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तीन तलाक़ कहने वालों का सामाजिक बहिष्कार

  • 23 May 2017
  • 4 min read

सन्दर्भ
अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पारित किया है कि एक बार में ही तीन तलाक़ कहने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा ताकि इस तरह की घटनाओं को कम किया जा सके| गौरतलब है कि बोर्ड ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखा है| 

प्रमुख बिंदु

  • यह प्रस्ताव लखनऊ में अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के मध्य अप्रैल 2017 की एक बैठक में लाया गया था|
  • बोर्ड का कहना है कि एक बार में ही तीन तलाक़ कहने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा जिससे कि मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की घटनाओं को कम किया जा सके|
  • बोर्ड के अनुसार, ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार तलाक की घटनाओं को कम करने में काफी सहायक होगा |
  • बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ व्यवहारों का मामला, अदालतों तथा संसद के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है और मुस्लिम समुदाय इस मामले में बिना बाह्य हस्तक्षेप के खुद ही सुधार कर लेगा| 
  • यह प्रस्ताव बोर्ड के उस कोड और दिशा-निर्देशों की श्रंखला का हिस्सा है जिसे उसने मुस्लिम समुदाय के लिये निकाह एवं तलाक़ के समय अनुसरण करने के लिये तय किया है|
  • प्रस्ताव में कहा गया है कि बिना किसी कारण के तुरंत तलाक, वह भी एक बार में कह देना, तलाक देने का सही तरीका नहीं है और यह सामाजिक अस्थिरता का कारण बनता है| 
  • बोर्ड का कहना है कि  वह लोगों को बिना किसी कारण के तलाक देने से रोकने के लिये एक बड़ा सार्वजनिक आन्दोलन प्रारंभ करेगा, और यदि आवश्यकता हुई तो केवल एक बार तलाक का सहारा लिया जा सकेगा, किसी भी दशा में एक ही बार में तीन तलाक का सहारा नहीं लिया जाना चाहिये|
  • बोर्ड अपनी वेबसाइट, प्रकाशन एवं सामाजिक मीडिया मंचों का इस्तेमाल कर काजिओं को इससे संबंधित सार्वजनिक सलाह जारी करेगा कि वे दूल्हे को, विवाद की स्थित में भी तुरंत तलाक कहने से मना करेंगे|
  • काजी दूल्हा और दुल्हन को सलाह देंगे कि वे तुरंत तलाक का सहारा नहीं लेंगे| इसके लिये इमामों एवं मस्जिदों के वक्ताओं की भी मदद ली जाएगी|
  • बोर्ड की नई आचरण संहिता में दूल्हा और दुल्हन के बीच पारस्परिक विचार-विमर्श करके विवादों को बहुस्तरीय समझौते के आधार पर निपटाने पर ज़ोर दिया गया है| 
  • यदि विवदित मुद्दा आपस में नहीं सुलझता है तब उस स्थिति में, दोनों परिवारों के वरिष्ठ सदस्य हस्तक्षेप करेंगे| यदि वे भी समाधान नहीं कर पाएँ तो  अंतिम विकल्प के रूप में तलाक का सहारा लिया जाएगा| 
  • गौरतलब है कि तीन तलाक के विषय में उच्चतम न्यायालय की पाँच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है| सर्वोच्च न्यायालय 11 मई, 2017 से तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है|
  • फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर अपना फैसला सुरक्षित रखा है|
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