हिम तेंदुआ संकटग्रस्त श्रेणी से बाहर | 18 Sep 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आई.यू.सी.एन. द्वारा हिम तेंदुए की संरक्षण स्थिति में सुधार किया गया है। इसकी संरक्षण स्थिति को ‘लुप्तप्राय’ से ‘कमज़ोर’ श्रेणी में तब्दील किया गया है। इस निर्णय को आई.यू.सी.एन. (International Union for Conservation of Nature - IUCN) द्वारा ‘विलुप्त होने के जोखिम का आकलन करने के लिये वैश्विक मानक’ (Global Standard for Assessing Extinction risk) के अंतर्गत घोषित किया गया है।
मुख्य बिंदु
- हिम तेंदुए के स्टे्टस में परिवर्तन करने के लिये पाँच अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा तीन साल तक मूल्यांकन प्रक्रिया का पालन किया गया।
- विशेषज्ञों द्वारा इस संबंध में यह चेतावनी जारी की गई है कि हिम तेंदुए के संरक्षण के संबंध में संचालित बहुत सी परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों के बावजूद अभी भी इस प्रजाति के शिकार और निवास स्थान संबंधी गंभीर खतरों में विशेष कमी नहीं आई है ।
- ध्यातव्य है कि हिम तेंदुआ एक बेहद मनोहर प्राणी है, जो मध्य एशिया के पहाड़ों में रहता है। इसे आई.यू.सी.एन. द्वारा पहली बार वर्ष 1972 में ‘लुप्तप्राय’ श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया था।
लुप्तप्राय बनाम कमज़ोर/भेद्य (Endangered Vs Vulnerable)
- ध्यातव्य है कि हिम तेंदुए को 'लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध करने के लिये कम से कम 2,500 से अधिक परिपक्व हिम तेंदुए होने चाहिये तथा इनकी विलुप्ति की दर भी उच्च होनी चाहिये।
- जबकि ‘कमज़ोर’ के रूप में वर्गीकृत होने का मतलब है कि किसी प्रजाति के कम से कम 10,000 से अधिक प्रजनन पशु मौजूद होने चाहिये। साथ ही इनकी कुल आबादी में तीन पीढ़ियों से कम से कम 10% की कमी भी होनी चाहिये।
हिम तेंदुए के संबंध में कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु
- दुर्लभतः दिखाई देने वाले हिम तेंदुए हिमालय और रूस के दूरस्थ अल्ताई पहाड़ों सहित मध्य एशिया के पहाड़ी क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- इनका आवास क्षेत्र विश्व के 12 देशों के 1.8 मिलियन वर्ग किमी./694,980 वर्ग मील से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है।
- हिम तेंदुए की विलुप्ति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं -
→ इनके फर (fur) के कारण बढ़ता शिकार।
→ बुनियादी ढाँचे के विकास से हिम तेंदुए के आवास में होती कमी।
→ जलवायु परिवर्तन।
- आम तौर पर ये 3,000-4,500 मीटर (11,480-14,760 फीट) की ऊँचाई पर पाए जाते हैं।
- एकान्त पसंद हिम तेंदुए आमतौर पर सुबह और शाम के समय ही शिकार करते हैं।
- ये अपने वज़न से तीन गुना अधिक भार वाले जानवर तक का शिकार करने में सक्षम होते हैं।
- इनके शरीर पर मौजूद फर में मौसम के अनुरूप परिवर्तन होता रहता है। गर्मियों में ये एक खुबसूरत पीले-ग्रे रंग के आवरण में तब्दील हो जाते हैं तथा सर्दियों में ये एक सफेद फर की मोटी परत के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, ताकि इनके शरीर को मौसम की मार से बचाए रख सके।