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COVID-19 के प्रसार को रोकने में ‘सोशल बबल्स’ की भूमिका

  • 09 Jun 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये 

सोशल बबल्स, COVID-19

मेन्स के लिये

स्वास्थ्य क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 के प्रसार को रोकने के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेचर ह्यूमन विहेवियर’ (Nature Human Behaviour) नामक पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, COVID-19 संक्रमण के वक्र (Curve) को सपाट रखने के लिये ‘सोशल बबल्स’ (Social Bubbles) का विकल्प एक बेहतर रणनीति हो सकती है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु विश्व के विभिन्न देशों में लागू लॉकडाउन के बीच अपने घरों तक सीमित लोगों के आर्थिक और मनोवैज्ञानिक बोझ को कम करने के लिये सरकारों पर प्रतिबंधों को कम करने का दबाव बढ़ा है।
  • विश्व के कई देशों में COVID-19 के मामलों में हो रही वृद्धि के बावजूद भी सरकारों ने प्रतिबंधों में कुछ छूट देनी शुरू कर दी है। 
  • ऐसे में प्रतिबंधों में छूट के दौरान COVID-19 संक्रमण की दूसरी लहर से बचने की अनेक रणनीतियों में से एक ‘सोशल बबल’ के विकल्प को प्रभावी बताया गया है 

क्या है ‘सोशल बबल’?   

  • यह विचार न्यूज़ीलैंड में अपनाए गए घरों के ‘बबल्स’ (Bubbles) अर्थात बुलबुलों के मॉडल पर आधारित है, जहाँ इन ‘बबल्स’ से आशय ऐसे विशेष सामाजिक समूहों से है जिन्हें इस महामारी के दौरान एक-दूसरे से मिलने की अनुमति दी गई है।  
  • मूल रूप से न्यूज़ीलैंड के मॉडल के तहत एक ‘बबल’ से आशय एक परिवार के लोगों से है जो एक साथ रहते हैं।  
  • इसके तहत अलर्ट के तीसरे चरण में लोगों को अपने ‘बबल’ के दायरे में थोड़ी वृद्धि करने की अनुमति है, जिसमें वे देखभाल करने वाले सहायकों या साझा देखभाल में रह रहे बच्चों को अपने समूह में शामिल कर सकते हैं।
  • साथ ही यह उन लोगों पर भी लागू होगा जो अकेले रहते हैं अथवा ऐसे लोग जो किसी एक या दो लोगों के संपर्क में रहना चाहते हैं।
    • ऐसे लोगों का एक ही घर में रहना अनिवार्य ही नहीं है परंतु उनका एक ही इलाके का होना अनिवार्य है।
    • इस मॉडल के तहत यदि किसी व्यक्ति में COVID-19 के लक्षण पाए जाते हैं तो उस स्थिति में संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये समूह के सभी लोगों को क्वारंटीन (Quarantine ) कर दिया जाएगा।   
  • इस छूट का उद्देश्य COVID-19 संक्रमण की श्रृंखला के खतरे को सीमित रखते हुए लोगों पर लॉकडाउन के दुष्प्रभावों को कम करना था। 
  • पिछले माह यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom- UK) में लॉकडाउन को समाप्त करने की रणनीति के तहत लोगों को अपने अलावा एक और परिवार के लोगों को अपने समूह में जोड़ने की अनुमति दी गई।

प्रभाव:  

  • ‘लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस’ (London School of Economics and Political Science) द्वारा प्रकाशित एक शोध के अनुसार, सोशल बबल्स की अवधारणा न्यूज़ीलैंड के मामले में प्रभावी साबित हुई, क्योंकि इसके माध्यम से अलग-थलग, कमज़ोर या किसी परेशानी में रह रहे लोगों को आवश्यक देखभाल और सहायता उपलब्ध कराई जा सकी।
  • इसके अतिरिक्त यह नीति विश्व के अन्य देशों में भी लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करने के लिये प्रेरित करते हुए उन्हें आवश्यक देखभाल और सहायता उपलब्ध कराने में प्रभावी हो सकती है।

लाभ:

  • इस प्रक्रिया के माध्यम से COVID-19 या किसी अन्य संक्रामक बीमारी के प्रसार की संभावनाओं को सीमित करते हुए लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • साथ ही इसके माध्यम से प्रतिबंधों में अधिक सख्ती रखे बगैर संक्रमण के प्रसार को रोका जा सकता है।
  • ‘सोशल बबल’ को नियोक्ताओं द्वारा विभागों या कार्य इकाइयों में कर्मचारियों के समूह बनाकर लागू किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये- अस्पतालों और अतिआवश्यक कर्मचारियों के मामलों में अलग-अलग पाली/सिफ्ट (Sift) में एक ही समूह के लोगों को तैनात कर संक्रमण के खतरे को कम किया जा सकता है।
  • इस अध्ययन के लेखकों के अनुसार, ऐसे छोटे समूहों में संक्रमण का खतरा बहुत ही कम होगा और यदि समूह का कोई व्यक्ति संक्रमित भी हो जाता है तो इसका प्रसार अन्य समूहों में नहीं होगा।

निष्कर्ष: वर्तमान में COVID-19 के किसी प्रमाणिक उपचार के अभाव में इस बीमारी के प्रसार को रोकना अति महत्त्वपूर्ण है। COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये विश्व के विभिन्न देशों में लागू लॉकडाउन के दौरान लोगों को विभिन्न प्रकार की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में ‘सोशल बबल’ के माध्यम से इस बीमारी के प्रसार के खतरों को सीमित करते हुए लॉकडाउन से उत्पन्न चुनौतियों को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।   

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस  

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