवधारणा भी तेज़ी से विकसित हो रही है।
  • सामाजिक उद्यमिता के उदाहरणों में- गरीब बच्चों के लिये शैक्षिक कार्यक्रम शुरू करना, पिछड़े क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना और महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की मदद करना शामिल है।

भारत में आवश्यकता:

  • भारत को सामाजिक समस्याओं से संबंधित विभिन्न विषयों जैसे- स्वच्छता, शिक्षा, जल संरक्षण, लैंगिक पूर्वाग्रह, प्राथमिक स्वास्थ्य, कन्या भ्रूण हत्या, कार्बन उत्सर्जन आदि के समाधान हेतु ऐसे अनेक सामाजिक उद्यमियों की आवश्यकता है जो इन समस्याओं का अभिनव समाधान प्रदान कर सकें। ये समस्याएँ समाज लगातार बनी हुई हैं और इसलिये इनका तत्काल समाधान करना आवश्यक है।

भारत में उदाहरण:

  • प्रवाह तथा कम्युटिनी (Pravah and ComMutiny): ये दोनों संगठन युवाओं में नेतृत्व की क्षमता का विकास करने हेतु उन्हें प्रशिक्षित करते हैं। वर्ष 2020 में इन दोनों संगठनों ने श्वाब फाउंडेशन (Schwab Foundation) तथा जुबिलेंट भारतीय फाउंडेशन (Jubilant Bhartia Foundation) द्वारा स्थापित सोशल एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर पुरस्कार जीता है।
    • वर्ष 1993 में स्थापित प्रवाह (Pravah) संगठन भारत में मनो-सामाजिक (Psycho-Social) हस्तक्षेपों के माध्यम से युवा परिवर्तनकारियों के विकास में योगदान दे रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ये युवा अधिक समावेशी समाज के निर्माण में सक्षम होते हैं।
    • कम्युटिनी जिसकी स्थापना वर्ष 2008 में की गई थी, प्रवाह जैसे संगठनों की सामूहिकता पर ज़ोर देता है।
  • डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी का अरविंद नेत्र चिकित्सालय: इसका व्यावसायिक मॉडल अत्यधिक सामाजिक होने के साथ-साथ संधारणीय भी है। इसकी स्थापना का उद्देश्य भारत में गरीबों (विशेष रूप से ग्रामीण भारत में न्यूनतम दैनिक वेतन वाले ऐसे लोग, जो चिकित्सा उपचार का खर्च नहीं उठा सकते) के बीच से दृष्टीहीनता को समाप्त करना है।

चुनौतियाँ:

  • व्यवसाय योजना: बाज़ार की वास्तविकताओं और ग्राहक अंतर्दृष्टि पर आधारित योजना का निर्माण तथा उनका दृढ़तापूर्वक अनुसरण कठिन है क्योंकि सामाजिक उद्यमियों को एक बेहतर व्यवसाय योजना विकसित करने में अधिवक्ताओं, चार्टर्ड एकाउंटेंट तथा वरिष्ठ उद्यमियों के मदद की आवश्यकता होती है।
  • विशिष्ट भौगोलिक सीमा तक सीमित: निधियन की कमी या संस्थापकों के सीमित नेटवर्क के कारण योजनाएँ एक विशिष्ट भौगौलिक सीमा तक ही सीमित रह जाती हैं।

सुझाव:

  • वर्ष 2013 का कंपनी अधिनियम जो कंपनियों को अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्त्व (CSR) के रूप में दान करने के लिये बाध्य करता है, ने सामाजिक उपक्रमों में निवेश को उत्प्रेरित किया है। परंतु सही मायनों में इसके लाभ को प्राप्त करने के लिये इसे और अधिक समन्वित किये जाने की आवश्यकता है। 
    • परोपकारी उद्यम फर्म या पारिस्थितिकी तंत्र के अभिकर्त्ता सामाजिक उद्यमी निवेशकों के वर्ग को व्यवस्थित कर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। निवेशकों के वर्ग को व्यवस्थित करने का कार्य उनके द्वारा प्रदत्त चेक के आकार (अर्थात् धनराशि), उनके द्वारा केंद्रित क्षेत्र और उनकी विशिष्ट प्राथमिकताओं के अनुसार तथा इन सबमें सबसे महत्त्वपूर्ण उनकी पहचान को सुगम बनाकर किया जा सकता है।
  • इसके अलावा ‘प्रभाव मूल्यांकन’ की भी आवश्यकता है- 
    • सभी निवेशक परिणाम देखना चाहते हैं, परंतु परिणाम को उस स्थिति में कैसे मापा जा सकता है जब हस्तक्षेप की समयावधि बहुत अधिक हो।
    • उद्देश्यपूर्ण तरीके से यह तो मापा जा सकता है कि बच्चों को उनके स्कूल में कितने मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराए जाते हैं लेकिन छात्रों में आत्मविश्वास पैदा करने के लिये स्थापित एक खेल कार्यक्रम की प्रभावकारिता को निर्धारित करना कठिन है।

संबंधित प्रयास :

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) बनाने की पहल सामाजिक क्षेत्र के संगठनों को निधि देने के लिये एक नया मंच प्रदान कर भारत में सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव की दिशा में निवेश को बढ़ावा देगा साथ ही यह दाताओं तथा निवेशकों दोनों के लिये सामाजिक प्रभाव को मापने एवं रिपोर्ट करने हेतु एक मानकीकृत ढाँचा स्थापित करेगा।
  • ग्रामीण विकास ट्रस्ट (Gramin Vikas Trust-GVT): ‘कृषक भारती कोऑपरेटिव लिमिटेड’ (Krishak Bharati Cooperative Limited- KRIBHCO)) द्वारा वर्ष 1999 में  स्थापित एक राष्ट्र स्तरीय संगठन है, जो गरीबों और समाज में हाशिए पर रह रहे समुदायों  (विशेषकर महिलाओं तथा आदिवासी आबादी) की आजीविका में एक स्थायी सुधार लाने के लिये कार्य करता है।
    • GVT सामाजिक उद्यमिता को एक बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन लाने की प्रक्रिया के रूप में देखता है

आगे की राह: 

  • समय के साथ-साथ सामाजिक उद्यमिता भी विकसित हुई है और इसने अनेक नवीन और लाभदायक विचार दिये हैं जो सामाजिक समस्याओं का समाधान करते हैं। देश में जहाँ पहले से ही अमूल, बेयरफुट कॉलेज, ग्रामीण बैंक, आदि जैसे सफल उदाहरण मौजूद हैं, वहीं यदि अधिक विचारों के ऊष्मायन और सामाजिक उद्यम में उपयुक्त निवेश सुनिश्चित किया जाए तो ऐसे ही कई और सामाजिक रूप से प्रासंगिक उद्यम स्थापित किये जा सकते हैं।  

स्रोत: द हिंदू

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